वाशिंगटन डीसी/ बीजिंग। दक्षिण चीन सागर में ताइवान और चीन के मध्य तनाव के बीच अमेरिका ने अपने तेवर सख्त कर दिए हैं। रविवार को अमेरिका के विमान वाहक पोत ने दक्षिण चीन सागर में प्रवेश कर गए। अमेरिकी सेना ने रविवार को इसकी पुष्टि की है। इस एक्शन के पीछे अमेरिका का तर्क है कि समुद्र की स्वतंत्रता के लिए यह कदम उठाया गया है। अमेरिका के इस कदम से इस क्षेत्र में तनाव बढ़ गया है। अमेरिका के इस एक्शन से दक्षिण चीन सागर में चीन और अमेरिका आमने-सामने आ गए हैं। अमेरिकी सेना ने यह कदम ऐसे समय उठाया है। जब चीनी बमवर्षक और लड़ाकू जेट विमान दक्षिण चीन सागर में ताइवान द्वीप के निकट अवैध रूप से प्रवेश किए। इस घटना के बात ताइवान की सेना सतर्क हो गई और उसने अपने लड़ाकू विमानों के लिए तैयार रहने को कहा। आखिर अमेरिका ने ऐसा कदम क्यों उठाया। क्या होंगे इसके निहितार्थ। अमेरिकी इंडो-पैसिफिक कमांड ने अपने एक बयान में कहा समुद्र की स्वतंत्रता को सुनिश्चित करने के लिए समुद्री सुरक्षा को बढ़ावा देने वाली साझेदारियों का निर्माण करने के लिए यह कदम उठाया गया है। कमांड ने कहा कि अपने सहयोगियों और भागीदारों को आश्वस्त करने के लिए अमेरिकी नौसेना ने की यह पहल है। कमांड ने कहा कि दुनिया में दो तिहाई व्यापार वाले इसी मार्ग से होता है। ऐसे में यह जरूरी है कि इस मार्ग की सुरक्षा को सुनिश्चित किया जाए। कमांड ने कहा कि यह महत्वपूर्ण है कि इस क्षेत्र में हम अपनी उपस्थिति बनाए रखें। अमेरिका ने यह कदम ऐसे समय उठाया है जब चार दिन पूर्व अमेरिका के नए राष्ट्रपति जो बाइडन ने कार्यभार संभाला है। गौरतलब है, कि हाल में चीन की सरकार ने अपने कोस्ट गार्ड को जरूरत पड़ने पर विदेशी जहाजों पर फायरिंग करने की अनुमति दे दी है। चीन की नेशनल पीपुल्स कांग्रेस की स्थायी समिति ने तटरक्षक कानून को पारित किया है। कहीं ने कहीं अमेरिका चीन के इस कानून से खफा है। इसके अनुसार, विदेशी जहाजों से उत्पन्न खतरों को रोकने के लिए तट रक्षक को सभी जरूरी संसाधनों का इस्तेमाल करने की अनुमति है। इस कानून के तहत जरूरत पड़ने पर विभिन्न प्रकार के हथियारों का इस्तेमाल किया जा सकता है। यह अनुमति ऐसे समय दी गई है जब चीन का पूर्व चीन सागर में जापान के साथ और दक्षिण चीन सागर में दक्षिण-पूर्व एशिया के देशों से विवाद चल रहा है। दोनों ही समुद्री क्षेत्रों को चीन अपना इलाका बताता है और वहां पर कब्जा जमाने की जब-तब कोशिश करता रहता है। माना जा रहा है कि इस फैसले से वह दक्षिण चीन सागर से विदेशी जहाजों के गुजरने में बाधा खड़ी करने की कोशिश कर सकता है। दक्षिण चीन सागर पर चीन, फिलीपींस, वियतनाम, मलेशिया, ताईवान और ब्रुनेई छह देश अपना-अपना अधिकार जताते रहे हैं। करीब छह वर्ष पूर्व बीजिंग ने दक्षिण चीन सागर पर अपना प्रभुत्व जमाना शुरू किया। चीन ने यहां कई कृतिम द्वीप बनाकर सैनिक बेस भी तैयार किया। आज यहां के कई द्वीपों पर चीन सैनिक तैनात हैं। उन्होंने यहां से गुजरने वालों जहाजों को भी परेशान किया। चीन का दावा है कि करीब 2 हजार वर्ष पूर्व उसके मुछआरों ने सागर के द्वीपों की खोज की। हालांकि, द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान दक्षिण चीन सागर पर जापान का कब्जा था, लेकिन युद्ध के बाद यहां के कई द्वीपों पर चीन ने कब्जा कर लिया और इसके बाद एक नक्शा भी छापा। सत्तर के दशक में यहां गैस और तेल के भंडार पता चलते ही यहां दुनिया की नजर गई और विवाद शुरू हो गया।
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