सड़क पर संघर्ष करने फिर लौट आये अखिलेश यादव राशिद अली खोजी
हरिओम उपाध्याय
लखनऊ। केन्द्र सरकार के खिलाफ कृषि कानूनों को लेकर किसानों का आक्रोश चरम पर है। किसान आंदोलन ने भाजपा के खिलाफ विपक्ष को फिर से एक बड़ा अवसर देने का काम किया है। उत्तर प्रदेश में इस किसान आंदोलन का हर आंदोलन की भांति ही व्यापक प्रभाव नजर आया है। यहां मुख्य विपक्षी दल समाजवादी पार्टी ने किसान आंदोलन का समर्थन करने के साथ ही अपने नेता अखिलेश यादव के नेतृत्व में किसान यात्रा अभियान छेड़ दिया है। किसान यात्रा को शुरू कराने के लिए कन्नौज जाने के लिए निकले अखिलेश यादव को यूपी सरकार की 'पाबंदी' के बाद पुलिस ने घर के बाहर ही रोक दिया। इससे पूरे प्रदेश में सपाईयों में गजब का जोश नजर आया और हर जिले में सपाईयों ने जोरदार प्रदर्शन किया। आखिरकार फिर से एक यात्रा के सहारे सपाईयों को अखिलेश यादव के रूप में सड़क पर सत्ता के खिलाफ एक जोशीला कमांडर खड़ा नजर आया है। कार्य बात राजनीति की हो या सामाजिक, शैक्षिक और अन्य किसी भी क्षेत्र की संघर्ष ही वह पारस है, जो पत्थरीला होने के बावजूद भी खुद को छूकर चलने वालों का व्यक्तित्व स्वर्णिम बनाने में कोई कसर बाकी नहीं छोड़ता। शर्त यही है कि संघर्ष रूपी पारस पर हमारी परिश्रम का रगड़ा कुछ तगड़ा होना चाहिए। हम बात भारतीय राजनीति की करें तो जेपी आंदोलन ने संघर्ष से शिखर तक पहुंचने का फार्मूला अभावग्रस्त और संसाधनविहीन व्यवस्था के बीच युवाओं को दिखाया था। इसी आंदोलन ने देश की राजनीतिक दिशा व दशा को बदला और देश को भविष्य के अनेक राजनेता मिले। आज हम बिहार से बंगाल तक और देहरादून से दिल्ली तक कुछेक नेताओं को युवा राजनीतिक कार्यकर्ताओं के रोल माॅडल के रूप में देखते हैं, उनके व्यक्तित्व के निखार की बूटी की जड़ जेपी आंदोलन का संघर्ष ही रहा है। उत्तर प्रदेश में ऐसे ही युवा संघर्ष सत्ता को पलटने में सफल रहे है। आज समाजवादी पार्टी का राष्ट्रीय नेतृत्व संभाल रहे अखिलेश यादव भी ऐसे ही युवा संघर्षशील नेता हैं।
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