सनातन धर्म सभा मन्दिर में श्रीमद् भागवत कथा ज्ञान यज्ञ में पूज्य श्री स्वामी नारायण चैतन्य महराज रुद्रपुर द्वारा भगवान के प्रथम विवाह की चर्चा करते हुए भक्तों से बताते हैं, कि महाराज सुखदेव महाराज राजा परीक्षित से बोले सुनो राजन विदर्भ देश के राजा भीष्मक की एक बेटी थी। जिसका नाम रुकमणी था। विश्वक के पांच बेटे थे। भाइयों में एकलौती बहन थी। रुकमणी भीष्मक अपनी पुत्री के विवाह के लिए योग्य वर का विचार मन में कर रहे थे।
और अपने पुत्रों से परामर्श लिया कि मेरा मन हो रहा है। क्यों ना द्वारिकाधीश कृष्ण के साथ तुम्हारी बहन रुक्मणी का विवाह कर दिया जाए इस बात से रुक्मी नाराज हो गया जब रुकमणी जी को मालूम हुआ कि मेरा विवाह शिशुपाल के साथ हमारे भाई करने के लिए तैयार हैं। तो रुकमणी जी ने मन ही मन द्वारिकाधीश का स्मरण करते हुए मन से वर्ण कर लिया और पंडित जी के द्वारा प्रेम पत्र अपना संदेश रुकमणी जी ने भगवान द्वारिकाधीश के पास भेजा भगवान प्रेम पत्र को पढ़कर विदर्भ देश के लिए अपना रथ लेकर रुकमणी की ओर बढ़ाते चले गए सैनिक देखते जा रहे है।
वाह गजब की जोड़ी है। भगवान ने रुक्मणी को इशारा करते हुए रुकमणी जी का हाथ पकड़कर रथ में बैठा लिया और हवा में बातें करते रुकमणी हरण करके भगवान द्वारिका पुरी ले आए प्रभु का प्रथम विवाह भीष्मक की पुत्री लक्ष्मी स्वरूपा कन्या भगवती रुक्मणी के साथ संपन्न हुआ लक्ष्मी केवल नारायण की है । और नारायण की ही रहेगी जो अपने आप को लक्ष्मीपति समझने की चेष्टा करता है। उन्हें फिर शीशपाल की तरह रोना पड़ता है।
इस मौके पर पंडित विजय कुमार शास्त्री सनातन धर्म मंदिर सभा के अध्यक्ष वेदराज बजाज जय किशन अरोरा सुजीत बत्रा सोमनाथ छाबड़ा किशन बत्रा लालचंद बत्रा विजय अरोरा गुलशन कालरा अशोक भुड्डी राजकुमार भुड्डी अशोक बंगा राजमणि लवली हुड़िया लेखराज भुड्डी लेखराज नागपाल ज्ञानचंद बजाज पंकज सेतिया मनीष फुटेला गुलशन मुरादिया जगमोहन बजाज धर्मचंद खेड़ा हरिशचंद्र छाबड़ा साबुन ज्योति छाबड़ा अनीता भुड्डी राधा बजाज मधु नागपाल ज्योति छाबड़ा राजबाला चौहान प्रीति सुधा फूलारानी सत्या सुखीजा निर्मला मित्तल आदि मौजूद थे।
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