कांग्रेस के मैराथन मंथन का औचित्य
पालूराम
नई दिल्ली। एक बड़ी बैठक ही नहीं बल्कि लगभग एक साल की मैराथन चर्चा के बाद निष्कर्ष निकलता यह दिख रहा है। कि कांग्रेस नेता राहुल गांधी को ही पार्टी अध्यक्ष की जिम्मेदारी देना चाहते हैं। और राहुल ने भी कहा कि पार्टी मुझे जो भी जिम्मेदारी देगी उसे मैं स्वीकार करूंगा। इस बीच कांग्रेस के कार्यकर्ता रह चुके और मौजूदा समय में राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के नेता शिवानंद तिवारी ने सोनिया गांधी को बहुत अच्छी सलाह दी थी। कांग्रेस के नेताओं ने राहुल भक्ति दिखाने की जगह शिवानंद तिवारी की सलाह पर अगर विचार किया होता तो कांग्रेस के भविष्य को नयी दिशा मिल सकती थी। शिवानंद तिवारी ने सोनिया गांधी को सलाह देते हुए कहा कि आज सोनिया गांधी के सामने एक यक्ष प्रश्न है। पार्टी या पुत्र या यूं कहिए कि पुत्र या लोकतंत्र कांग्रेस की महत्वपूर्ण बैठक होने वाली है। मैं नहीं जानता हूं कि मेरी बात उन तक पहुंचेगी या नहीं लेकिन देश के समक्ष जिस तरह का संकट मुझे दिखाई दे रहा है। वही मुझे अपनी बात उनके सामने रखने के लिए मजबूर कर रहा है। शिवानंद की सलाह सिर्फ एक पार्टी के प्रति पूर्व निष्ठा तक नहीं सीमित है। बल्कि देश के लोकतंत्र से उसे जोड़ा गया है। कांग्रेस के कुछ वरिष्ठ नेताओं ने भी इसी तरह की बात एक चिट्ठी के माध्यम से उठाई थी। देश में एक ध्रुवीय होती राजनीति के चलते कांग्रेस का अथवा सबसे बड़े विपक्षी दल का मजबूत होना बहुत जरूरी है। अगर राहुल गांधी को बिना चुनाव के कमान सौंप दी जाएगी तो इतने दिन के मंथन का नतीजा क्या माना जाएगा
कांग्रेस के कई सदस्य लगातार संगठन में बदलाव की मांग कर रहे थे। इसी को लेकर पार्टी की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी ने 19 दिसम्बर को बैठक बुलाई थी। इस मीटिंग के बाद राहुल गांधी ने कहा है। कि पार्टी जो भी जिम्मेदारी देगी वह उसे निभाएंगे। खास बात है। कि पार्टी के वरिष्ठ नेताओं ने राहुल से अध्यक्ष पद संभालने का आग्रह किया था।
बीते अगस्त में 23 कांग्रेस नेताओं ने सोनिया गांधी को पत्र लिखा था। इसमें पार्टी में फुल टाइम लीडरशिप की मांग की गई थी। सोनिया को पत्र लिखने वालों में गुलाम नवी आजाद, आनंद शर्मा, कपिल सिब्बल, मनीष तिवारी, शशि थरूर, विवेक तन्खा, मुकुल वासनिक, जितिन प्रसाद, भुपेंद्र सिंह हुड्डा, राजेंद्र कौर भट्टल, एम वीरप्पा मोइली, पृथ्वीराज चव्हाण, पीजे कुरियन, अजय सिंह, रेणुका चैधरी, मिलिंद देवड़ा, राज बब्बर, अरविंदर सिंह लवली, कौल सिंह ठाकुर, अखिलेश प्रसाद सिंह, कुलदीप शर्मा, योगानंद शास्त्री, संदीप दीक्षित का नाम शामिल है। सोनिया के आवास 10 जनपथ पर हुई 19 दिसम्बर की बैठक में गुलाम नबी आजाद, आनंद शर्मा, मनीष तिवारी, शशि थरूर और कई अन्य नेता शामिल हुए। ये नेता पत्र लिखने वाले 23 नेताओं में शामिल थे। बैठक में सोनिया गांधी ने कहा कि सभी नेताओं को साथ मिलकर चलने और संगठन को मजबूत बनाने की जरूरत है। उन्होंने यह भी कहा कि आने वाले समय में संगठन, विभिन्न मुद्दों पर सरकार को घेरने और अन्य मुद्दों पर चर्चा के लिए चिंतन शिविर का आयोजन किया जाएगा। महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण ने बताया, यह पहली बैठक थी। आगे ऐसी बैठकें और होंगी। शिमला और पंचमढ़ी की तर्ज पर चिंतन शिविर भी होगा। उन्होंने कहा अच्छे वातावरण में चर्चा हुई। पार्टी को मजबूत करने के लिए जो भी मुद्दे उठाए गए थे। उनका संज्ञान लिया जाएगा। आगे कुछ लोग बैठेंगे और उनकी बात भी सुनी जाएगी।
