रायपुर। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कहा है कि उनकी कोशिश बस्तर के खेतों तक पानी पहुंचाने की है।
उन्होंने बोधघाट बनाने के लिए कोई कसम नहीं खाई है। लेकिन परियोजना का विरोध करने वालों के पास किसानों के खेतों तक पानी पहुंचाने का कोई उपाय हो तो बताएं। मीडिया से बात करते हुए मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कहा, बिना पानी के खेती संभव नहीं है। सिंचित क्षेत्र की खेती और असिंचित क्षेत्र की खेती में अंतर है। छत्तीसगढ़ में सिंचाई की सुविधा अधिकतर मैदानी क्षेत्रों और सरगुजा के कुछ इलाकों में ही है। बस्तर सहित वन क्षेत्र में सिंचाई की सुविधा 0 से 7 प्रतिशत तक ही है। आदिवासियों के पास जमीन है लेकिन बिना पानी के खेती उनके लिए अलाभकारी है।मुख्यमंत्री ने कहा, वहां पानी पहुंचाने के दो ही तरीके हैं। या तो नहरों से पहुंचाया जाए या फिर बोर किया जाए। ट्यूबवेल से पानी उलीचने का दुष्परिणाम हम कई इलाकों में देख रहे हैं। अपने रायपुर में ही कभी 50 से 60 फीट पर पानी निकल आता था। अब 500-600 फीट नीचे भी पानी निकल आए यह जरूरी नहीं। यहां पेयजल का संकट है। उन्होंने कहा, नदियों पर बांध बनाकर सिंचाई और पेयजल की सुविधा देने ही सबसे अच्छा विकल्प माना जाता है।मुख्यमंत्री ने कहा, यह सही है कि यहां बने सभी बांधों के लिए वन क्षेत्र ही डुबान में आए हैं। आदिवासियों को ही विस्थापित होना पड़ा है। इन बांधों के पानी का उपयोग मैदानी क्षेत्रों के खेतों और शहरों की पेयजल जरूरतों के लिए हुआ है। बोधघाट पहली परियोजना है जो आदिवासियों की जमीन पर बन रही है और उसका पानी आदिवासियों के खेतों मेंं ही काम आएगा। मुख्यमंत्री ने कहा, इस एक बांध से पूरा बस्तर सिंचित होगा। कुछ फ्लड से और कुछ क्षेत्रों में पानी लिफ्ट कर पहुंचाया जाएगा। इस परियोजना से कुछ गांव डूबेंगे लेकिन प्रभावित आदिवासियों से पूछकर उनका सबसे अच्छा पुनर्वास होगा। उन्होंने कहा, आदिवासियों के खेतों तक सिचाई का पानी पहुंचाने का और कोई उपाय हो तो विरोध करने वाले बताएंं।बस्तर अंचल की जीवनदायिनी इंद्रावती नदी के मात्र 11 टीएमसी जल का ही उपयोग अभी बस्तरवासियों के हक हो पा रहा है, जबकि इंद्रावती नदी के 300 टीएमसी जल पर बस्तरवासियों का हक है। बोधघाट सिंचाई परियोजना के निर्माण से इंद्रावती नदी के जल के सदुपयोग में एक ओर 30 गुना की वृद्धि होगी, वहीं दूसरी ओर बस्तर और बस्तरवासी की खुशहाली और समृद्धि में इसकी वजह से कई गुना की बढ़ोतरी होगी। प्रदेश सरकार द्वारा बोधघाट बहुउद्देशीय सिंचाई परियोजना के पुराने स्वरूप को पूरी तरह से परिवर्तित कर अब इसे बस्तरवासियों की बेहतरी के लिए तैयार किया गया है। 40 वर्षों से लंबित यह परियोजना पूर्व में हाईड्रल प्रोजेक्ट के रूप में तैयार की गई थी। जिसे भूपेश सरकार ने बस्तर अंचल के लोगों की भावनाओं को ध्यान में रखते हुए अब इसे सिंचाई परियोजना के रूप में परिवर्तित कर दिया है। इंद्रावती नदी से बस्तर के हक हिस्से का जल जो वर्तमान में बिना रोकटोक के प्रवाहित हो जाता है। इस परियोजना के निर्माण से इसका उपयोग बस्तर अंचल में सिंचाई के लिए होने लगेगा। इस परियोजना के निर्माण से तीन लाख 66 हजार 580 हेक्टेयर में सिंचाई और लगभग 300 मेगावाट विद्युत उत्पादन होगा, जो बस्तर की खुशहाली और समृद्धि का नया इतिहास लिखेगा। बस्तर संभाग के दंतेवाड़ा बीजापुर और सुकमा जैसे वामपंथ उग्रवाद से प्रभावित जिलों में अब बंदूक की जगह फसलें उगेंगी। खेत लहलहाएंगे। धरती धानी चादर ओढ़ खुशहाली के गीत गाएगी। यहां का जनजीवन मुस्कुराएगा। किसानों के कांधों पर नागर और हाथों में फावड़ा और कुदाल होगी। धरती पर नई कपोले फूटेंगी, जो लोगों के जन जीवन में नया सवेरा और नई उमंग लायेंगी।
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