सोमवार, 8 मार्च 2021
देवताओं के मन्दिरों की तुलना में शिव मंदिर सर्वाधिक
जन गण मन के आराध्य भगवान शिव सहज उपलब्धता और समाज के आखरी छोर पर खडे व्यक्ति के लिए भी सिर्फ कल्याण की कामना यही शिव है। किरात भील जैसे आदिवासी एवं जनजाति से लेकर कुलीन एवम अभिजात्य वर्ग तक अनपढ़ गंवार से लेकर ज्ञानी अज्ञानी तक सांसारिक मोहमाया में फंसे लोगो से लेकर तपस्वियों, योगियों, निर्धन, फक्कडों, साधन सम्पन्न सभी तबके के आराध्य देव है भगवान शिव, भारत वर्ष में अन्य देवी-देवताओं के मन्दिरों की तुलना में शिव मन्दिर सर्वाधिक है। हर गली मुहल्ले गांव देहात घाट अखाडे बगीचे पर्वत नदी जलाशय के किनारे यहां तक की बियाबान जंगलों मे भी शिवलिंग के दर्शन हो जाते है। यह इस बात का साक्ष्य है कि हमारे श्रृजनता का भगवान शिव में अगाध प्रेम भरा है। वस्तुत: इनका आशुतोष होना अवघडदानी होना केवल वेलपत्र या जल चढानें मात्र से ही प्रशन्न होना आदि कुछ ऐसी विशेषताए हैं जो इनको जन गण मन का देव अर्थात् महादेव बनाती है। हिन्दू धर्म में भगवान शिव को मृत्युलोक का देवता माना गया है। शिव को अनादि अनन्त अजन्मां माना गया है। यानि उनका न आरम्भ है न अन्त ।न उनका जन्म हुआ है न वे मृत्यु को प्राप्त होते है। इस तरह से भगवान शिव अवतार न होकर साक्षात ईश्वर है। शिव की साकार यानि मुर्ति रूप एवम निराकार यानि अमूर्त रूप में आराधना की जाती है। शास्त्रों में भगवान शिव का चरित्र कल्याण कारी माना गया है। धार्मिक आस्था से इन शिव नामों का ध्यान मात्र ही शुभ फल देता है। शिव के इन सभी रूप और नामों का स्मरण मात्र ही हर भक्त के सभी दु:ख और कष्टों को दूर कर उसकी हर इच्छा और सुख की पूर्ति करने वाला माना गया है।इसी का एक रूप गाजीपुर जनपद के आखिरी छोर पर स्थित कामेश्वर नाथ धाम कारो जनपद बलिया का है।रामायण काल से पूर्व में इस स्थान पर गंगा सरजू का संगम था और इसी स्थान पर भगवान शिव समाधिस्थ हो तपस्यारत थे। उस समय तारकासुर नामक दैत्य राज के आतंक से पूरा ब्रम्हांड व्यथित था। उसके आतंक से मुक्ति का एक ही उपाय था कि किसी तरह से समाधिस्थ शिव में काम भावना का संचार हो और शिव पुत्र कार्तिकेय का जन्म हो जिनके हाथो तारकासुर का बध होना निश्चित था। देवताओं के आग्रह पर देव सेनापति कामदेव समाधिस्थ शिव की साधना भूमिं कारो की धरती पर पधारे। सर्वप्रथम कामदेव ने अप्सराओं ,गंधर्वों के नृत्य गान से भगवान शिव को जगाने का प्रयास किया। विफल होने पर कामदेव ने आम्र बृक्ष के पत्तों मे छिपकर अपने पुष्प धनुष से पंच बाण हर्षण प्रहस्टचेता सम्मोहन प्राहिणों एवम मोहिनी का शिव ह्रदय में प्रहार कर शिव की समाधि को भंग कर दिया। इस पंच बाण के प्रहार से क्रोधित भगवान शिव ने अपने तीसरे नेत्र से कामदेव को जलाकर भस्म कर दिया। तभी से वह जला पेंड युगो युगो से आज भी प्रमाण के रूप में अपनी जगह पर खडा है।इस कामेश्वर नाथ का वर्णन बाल्मीकि रामायण के बाल सर्ग के 23 के दस पन्द्रह में मिलता है। जिसमे अयोध्या से बक्सर जाते समय महर्षि विश्वामित्र भगवान राम को बताते है की देखो रघुनंदन यही वह स्थान है जहां तपस्या रत भगवान शिव ने कामदेव को भस्म किया था। कन्दर्पो मूर्ति मानसित्त काम इत्युच्यते बुधै: तपस्यामि: स्थाणु: नियमेन समाहितम्।इस स्थान पर हर काल हर खण्ड में ऋषि मुनी प्रत्यक्ष एवम अप्रत्यक्ष रूप से साधना रत रहते है। इस स्थान पर भगवान राम अनुज लक्ष्मण एवम महर्षि विश्वामित्र के साथ रात्रि विश्राम करने के पश्चात बक्सर गये थे। स्कन्द पुराण के अनुसार महर्षि दुर्वासा ने भी इसी आम के बृक्ष के नीचे तपस्या किया था।महात्मां बुद्ध बोध गया से सारनाथ जाते समय यहां पर रूके थे। ह्वेन सांग एवम फाह्यान ने अपने यात्रा बृतांत में यहां का वर्णन किया है। शिव पुराण देवीपुराण स्कंद पुराण पद्मपुराण बाल्मीकि रामायण समेत ढेर सारे ग्रन्थों में कामेश्वर धाम का वर्णन मिलता है। महर्षि वाल्मीकि गर्ग पराशर अरण्य गालव भृगु वशिष्ठ अत्रि गौतम आरूणी आदि ब्रह्म वेत्ता ऋषि मुनियों से सेवित इस पावन तीर्थ का दर्शन स्पर्श करने वाले नर नारी स्वयं नारायण हो जाते है। मन्दिर के ब्यवस्थापक रामाशंकर दास के देख रेख में करोणो रूपये खर्च कर धाम का सुन्दरीकरण किया गया है। चितबडागांव मुहम्मदाबाद मार्ग पर धर्मापुर में भव्य प्रवेश द्वार, कामेश्वर धाम के पास पोखरे के समीप भव्य द्वार, सत्संग हाल,प्रवचन मंच,समेत अनेक निर्माण कार्य सम्पन्न है और कुछ का निर्माण कार्य चल रहा है। शिव रात्रि एवम सावन मास में लाखो लोग यहा आकर बाबा कामेश्वर नाथ का दर्शन पूजन करते है। सावन मास में लोग उजियार घाट से गंगा स्नान कर गंगा जल लेकर कारो आते है और बाबा कामेश्वर नाथ जी को अर्पित करते है।
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