बुधवार, 13 जनवरी 2021

संपूर्ण देश में सूर्य पूजा का पर्व 'मकर सक्रांति'

मकर संक्रांति का धार्मिक और वैज्ञानिक महत्व !!
‘रसो वै सः’- भारतीय तत्ववेत्ताओं ने जीवन को इसी रूप में परिभाषित किया है। रस यानि आनन्द-उल्लास, उमंग-उछाह। ये अवसर जीवन में बार-बार आएं, अनवरत आएं और सदा-सदा के लिए बने रहें, इसीलिए देवसंस्कृति में पर्वों का सृजन किया गया। निर्मल आनन्द के पर्याय ये सभी पर्व लोक-जीवन को देव-जीवन की ओर उन्मुख करते हैं। परन्तु इनमें भी मकर-संक्रान्ति के साथ ये अनुभूतियां कुछ अधिक ही गहराई के साथ जुड़ी हैं। यह जन-आस्था तथा लोकरुचि का पर्व है। इसे समूची सृष्टि में जीवन अनुप्राणित करने वाले भगवान सूर्य की उपासना का पर्व भी कहते हैं। इस अवसर पर उमड़ने वाले सात्विक भव देश की सांस्कृतिक चेतना को पुष्ट करते हैं। तभी तो लोकसंस्कृति पर्व-मकर संक्रान्ति सम्पूर्ण भारत में बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है।

मकर संक्रांति लगभग प्रतिवर्ष 14 जनवरी को ही पड़ती है। सूर्य के उत्तर से दक्षिण की ओर बढ़ते जाने की अवधि को दक्षिणायन तथा दक्षिण से उत्तर की ओर के यात्राकाल को उत्तरायण कहते हैं।
 वृत के 360 अंशों के समान ही पृथ्वी की परिक्रमापथ 360 अंशों में विभाजित है। इसके अण्डाकार परिक्रमापथ को 30-30 अंशों के समूहों में 12 राशियों में विभक्त किया गया है। पृथ्वी की परिक्रमा करते समय सूर्य जिस राशि में दिखाई देता है, वही सूर्य की राशि कही जाती है। संक्रांति बारह राशियों में सूर्य का संक्रमण है-रवेः संक्रमण राषौ संक्रान्तिरिति कथ्यते। मकर संक्रान्ति नवम् धनु राशि से दशम मकर राशि में संक्रमण है।

चन्द्रमास साढ़े उन्तीस दिन का एवं चन्द्रवर्ष 354 दिन का होता है, परन्तु सौर-दिन 30 दिन का एवं सौर वर्ष 365 दिन 6 घण्टे का होता है, चन्द्रवर्ष निश्चित नहीं होता है, उसमें परिवर्तन आता रहता है। इसी परिवर्तन के कारण चार वर्षों में फरवरी उन्तीस दिन की होती है। सूर्य का संक्रमण एक निश्चित अवधि एवं समय में सम्पन्न होता है। इसी कारण मकर-संक्रान्ति प्रायः हर वर्ष 14 जनवरी को ही आती है।

संक्रमण पर्व मकर संक्रान्ति का मकर शब्द का भी विशेष महत्व माना जाता है। इस महत्व को अलग-अलग भाषियों ने अपने-अपने ढंग से प्रतिपादित किया है। हरीति ऋषि के अनुसार, मकर मत्स्य वर्ग के जल-जन्तुओं में सर्वश्रेष्ठ है- मत्स्यानां मकरः श्रेष्ठो। इसीलिए यह गंगा का वाहन है। प्रायः सभी शास्त्रकारों ने गंगा को मकरवाहिनी माना है।

कामदेव की पताका का प्रतीक मकर है। अतएव कामदेव को मकरध्वज भी कहा जाता है। बिहारी सतसई में महाकवि बिहारी ने भगवान श्रीकृष्ण के कुण्डलों का आकार मकरकृत बताया है। मकराकृत गोपाल के कुण्डल सोहत कान। ध्स्यो मनो हिय धर समर ड्येढी लसत निसान॥

ज्योतिष गणना की बारह राशियों में से दसवीं राशि का नाम मकर है। पृथ्वी की एक अक्षांश रेखा को मकर रेखा कहते हैं। श्रीमद्भागवत के अनुसार, सुमेरु पर्वत में उत्तर में दो पर्वत में से एक का नाम मकर पर्वत है। तमिल वर्ष में ‘तई’ नामक महिला का उल्लेख है, जो सूर्य के मकर रेखा में आने के कारण उसका नामकरण हुआ !!

पुराणों में मकर संक्रान्ति का काफी विस्तार से वर्णन मिलता है। पुराणकारों ने सूर्य के दक्षिण से ऊर्ध्वमुखी होकर उत्तरस्थ होने की वेला को संक्रान्ति पर्व एवं संस्कृति पर्व के रूप में स्वीकार किया है। पौराणिक विवरण के अनुसार, उत्तरायण देवताओं का एक दिन एवं दक्षिणायन एक रात्रि मानी जाती है।

यह वैज्ञानिक सत्य है कि उत्तरायण में सूर्य का ताप शीत के प्रकोप को कम करता है। शास्त्रकारों ने भी मकर संक्रान्ति को सूर्य उपासना का विशिष्ट पर्व माना है। इस अवसर पर भगवान सूर्य की गायत्री महामंत्र के साथ पूजा-उपासना, यज्ञ-हवन का अलौकिक महत्व है। मकर संक्रान्ति पर्व के देवता सूर्य को देवों में विश्व की आत्मा कहकर अलंकृत किया गया है। आयुर्वेद के मर्मज्ञों का मानना है, शीतकालीन ठण्डी हवा शरीर में अनेक व्याधियों को उत्पन्न करती है।

इसीलिए तिल-गुड़ आदि वस्तुओं का इस अवसर पर प्रयोग करने का विशेष विधान है। चरक संहिता स्पष्ट करती है:- ’शीते शीतानिलर्स्पषसंरुद्धो बलिनां बली। रसं हिन्स्त्यतो वायुः शीतः शीते प्रयुप्यति।’ इस प्रकोप के निवारण के लिए आयुर्विज्ञान विशेष घी-तेल, तिल-गुड़, गन्ना, धूप और गर्म पानी सेवन की सलाह देते हैं।

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