सुनील श्रीवास्तव
नई दिल्ली/ वाशिंगटन डीसी। महिलाओं के अदृश्य संघर्ष को सलाम करने के लिए उनके सम्मान में, उन्हें समान अधिकार और सम्मान दिलाने के उद्देश्य के साथ संयुक्त राष्ट्र संघ के द्वारा 8 मार्च को अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस घोषित किया हुआ है। अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाने के लिए कई जायज कारण हैं। महिला/स्त्री/नारी/औरत शब्द कुछ भी हो, मां/बहन/बेटी/पत्नी रिश्ता कोई सा भी हो वे हर जगह सम्मान की हकदार है। चाहे वह शिक्षक/वकील/डॉक्टर/पत्रकार/सैनिक/सरकारी कर्मी/इंजीनियर जैसे किसी पेशे में हों या फिर गृहिणी ही क्यों न हों। समानता का अधिकार उन्हें भी उतना ही है, जितना पुरुषों का है।आधी आबादी के तौर पर महिलाएं हमारे समाज -जीवन का एक मजबूत आधार है। महिलाओं के बिना इस दुनिया की कल्पना करना ही असंभव है। कई बार महिलाओं के साथ पेशेवर जिंदगी में भेदभाव होता है। घर-परिवार में भी कई दफा उन्हें समान हक और सम्मान नहीं मिल पाता है। फिर वे जूझती हैं। संघर्ष कर करती हैं और इस दुनिया को खूबसूरत बनाने में उनका ही सर्वाधिक योगदान है। सन् 1908 में एक मजदूर आंदोलन के बाद ही अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाने की शुरुआत हुई थी। महिलाओं ने न्यूयॉर्क में उनकी नौकरी के घंटे कम करने और साथ ही उनका वेतन बढ़ाने के लिए मांग रखी थी। महिलाओं की हड़ताल इतनी कामयाब रही कि वहां के सम्राट निकोलस को पद छोड़ना पड़ा, और अंतरिम सरकार ने महिलाओं को मतदान का अधिकार दे दिया।
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