बिहार विधानसभा चुनाव और कुछ प्रदेशों के उप चुनावों में कांग्रेस के निराशाजनक प्रदर्शन के बाद भी आजाद और सिब्बल ने पार्टी की कार्यशैली की खुलकर आलोचना की थी। और इसमें व्यापक बदलाव की मांग की थी। इसके बाद वे फिर से कांग्रेस के कई नेताओं के निशाने पर आ गए थे। इसी बीच राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के वरिष्ठ नेता शिवानंद तिवारी ने राहुल गांधी और कांग्रेस पर निशाना नहीं साधा है। बल्कि हितकर सलाह दी है। फेसबुक पर किए अपने पोस्ट के जरिए शिवानंद तिवारी ने सोनिया गांधी को वो दौर याद दिलाया जब उन्होंने प्रधानमंत्री की कुर्सी त्याग दी थी। वह लिखते हैं। आपने प्रधानमंत्री की कुर्सी का मोह त्याग कर कांग्रेस को बचाया था। आज उससे भी ज्यादा महत्वपूर्ण यह है। कि पुत्र मोह त्याग कर देश में लोकतंत्र को बचाने के लिए कदम बढ़ाइए। शिवानंद तिवारी ने 18 दिसम्बर को किए अपने फेसबुक पोस्ट में कहा कि कांग्रेस पार्टी की बैठक होने जा रही है। पता नहीं उस बैठक का नतीजा क्या निकलेगा लेकिन यह स्पष्ट है। कि कांग्रेस की हालत बिना पतवार के नाव की तरह हो गई है। कोई इसका खेवनहार नहीं है। उन्होंने आगे लिखा, राहुल गांधी अनिक्षुक राजनेता हैं। वैसे भी यह स्पष्ट हो चुका है। कि राहुल गांधी में लोगों को उत्साहित करने की क्षमता नहीं है। जनता की बात तो छोड़ दीजिए, उनकी पार्टी के लोगों का ही भरोसा उन पर नहीं है। इसलिए जगह-जगह के लोग कांग्रेस पार्टी से मुंह मोड़ रहे हैं। हालांकि सोनिया गांधी की तारीफ करते हुए तिवारी ने कहा, खराब स्वास्थ्य के बावजूद बहुत ही मजबूरी में सोनिया गांधी कामचलाऊ अध्यक्ष के रूप में किसी तरह पार्टी को खींच रही हैं। मैं उनकी इज्जत करता हूं। मुझे याद है। सीताराम केसरी के जमाने में पार्टी किस तरह डूबती जा रही थी। वैसी हालत में उन्होंने कांग्रेस पार्टी की कमान संभाली थी। और पार्टी को सत्ता में पहुंचा दिया था। शिवानंद तिवारी ने कहा कि उनके विदेशी मूल को लेकर तब काफी बवाल हुआ था। बीजेपी की बात छोड़ दीजिए, कांग्रेस पार्टी में भी उनके नेतृत्व को लेकर गंभीर संदेह व्यक्त किया गया था। शरद पवार आदि उसी जमाने में सोनिया के विदेशी मूल के ही मुद्दे पर पार्टी से अलग हुए थे। इसके बाद 2004 के आम चुनाव का जिक्र करते हुए शिवानंद तिवारी ने कहा, हालांकि 2004 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को मिला बहुमत सोनिया गांधी के ही नेतृत्व में मिला था। इसलिए सोनियाजी ही प्रधानमंत्री की कुर्सी की स्वाभाविक अधिकारी थीं लेकिन उनका प्रधानमंत्री नहीं बनना असाधारण कदम था। उसी कुर्सी के लिए हमारे देश के दो बड़े नेताओं ने क्या-क्या नाटक किया था। हमारे जेहन में है। उन्होंने आगे लिखा। अपनी जगह पर मनमोहन सिंह को उन्होंने प्रधानमंत्री के रूप में नामित किया था। यूपीए के नेताओं का उनके नाम पर समर्थन पाने के लिए वे सबसे उनको मिला रही थीं। उसी क्रम में मनमोहन सिंह को लेकर लालू प्रसाद का समर्थन हासिल करने के लिए उनके तुगलक लेन वाले आवास पर आई थीं। संयोग से उस समय मैं वहां उपस्थित था। बहुत नजदीक से उनको देखने का अवसर उस दिन मुझे मिला था। प्रधानमंत्री की कुर्सी त्याग कर आई थीं। उस दिन का उनका चेहरा मुझे आज तक स्मरण है। शिवानंद तिवारी ने आगे लिखा, अत मेरे अंदर का पुराना राजनीतिक कार्यकर्ता मुझे बोलने के लिए दबाव दे रहा है। संभव है। जिस पार्टी में मैं हूं। उसका नेतृत्व मेरी इस बात को पसंद नहीं करें. लेकिन अब मैं किसी के पसंद और नापसंद से ज्यादा अहमियत अपनी आत्मा की आवाज को देता हूं और उसी की आवाज के अनुसार मैं सोनिया गांधी से नम्रतापूर्वक अपील करता हूं कि जिस तरह से आपने प्रधानमंत्री की कुर्सी का मोह त्याग कर कांग्रेस को बचाया था। आज उससे भी ज्यादा महत्वपूर्ण यह है। कि पुत्र मोह त्याग कर देश में लोकतंत्र को बचाने के लिए कदम बढ़ाइए।
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