काफी समय से दोनोंपक्षों के बीच बातचीत होती है। लेकिन किसी तरह का कोई निष्कर्ष नहीं निकलता है। जब एक दूसरे की बात से सहमत नही होना है या यह कहे कि कुछ समझना नहीं। कुछ कदम आगे पीछे होना नहीं तो फिर सरकार किसानों से बातचीत का यह पाखंड क्यों करती है? जब किसान अपनी एक ही बात हर बार स्पष्ट कर रहा है कि बिना कानून रद्द करवाये। लौटने को तैयार नहीं तो बातचीत क्यों औऱ कैसी ? क्यों किसानों को अगली मीटिंग की तिथि बातचीत करने के लिए दी जाती है। यदि केन्द्र सरकार के ये कृषि कानून डेढ़ दो साल किसी काम के नहीं है तो बाद में किस काम आयेंगे! हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री एवं नेता प्रतिपक्ष भूपेंद्र हुड्डा कह रहे हैं कि सरकार किसानों की मांग मानने की बजाय आंदोलन खत्म करवाने का प्रयास कर रही है। अब किसान अनपढ़ व भोला नही है। इनके बच्चे पढ़े लिखे हैं। सब कुछ समझते हैं। किसान संघर्ष समिति भी इस बात को बखूबी से समझ रही है। इसीलिए जैसे जैसे छब्बीस जनवरी निकट आती जा रही है। वैसे-वैसे सरकार की चालाकियां बढ़ती जा रही हैं। परन्तु किसान अपनी ट्रैक्टर परेड की सफल तैयारियों में पूरी तरह से जुटे हैं तो सरकार इस आंदोलन को टालने के चक्कर में प्रयासरत है। हिंदुस्तान में गणतंत्र ही सच्ची परीक्षा का समय है। यह गणतंत्र है-जनतंत्र है, तानाशाही औऱ निरंकुशता नहीं चलेगी। पीएम साहिब समय रहते इस बात को हल कर दीजिए नहीं तो दिल्ली में किसान व पुलिस के बीच टकराव की नौबत आने की आशंका है। इससे हंगामा होगा। किसानों ने सरकारी प्रस्ताव ठुकरा दिया है और एमएसपी पर भी गारंटी मांगी है। इसे मौखिक आदेश मानने से इंकार कर दिया है। झांकिया दोनों तरफ निकाली जायेंगी। सरकार स्किल इंडिया और कौशल विकास की झांकिया दिखायेगी तो किसान अपनी दुख दर्द की झांकियों का प्रदर्शन करेंगे। अब आप समझ सकते हो, कि बात कहां तक पहुंच गयी है। साहब... कुछ मन की बात से बाहर आइए और जन की बात सुनिये और समझिये। पीएम मोदी यह राजहठ आपके किसी काम नहीं आएगा।
राणा ओबरॉय
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