अकांशु उपाध्याय
नई दिल्ली। 26 जनवरी को राजपथ पर भव्य गणतंत्र दिवस समारोह होना है। जहां तीनों सेनाएं कदम ताल मिलते हुए परेड करेंगी। वहीं राष्ट्रपति को 21 तोपों की सलामी दी जाएगी। भारत में 21 तोपों की सलामी देने की परंपरा कोई नई नहीं है। लेकिन क्यों दी जाती है 21 तोपों की ही सलामी और कब-कब दी जाती है। क्या है इसका इतिहास यह सभी को जरूर जानना चाहिए। तोपों को चलाने का इतिहास मध्ययुगीन शताब्दी से शुरू हुआ, उस समय सेनाएं ही नहीं बल्कि व्यापारी भी तोपें चलाते थे। दरअसल पहली बार 14वीं शताब्दी में तोपों को चलाने की परंपरा उस समय शुरू हुई जब कोई सेना समुद्री रास्ते से दूसरे देश जाती थी और तट पर पहुंचने के बाद तोपों को फायर करके बताते थे कि उनका उद्देश्य युद्ध करना नहीं है। जब व्यापारियों ने सेनाओं की इस परंपरा को देखा तो उन्होंने भी एक देश से दूसरे देश की यात्रा करने के दौरान तोपों को चलाना शुरू कर दिया था। परंपरा यह हो गई कि जब भी कोई व्यापारी किसी दूसरे देश पहुंचता या सेना किसी अन्य देश के तट पर पहुंचती तो तोपों को फायर करके यह संदेश दिया जाता था कि वह लड़ने के उद्देश्य से नहीं आए हैं। उस समय सेना और व्यापारियों की और से 7 तोपों को फायर किया जाता था। तब जहाजों पर सात तोपें हुआ करती थीं क्योंकि ऐसा माना जाता है कि बाइबिल में सात की संख्या को शुभ माना जाता है। जैसे-जैसे विकास हुआ, समुद्री जहाज भी बड़े बनने लगे और फायर करने वाली तोपों की संख्या में भी वृद्धि हुई। 17वीं शताब्दी में पहली बार ब्रिटिश सेना ने तोपों को सरकारी स्तर पर चलाने का काम शुरू किया और तब इनकी संख्या 21 थी। उन्होंने शाही खानदान के सम्मान में तोपों को चलाया था और संभावित रूप से इसी घटना के बाद दुनिया भर में सलामी देने और सरकारी खुशी मनाने के लिए 21 तोपों की सलामी की रीति चल पड़ी। 18वीं शताब्दी में अमेरिका ने इसे सरकारी रूप से लागू कर दिया था। पहली बार 1842 में अमेरिका में 21 तोपों की सलामी अनिवार्य कर दी गई थी और तकरीबन 40 साल बाद इस सलामी को राष्ट्रीय सलामी को सरकारी तौर पर लागू कर दिया गया। 18वीं से 19वीं शताब्दी के शुरू होने तक अमेरिका और ब्रिटेन एक दूसरे के प्रतिनिधिमंडलों को तोपों की सलामी देते रहे और इसे सरकारी तौर पर मान्यता दे दी।
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