बीजिंग। चीन ने पहले कोरोना वायरस बनाया। भले ही यह वैज्ञानिकों की गलती से बना हो, या जानकर बनाया गया हो। इसके बाद उसने सबसे पहले इस वायरस की वैक्सीन बनाने का दावा किया। लेकिन न तब उसकी इस बात पर किसी को विश्वास था और न अब है। स्वयं पाकिस्तान जैसे उसके मित्र राष्ट्र भी इस वैक्सीन को खरीदना नहीं चाहते हैं। नेपाल को वैक्सीन खरीदने के लिए धमकाने वाला पत्र अब सबके सामने है। चीन की सरकार के अनुसार उसकी 6 कोरोना वैक्सीने या तो बन चुकी हैं या उनका ट्रायल अंतिम दौर में है। चीन ने सऊदी अरब, तुर्की, ब्राजील और पाकिस्तान जैसे देशों में अपना ट्रालय किया। इनमें ब्राजील भारतीय कोरोना वैक्सीन को मंजूरी मिलते ही इनकी मांग करने वाले देशों में था। पाकिस्तान को भी भारतीय कोरोना वैक्सीन चाहिए है, लेकिन वह इसे संयुक्त राष्ट्र के माध्यम से प्राप्त करना चाहता है, जिससे उनकी घरेलू राजनीति भी चलती रहे और कोरोना वैक्सीन की जरुरत भी कुछ हद तक पूरी हो सके। चीन की कोरोना वैक्सीन पर उनके अपने देश में भी तरह-तरह के सवाल उठ रहे हैं। ऐसे में दूसरे देश कैसे उसकी कोरोना वैक्सीन लगवा सकते हैं? चीन की सरकार का फरमान मानना वहां की जनता के लिये मजबूरी है। वहां दूसरे किसी देश की वैक्सीन के बारे में विचार करना भी अपराध है। इस कारण चीन के लोग जहां दबी जुबान से ही लेकिन इसके प्रयोग का विरोध कर रहे हैं, तो उइगर मुस्लिमों को आशंका है कि वैक्सीन के नाम पर कहीं उन्हें और कुछ न लगा दिया जाए, जिससे उन्हें नुकसान पहुंचे। पाकिस्तान में चीन की दो वैक्सीनों का ट्रालय चल रहा है। ये वैक्सीनें पूरी तरह से सुरक्षित हैं, इसका विश्वास दिलाने के लिये प्रशासन के बड़े अधिकारियों को ट्रायल में शामिल किया गया। इसके बाद भी इन वैक्सीनों को अपेक्षित समर्थन नहीं मिल रहा है। बीच में खबर यह भी आयी थी कि चीन ने पाकिस्तान से ट्रालय में हुआ खर्च भी मांगा है। सूत्रों के अनुसार यह भी जानकारी मिली है कि चीन इमरान सरकार पर वैक्सीन खरीदने का दबाव बना रहा है। इसके बाद भी पाकिस्तान की जनता के दबाव में इमरान खान कदम आगे नहीं बड़ा पा रहे हैं। ब्राजील के राष्ट्रपति जायर बोल्सोनारो ने पहले चीन को कोरोना वैक्सीन के लिये ऑर्डर बुक किया था, लेकिन जब उन्होंने अपनी जनता पर इसका कोई लाभ न होते हुए देखा, तो अपने निर्णय को वापस ले लिया। वहां जो चीन की वैक्सीने आ चुकी हैं, उनका भी प्रयोग नहीं हो रहा है। ब्राजील लगातार भारत के संपर्क में है और कोरोना वैक्सीन की अपनी जरुरत को पूरा करने का प्रयास कर रहा है। हाल ही में चीन ने नेपाल को अपनी कोरोना वैक्सीन दी है। इससे पहले वहां भारत की ओर से निःशुल्क भेजी गयी वैक्साीन पहुंच चुकी थी। भारत तभी किसी देश को निःशुल्क कोरोना वैक्सीन देता है, जब उस देश से इसका अनुरोध किया जाता है। पाकिस्तान को भारतीय कोरोना वैक्सीन चाहिए थी, लेकिन उसने भारत को इसके लिए कोई अनुरोध नहीं भेजा था, इसीलिए उसे वैक्सीन नहीं मिली थी। मतलब साफ है कि नेपाल को भारतीय वैक्सीन चाहिए थी, लेकिन चीन ने दबाव बनाकर उसे वैक्सीन दे दी। हाल ही में इससे संबंधित एक गोपानीय पत्र भी सार्वजनिक हुआ है, जिससे मेरे दावे की पुष्टि होती है। ऐसा क्यों हुआ कि पहले कई देशों ने चीन की कोरोना वैक्सीन के ट्रालय में भाग लिया और फिर कुछ देशों ने वैक्सीन का आर्डर भी दिया, लेकिन उसके बाद ये देश अब पीछे हट रहे हैं? इसके पीछे दो प्रमुख कारण हैं। पहला जिन देशों में कोरोना वैक्सीन का ट्रालय हुआ, वहां चीन की वैक्सीन उतनी कारगर साबित नहीं हुई जितना दावा किया जा रहा था। कई जगह वैक्सीन को मात्र 50 से 60 प्रतिशत के लगभग ही असरदार माना गया। 50 प्रतिशत किसी वैक्सीन की न्यूनतम क्षमता होती है। इसके अलावा चीन ने विश्व के कई विकासशील और गरीब देशों को यह विश्वास दिलाने का प्रयास किया था कि कोरोना वैक्सीन बनते ही इसकी अधिकांश डोज अमीर देशों को दे दी जाएंगी और उनके देश के लोगों को बीमारी से मरने के लिये छोड़ दिया जायेगा। भारत ने जब सीरम इंस्टीट्यूट व भारत बायोटेक की कोरोना वैक्सीनों को मंजूरी दी, तब इनकी कीमते भी विश्व के सामने आयीं। हमारा देश एक लोकतांत्रिक देश है, चीन की तरह यहां एक पार्टी का राज्य नहीं चलता। इस कारण दोनों ही वैक्सीनों के क्या नुकसान हो सकते हैं, यह भी विश्व के सामने आ चुका था। लगभग सभी देशों को यह विश्वास हो गया कि भारतीय वैक्सीने अन्य उपलब्ध विकल्पों की तुलना में अधिक सस्ती और असरदार हैं। भारत सरकार के द्वारा निःशुल्क वैक्सीन देने का कार्यक्रम चलाया गया और साथ ही हमारे देश में बड़े स्तर पर वैक्सीनेशन भी शुरु हुआ। अब तक लगभग 55 लाख लोगों को वैक्सीन लगायी जा चुकी है। इससे भी सभी को विश्वास हो गया कि भारतीय वैक्सीने सुरक्षित हैं। इसका सीधा असर चीन की वैक्सीनों पर पड़ा। जो देश चीन के कर्जदार हैं। चीन उन्हें धमका कर कोरोना वैक्सीन बेचने का प्रयास कर रहा है, अन्यथा उनका कोई खरीदार नहीं है। जैसे-जैसे भारत में यह वैक्सीनेशन आगे बढ़ेगा, इसकी रिपोर्ट और विस्तार से समाने आयेगी, उम्मीद है कि भारतीय वैक्सीनों की मांग और बढ़ेगी। इसके बाद चीन की कोरोना वैक्सीनों को बेचना लगभग असंभव सा हो जायेगा।
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