आबूधाबी। संयुक्त अरब अमीरात की अंतरिक्ष एजेंसी ने इतिहास रचते हुए पहली ही कोशिश में अपने अंतरिक्षयान को मंगल की कक्षा में सफलतापूर्वक पहुंचा दिया है। यूएई का होप यान करीब 120,000 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से चक्कर लगा रहा है। मंगल के गुरुत्वाकर्षण बल के पकड़ में आने के लिए यूएई के वैज्ञानिकों ने अंतरिक्षयान के इंजन को करीब 27 मिनट तक चालू रखा। इस ऐतिहासिक सफलता के अवसर पर दुबई के शासक मोहम्मद बिन राशिद बिन मखतूम और अबूधाबी के क्राउन प्रिंस शेख मोहम्मद बिन जायद अल नाहयान भी स्पेस एजेंसी का दौरा कर वैज्ञानिकों का हौसला आफजाई किया। यूएई का होप यान अगले कुछ महीने तक मंग्रल ग्रह के वातावरण का अध्ययन करेगा। यूएई के इस मिशन का लक्ष्य मंगल ग्रह के पहले ग्लोबल मैप को तैयार करना भी है। ये मिशन इसलिए खास है क्योंकि इससे पहले के रोवर मंगल के चक्कर ऐसे काटते थे कि वह दिन के सीमित वक्त में ही उसके हर हिस्से को मॉनिटर कर पाते थे। इससे अलग होप का ऑर्बिट अंडाकार है जिसे पूरा करने में इस रोवर को 55 घंटे लगेंगे। इसकी वजह से यह मंगल के हिस्सों पर दिन और रात में ज्यादा समय के लिए नजर रख सकेगा। मंगल के एक साल में यह हर हिस्से पर पूरे दिन नजर रखेगा।वैज्ञानिकों के सामने सबसे ज्यादा खतरा इस अंतरिक्षयान की स्पीड थी। उन्हे डर था कि अगर वह तेजी से जाता है तो होप मंगल ग्रह से दूर निकल जाएगा और अगर होप धीमे जाता है तो वह मंगल ग्रह पर नष्ट हो जाएगा। हालांकि, यूएई के वैज्ञानिकों ने इन सबपर विजय पाते हुए अपने मिशन को सफलतापूर्वक मंगल की कक्षा में पहुंचा दिया। यूएई इस प्रोजेक्ट को अरब के युवाओं के लिए प्रेरणा के स्रोत के रूप में भी पेश करना चाहता है। उधर, वैज्ञानिकों का कहना है कि यूएई, अमेरिका और चीन के यान का मंगल तक पहुंचना दुनिया में बढ़ती रेस को दर्शाता है। उन्होंने कहा कि दुनिया की महाशक्तियां धरती के बाद अंतरिक्ष में अपना दबदबा स्थापित करना चाहती हैं। उन्होंने कहा कि एक महीने के अंदर तीन अंतरिक्ष यान का मंगल की कक्षा की ओर पहुंचना अप्रत्याशित है। इन सब यानों से हमारी मंगल ग्रह के बारे में जानकारी बढ़ेगी। अभी तक अमेरिका ही एकमात्र ऐसा देश है। जिसने मंगल पर सफलतापूर्वक अंतरिक्ष यान उतारा है और उसने यह कमाल आठ बार किया। नासा के दो लैंडर वहां संचालित हो रहे हैं, इनसाइट और क्यूरियोसिटी। छह अन्य अंतरिक्ष यान मंगल की कक्षा से लाल ग्रह की तस्वीरें ले रहे हैं, जिनमें अमेरिका से तीन, यूरोपीय देशों से दो और भारत से एक है। मंगल ग्रह के लिये चीन ने अंतिम प्रयास रूस के सहयोग से किया था, जो 2011 में नाकाम रहा था।
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