श्रीराम मौर्य
देहरादून। पिथौरागढ- टनकपुर के बीच बन रहा आँलवेदर रोड सवालों के घेरे में आ गया है। किसी भी मौसम में बंद नहीं होने के दावे के साथ शुरू किया गया। एक हजार करोड़ से अधिक का यह प्रोजेक्ट यात्रियों के लिए मुसीबत बन गया है। सामाजिक कार्यकर्ता हरपाल राणा द्वारा मांगी गयी सूचना के आधार पर सरकारी आंकड़े बता रहे हैं, कि महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट की यह सड़क मलवा आने से वर्ष भर मैं 182 बार बंद हुई। मार्ग बंद होने से कई बार यात्रियों की 18-18 घंटे तक फजीहत हुई। यह क्षेत्र संवेदनशील क्षेत्र है। क्योंकि सीमांत पिथौरागढ से चीन और नेपाल की सीमा लगी है।चम्पावत से 'मीडिया4सिटीजन' के संवाददाता अर्जुन सिंह ने यह जानकारी देते हुए बताया कि सामरिक महत्व को देखते हुए केन्द्र ने टनकपुर- पिथौरागढ हाईवे को आँलवेदर रोड में तब्दील करने की मंजूरी वर्ष 2016 में दी थी। वर्ष 2017 में पहाड़ियों को काटकर निर्माण शुरू हुआ। आशा थी कि पिथौरागढ और चम्पावत जिलों को राहत मिलेगी लेकिन हालत जस के तस हैं। चम्पावत जिला आपदा कंट्रोल रूम के आंकड़े बताते हैं कि इसी साल जनवरी से अब तक मार्ग 182 बार बंद हो चूका है।कई बार तो यह दो तीन दिन तक बंद रहा है। टनकपुर-पिथौरागढ तक150 किलोमीटर राजमार्ग को आँलवेदर रोड में तब्दील करने केलिए लगभग 1078 करोड़ रुपये की मंजूरी मिली थी। मार्ग निर्माण के वक्त दावा था कि निर्माण पूरा होने के बाद टनकपुर से पिथौरागढ महज चार से पांच घंटे में पहुँचा जा सकेगा लेकिन अब इस रोड पर खतरा पहले से अधिक बढ़ गया है। आँलवेदर रोड की चौड़ाई 36 फीट रखी गयी। मकसद था कि पहाडी से मलवा भी आ जाए तो सड़क का काफी हिस्सा चलने लायक रहेगा जिसमें रुकावट नहीं आएगी।राजमार्ग पर दरकते पहाड़ हाईवे के पूरे हिस्से पर भारी पड़ रहे हैं। चम्पावत, स्वाला औरअमोडी के आसपास तैयार आँलवेदर रोड भी जमीदोज हो चुका है। परियोजना में पहले से कमजोर घोषित पहाड़ों का राँक ट्रीटमेट भी शामिल था। चम्पावत जिले में 12 से अधिक स्थानों पर राँक ट्रीटमेंट किया गया है। इसके तहत पहाडियों से भीतर तक ड्रिल करा कर मोटे सरिया डाले गए हैं। इनको एक जाल से बाँधा गया है। जाल के ऊपर से चटाईनुमा चादर डाली गई है लेकिन फिर भी कुछेक स्थानों पर पहाडी दरकी है।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
Thank you, for a message universal express.