अकांशु उपाध्याय
नई दिल्ली। लगातार हो रहे कृषि कानूनों का विरोध देख सोचा लोगो को इसे समझने-जानने कि आवश्यकता है, जैसा कि सरकार का दावा था। किसानों की आय दोगुनी करने का उसके चलते यह कानून बनाए गए है। किन्तु क्या आप जानते है, कि इन कानूनों का विपरीत असर किसानी और खाद्य सुरक्षा पर हो सकता है तो आइए जानते है। विस्तार से आखिर इन कानूनों का विरोध हो क्यों रहा है ? पहला कानून कृषि ट्रेड एंड फैसिलिटेशन पर आधारित है। अर्थात् जिस तरह से आज ऑनलाइन समान कि बिक्री होती है। उसी तरह किसान को भी अपनी फसल बेचने के रास्ते दिए जा सकते है। इस बिल के अनुसार अब किसान अपनी फसल किसी भी राज्य में बिना किसी टैक्स को दिए बेच सकते है। अब इसका विरोध क्यों करना भला तो ठहरिए, 1155 में लागू हुए एपीएमसी में किसानों को अपनी फसल बेचने पर क्या वाकई नुकसान होता है। इसका उत्तर जरूर हा में दिया जा सकता है। क्योंकि यह लाइसेंस धारी बिचौलिए होते है। जिन्हे किसान अपनी फसल बेचता है। और फिर बिचौलिए इस फसल को ट्रेड कंपनी या मार्केट के दुकानदारों को बेचता है। जिसमे कमाई बिचौलियों की होती है। और किसान को सिर्फ उसकी लागत और थोड़ा बहुत ही मुनाफा मिल पाता है। जिस तरह प्रारंभ में ऑनलाइन समान खरीदने पर डिलीवरी फ्री होती थी। किन्तु अब नहीं होती है। क्योंकि कंपनी धंधा मुनाफे के लिए करती है। सरकार का पक्ष - इस कानून के आ जाने से किसान अपनी फसल किसी भी राज्य में प्राइवेट मंडियों में बेच सकता है। हालाकि किसानों को अभी भी दूसरे राज्यों में जाकर अपनी फसल बेचने का अधिकार है। मगर बिचौलिए सिर्फ अपने लाइसेंस अधिकृत एपीएमसी में ही बेच और खरीद सकता है।
विपरीत असर - इस कानून के लागू होने के बाद धीरे धीरे एपीएमसी का उपयोग ना होने से उन्हें बंद होने की संभावना है। फिर किसानों के पास सिर्फ प्राइवेट मंडी ही बचेगी जहा उसे अपने मन मुताबिक दाम नहीं मिलेंगे और मजबूरी में किसानों को फसल को कंपनी के अनुसार दिए दामो पर बेचना होगा। एक राज्य से दूसरे राज्यों में कई किलोमीटर दूर अपनी फसल ले जाने के बाद खर्चों का वहन किसे करना है। यह पता नहीं होगा, सरकार अपने पक्ष में कह रही है। कि एपीएमसी बंद नहीं होगी मगर इसका कोई लिखित प्रावधान नहीं है। इससे एमएसपी की भी कोई गारंटी नहीं होगी की अगर कोई कंपनी फसल की लागत से कम दाम दे तो किसानों के पास दूसरा कोई रास्ता नहीं होगा अपनी फसल बेचने का। साथ ही राज्यों को मिलने वाला टैक्स भी समाप्त हो जाएगा जो उसे मंडियों के माध्यम से मिलता है।
आम जनता पर असर मंडियों में काम करने वाले मजदूर, अकाउंटेंट, सफाईकर्मी, ट्रांसपोर्ट से जुड़े लोगों के पास रोज़गार जाने की पूरी संभावना है। जनता को पैकिंग फूड खरीदने के लिए विवश होना पड़ेगा जो कि उसे महंगे दामों में मिलने की संभावना होगी। कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग - कृषि कानून कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग को लीगल करके किसानों को अधिकार दे रही है। कि जिन फसलों का दाम उसे सही मिले या जिस कंपनी से उसका कॉन्ट्रैक्ट होगा उसी फसल की खेती करे। किसान कॉन्ट्रैक्ट को रद्द कर सकता है। मगर कंपनी नहीं कर सकती है। विपरीत असर - जब कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग की जाएगी तो 85 प्रतिशत किसान जो की छोटे किसान है। अर्थात् 2 एकड़ से कम के मालिक है। या लीज़ पर जमीन लेकर किसानी मजदूरी का काम करते है। जो की बहुत ज्यादा फसल नहीं उगा पाएंगे और उन्हें बड़े किसानों या बिचौलियों के साथ जुड़कर है। अपनी फसल को बेचना पड़ सकता है। अगर किसी भी प्रकार का घोटाला होता है। तो राजस्व विभाग का एसडीएम ही उनके केस का निर्णय करेगा और राजस्व विभाग का भ्रष्टाचार किसी से छुपा नहीं है। इससे घोटाले बड़ सकते है और किसानों के शोषण कि भी संभावना है। अगर किसान के साथ कोई बेईमानी होगी तो कितने समय में उसका निराकरण होगा। साथ ही मौसम के कारण हुए नुकसान का क्वालिटी पर असर होगा और किसानों को नुकसान होगा उन्हें उस फसल की एमपीएस भी नहीं दी जाएगी जो दाम कंपनी देगी वह लीगल होगा। आम जनता पर असर - जिन फसलों के दाम किसानों को अच्छा मिलेंगे वे उसी की खेती करेंगे और यह पूर्व में ही फसल को खरीदने का कॉन्टैक्ट होगा जिससे आम जनता को वहीं खरीदना पड़ेगा और इतना ही दाम देना होगा जो कंपनी चाहती है। बड़ी कंपनी में अधिकतर कार्य मशीनों से होते है। इससे बेरोज़गारी बड़ सकती है । एसेंशियल, स्टोरेज - सरकार ने इस कानून में अनिश्चित मात्रा तक कंपनियों को स्टोरेज करने की सुविधा दी है। वह किसानों से खरीद कर अपने पास स्टोर कर सकती है। विपरीत असर इस कानून के जरिए देश में कालाबाजारी बड़ सकती है। कंपनिया तय करेगी कि फ़सल को किस दाम पर देश में बेचना है। कंपनियों का एकाधिकार है। जाएगा और अधिक भाव देकर जनता को चीजे खरीदना पड़ेगी महंगाई सातवे आसमान पर पहुचनें की संभावना होगी। जिस वर्ष कंपनी के पास स्टोक में पर्याप्त मात्रा में फसल होगी उस वर्ष किसानों को सही दाम ना मिलने की भी संभावना है।
यह बात जरूर है। कि एपीएमसी या कृषि मंडियों में कमिया जरूर है मगर उन्हें रिफार्म करने की जरूरत है ना कि दूसरी प्राइवेट मंडियों को लाना।
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