शनिवार, 2 जनवरी 2021

आंदोलन: सरकार ने संभावनाओं को खारिज किया

हरिओम उपाध्याय  
नई दिल्ली। किसानों ने जिस तरह देश की राजधानी दिल्ली की चारों और से घेरेबंदी की हुई है और रोजाना हजारों की संख्या में हरियाणा, उत्तरप्रदेश, राजस्थान से किसान बेरिकेड्स तोड़ कर दिल्ली की ओर बढ़ रहे हैं उस से साफ़ हो जाता है कि यह आंदोलन अब मात्र किसान आंदोलन नहीं बल्कि जन आंदोलन का रूप ले चूका है l केंद्र सरकार की तमाम कोशिशें इस आंदोलन को तोड़ पाने में नाकाम दिखाई दे रही हैं l लम्बे समय तक शांति पूर्वक आंदोलन और आंदोलनकारियों के सब्र ने इस आंदोलन को बिखरने से तो रोका ही साथ में सफलता की सीढियाँ भी चढ़ता गया lलगभग सवा महीने के लम्बे आंदोलन और छह दौर की उबाऊ बातचीत के बाद भी किसानों का होंसला और भरोसा जरा भी डगमगाया नहीं बल्कि इरादे पहले ज्यादा मजबूत हुए हैं l जबकि सरकार का भरोसा डगमगाता दिख रहा है l केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने शुक्रवार को एक न्यूज़ एजेंसी को दिए साक्षात्कार में कहा कि चार जनवरी को होने वाली अगली बैठक में पॉजिटिव परिणाम निकलने की उम्मीद है, लेकिन उन्होंने इस बारे में कुछ भी कहने से इनकार कर दिया कि सातवें दौर की बातचीत अंतिम होगी या नहीं।

आप खुद सुने केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर- पियूष गोयल और किसान नेता राकेश टिकैत की वार्तालापकिसानों के तीनों कृषि कानूनों को निरस्त करने की मांग पर अड़े रहने और विकल्प सुझाने के सरकार के प्रस्ताव को खारिज करने के बारे में पूछे जाने पर कृषि मंत्री ने कहा, ”हम इसे देखेंगे।” क्या चार जनवरी को होने वाली बैठक आखिरी बैठक होने की उम्मीद है, इस सवाल पर तोमर ने कहा, ”एकदम तो अभी कुछ नहीं कह सकता। भविष्यवक्ता तो मैं हूं नहीं। लेकिन मुझे आशा है कि जो भी फैसला होगा, देश के और किसान के हित में होगा।”केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर का यह कहना कि “जो भी फैसला होगा वह देश और किसानों के हित में होगा” साफ़ दर्शाता है कि केंद्र सरकार अपना फैसला कर चुकी है l श्री तोमर के इस कथन का संदेश साफ़ साफ़ पढ़ा जा सकता है l किसानों के इस व्यापक और जन आंदोलन बन चुके सदी के महान आंदोलन को ताकत के बल पर न तो कुचला जा सकता है और ना ही कुचलना सरकार-समाज व देश हित में है l यदि ऐसा है तो 4 जनवरी का दिन या फिर उसके एक दो दिन बाद कोई भी तारीख इतिहास के पन्नों में सुनहरे अक्षरों में दर्ज होगी l अगर ऐसा नहीं हुआ तो फिर आने वाले गणतंत्र दिवस पर किसानों का एलान ट्रैक्टरों ट्रालियों के साथ “लाल किला कूच” इतिहास के पन्नों पर दर्ज होना भी तय माना जा रहा है l जिसका परिणाम कुछ भी हो सकता है l सरकार और करीब 40 प्रदर्शनकारी किसान संघों के बीच अब तक हुई छह दौर की बातचीत पिछले एक महीने से दिल्ली की सीमाओं पर जारी किसानों के प्रदर्शन को समाप्त करने में विफल रही है। बुधवार को हुई दोनों पक्षों की पिछली बैठक में पराली जलाने को अपराध की श्रेणी से बाहर रखने तथा बिजली सब्सिडी जारी रखने की दो मांगों पर सहमति बनती दिखी लेकिन प्रदर्शनकारी किसानों की दो मुख्य मांगों पर अभी बात नहीं बन पाई है जिनमें तीनों कृषि कानूनों को निरस्त करना और एमएसपी खरीद प्रणाली की कानूनन गारंटी प्रदान करना शामिल हैं।

सितंबर में लागू हुए तीनों कृषि कानूनों को सरकार ने बड़े कृषि सुधारों के रूप में पेश किया है और कहा है कि इनका उद्देश्य किसानों की आय बढ़ाना है, लेकिन प्रदर्शनकारी किसानों ने चिंता जताते हुए कहा है कि इन कानूनों से एमएसपी और मंडी प्रणाली कमजोर होगी और वे बड़े कॉर्पोरेट की दया पर निर्भर हो जाएंगे। सरकार ने इन आशंकाओं को निराधार बताते हुए कानूनों को निरस्त करने की संभावना को खारिज किया है। प्रदर्शनकारी किसानों ने अपनी मुख्य मांगें नहीं माने जाने पर आंदोलन तेज करने की चेतावनी दी है। ऑल इंडिया किसान संघर्ष कॉर्डिनेशन कमेटी ने एक बयान में कहा, ”किसानों की एक मांग है कि कृषि कानूनों को निरस्त किया जाए।”सिंघु सीमा पर प्रदर्शन कर रहे किसान नेताओं ने एक अलग बयान में कहा कि उन्होंने जो विषय उठाये हैं, उनमें से केवल पांच फीसदी पर अब तक सरकार के साथ बैठकों में चर्चा हुई है। उन्होंने चेतावनी दी है कि अगर चार जनवरी की बैठक में गतिरोध समाप्त नहीं होता तो वे हरियाणा में सभी मॉल और पेट्रोल पंपों को बंद करने की तारीख घोषित करेंगे। स्वराज इंडिया के नेता योगेंद्र यादव ने कहा कि हरियाणा-राजस्थान सीमा पर शाहजहांपुर में प्रदर्शन कर रहे किसान भी राष्ट्रीय राजधानी की ओर कूच करेंगे। एक अन्य किसान नेता युद्धवीर सिंह ने कहा कि अगर अगले दौर की वार्ता में कोई ठोस निर्णय नहीं लिया गया तो छह जनवरी को ट्रैक्टर मार्च निकाला जाएगा।

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