आपका लोकतंत्र हर दिन कतरा-कतरा खत्म हो रहा है?
हरिओम उपाध्याय
लखनऊ। लोकतंत्र धीरे-धीरे दशकों में बनता है। और वैसे ही उसे धीरे-धीरे खत्म किया जाता है। आज के मीडिया की तरह। लोकतंत्र का बनना, मजबूत होना, कमजोर होना या खत्म होना कोई धमाकेदार घटना नहीं है। इसे बारीक नजर से देखना पड़ता है। क्या आपको अपने उस लोकतंत्र की चिंता है। जिसे ‘दुनिया के सबसे बड़े लाकतंत्र’ का खिताब हासिल है?
छह-सात साल पहले से प्रचारित करना शुरू किया गया कि सरकार, प्रशासन और सत्ता से जो लोग सवाल करते है। वे देश का नुकसान करते हैं। फिर व्यक्ति विशेष के लिए कहा गया कि उनकी आलोचना ही देश की आलोचना है। ये सिलसिला यहां तक आ पहुंचा है। कि एक रिपोर्ट या एक ट्वीट के लिए पत्रकारों को जेल भेजा जा रहा है।
कानपुर में 24 जनवरी को एक स्कूल यूपी स्थापना दिवस मनाया गया इस दौरान छोटे बच्चों को हाफ पैंट पहनाकर, बिना स्वेटर के योग कराया गया अधिकारी सूटबूट में बैठे देखते रहे। ये खबर प्रसारित करने के लिए तीन पत्रकारों पर मुकदमा कर दिया गया। तीनों पत्रकारों पर सार्वजनिक दुर्व्यवहार और आपराधिक धमकी" देने का आरोप लगाया गया है।
गौर कीजिए कि आज ही जेल से छूटे युवा पत्रकार मनदीप पुनिया पर भी ‘दुर्व्यवहार’ का आरोप है।
किसान आंदोलन को कवर करने वाले, उस बारे में ट्वीट करने वाले 9 पत्रकारों पर केस दर्ज किया गया है। और राजद्रोह जैसे आरोप लगाए गए हैं। ट्रैक्टर परेड में एक युवक नवरीत सिंह की मौत हो गई। इन पत्रकारों ने कहा था। कि नवरीत की मौत ‘कथित तौर पर’ गोली से हुई है। इसी बात को लेकर कहा गया कि इन पत्रकारों ने झूठ बोला और जनता को भड़काया।
यानी पोस्टमार्टम रिपोर्ट और फोटोग्राफिक सबूत कहते हैं, कि नवरीत के सिर में कम से कम एक गोली का जख्म है। वहां मौजूद लोगों ने जो वीडियो लिए और उसके शरीर को चेक भी किया था। उनके मुताबिक, पहले नवरीत को पुलिस की गोली लगी और बाद में उसका ट्रैक्टर पलट गया।
यानी जो बात सच के कहीं आसपास थी। उसके लिए तमाम लोगों की भावनाएं आहत हो गईं और पत्रकारों पर केस हो गया। एक युवक की मौत की ईमानदार जांच की जगह पत्रकारों की कलम पर भाले और तलवार तानी जा रही है।
क्या अब किसी की मौत की रिपोर्ट करना अपराध माना जाएगा। पत्रकार कोई खबर चलाते हैं। तो पुलिस के वर्जन का ख्याल रखते हैं। या फिर लिखते हैं कि ऐसा आरोप है। यह मानक है। इसके बगैर खबर नहीं चलाई जाती। अगर कोई रिपोर्ट सच नहीं है। तो प्रशासन इसका खंडन कर देता है। या सफाई दे देता है। मनदीप पुनिया पुलिस का ही वर्जन लेने का प्रयास कर रहे थे। जब उन्हें पकड़ कर जेल भेज दिया गया।
क्या अब पुलिस बनाम जनता के किसी मसले पर मीडिया दोनों पक्ष नहीं रखेगा द वायर के संपादक सिद्धार्थ वरदराजन का अपराध यही है। कि उन्होंने मृतक नवरीत के परिजनों से बातचीत की। क्या अब पीडि़त का पक्ष दिखाना अपराध होगा।
एक महीने में एक दर्जन पत्रकारों पर केस दर्ज करके गंभीर धाराएं लगाना, उन्हें जेल भेजना, उनको प्रताडि़त करना, इसे सामान्य मत समझिए। मीडिया से इतनी अपेक्षाएं इसीलिए हैं। कि वह जनता की आवाज माना जाता है। मीडिया का मुंह बंद करके जनता की आवाज को कुचलने की कोशिश की जा रही है। आपका लोकतंत्र हर दिन कतरा-कतरा खत्म हो रहा है।
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