गिरीश मालवीय
नई दिल्ली। जिस प्रकार से तृणमूल के नेता एक-एक कर के बीजेपी में शामिल हो रहे हैं। उससे एक कथा का स्मरण हो आया है। यह कथा मूल रूप से भारतीय दर्शनशास्त्र की गहराई को प्रतिबिंबित करती हैं।
लेकिन इसकी सहायता से हम वर्तमान भारतीय राजनीति के एक विशिष्ट ट्रेंड को भी समझ सकते हैं।
बौद्ध साहित्य में मिलिंद प्रश्न का जिक्र आता है। इस कथा में बौद्ध भिक्षु नाग सेन और राजा मिलिंद के संवाद का वर्णन किया गया है। कथा प्रश्नोत्तरी की शैली में है। सम्राट मिलिंद बौद्ध भिक्षु नागसन से प्रश्न करते हैं। कि आत्मा क्या है। शरीर क्या है।
बौद्ध भिक्षु नागसेन इस बात को समझाने के लिए मिलिंद को रथ का उदाहरण देते हैं। जिस पर बैठकर मिलिंद के पास आए हैं।
नागसेन मिलिंद से कहते हैं। कि रथ क्या है?
मिलिंद एक इशारा करके कहते हैं। कि यह जो सामने खड़ा है। यह रथ है।
नागसेंन कहते हैं। कि इसका पहिया अलग करो, इसकी धूरी अलग करो, इसकी कुर्सी इसके घोड़े, और सारे हिस्से अलग करके रख दो।
मिलिंद अपने सेवकों को का आज्ञा देते हैं। कि पूरे रथ को खोलकर इसके पुर्जों को अलग अलग कर दिया जाए। फिर नागसेन मिलिंद को लेकर उस रथ के पुर्जो के बीच में खड़े हो जाते हैं।
नागसेन मिलिंद से पूछते हैं। क्या यह पहिया रथ है। मिलिंद कहते हैं। कि नहीं पहिया रथ नहीं है। नागसेन पूछते हैं। क्या या कुर्सी या ध्वजा रथ है? मिलिंद कहते हैं। कि नहीं यह तो रथ नहीं है। फिर मिलिंद तो पूछते हैं। क्या यह घोडा रथ है। मिलिंद कहते हैं। कि नहीं यह भी रथ नहीं है। इस तरह नागसेन प्रत्येक पुर्जे के पास जाकर प्रश्न पूछते हैं। और मिलिंद कहते हैं कि नहीं यह रथ नहीं है।
आखिर में नागसेन पूछते हैं। कि सम्राट फिर आप ही बताइए कि रथ क्या है? इस पर मिलिंद कहते हैं। कि यह सब पुर्जे जब जुड़ जाते हैं। और चलने लगते हैं। तब रथ का निर्माण होता है। नाग सेन कहते हैं। कि सम्राट इसी तरह जब शरीर मन समय स्मृतियां नाम रूप इत्यादि आपस में मिल जाते हैं। तब उस स्व या आत्मा का निर्माण होता है।
अब इस कथा के परिपेक्ष्य में आप बंगाल में चल रहे राजनीतिक घटनाक्रम पर नजर डालिए , बंगाल में बीजेपी का अस्तित्व बहुत सीमित था। लेकिन एक एक करके बीजेपी ने तृणमूल के बड़े नेताओं को तोड़ना शुरू किया सबसे पहले मुकुल रॉय बीजेपी में गए, उन्होंने अपने समर्थक नेताओं को बीजेपी में शामिल करवाया, फिर तृणमूल की सरकार में रहे अनेक मंत्री विधायक सांसद बीजेपी में शामिल होते चले गए जो एक समय ममता बनर्जी के सबसे विश्वसनीय हुआ करते थे। शुभेन्दु अधिकारी, शोभन देव चट्टोपाध्याय, सौमित्र खान आदि सभी तृणमूल से ही बीजेपी में आए हैं। और भी सेकड़ो की संख्या में नेता और उनके हजारों समर्थक अब बीजेपी में शामिल हो गए हैं। ताजा कड़ी में दिनेश त्रिवेदी में उसमें शामिल हो गये है।
उपरोक्त कथा के परिपेक्ष्य में हमे यह समझने की जरूरत है। कि तृणमूल क्या है। या कोई भी अन्य पार्टी क्या है। आप तृणमूल के शासन को भ्रष्ट कहते हैं। और उसके तमाम भ्रष्ट नेताओं को अपने मे शामिल करते जाते हैं।
एक एक पार्ट को आप अलग कर देते हैं। और कहते हैं। कि यह अब तृणमूल में नही है। इसे हम अपने में शामिल कर रहे हैं। और अंत मे पता लगता है। कि आपने सीबीआई या अन्य जाँच एजेंसियों का सहारा लेकर येन केन प्रकारेण सभी को अपने मे शामिल कर लिया है। और फिर ध्रुवीकरण के सहारे आप चुनाव जीत लेते हो तो मूल रुप मे क्या बदला है। आपमे भी तृणमूल की आत्मा प्रवेश कर गयी है। बस शरीर भाजपा का है। नाम भाजपा का है।
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