इस बीच किसान आंदोलन को लेकर राजनीति और तेज हो गयी। कांग्रेस सांसद राहुल गांधी की अगुवाई में वरिष्ठ नेता मार्च के बाद राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को दो करोड़ हस्ताक्षरों के साथ ज्ञापन सौंपेंगे, जिसमें केंद्रीय कृषि कानूनों को निरस्त करने का आग्रह किया जाएगा। किसान आंदोलन की बड़ी वजह एमएसपी ऐसे ही नहीं बन गया है। इसके पीछे का कारण पंजाब और हरियाणा के किसानों की खुशहाली के अतीत से जुड़ा हुआ है। पंजाब और हरियाणा के किसानों को गेहूं और चावल उगाने के बदले लाभ देने के उद्देश्य से एमएसपी को शुरू किया गया था, जिसके परिणाम 70-80 के दशक में देश को मिलने भी शुरू हुए थे। आज देश में अनाज भंडारण को बनाए रखने में एमएसपी की बड़ी भूमिका मानी जाती है।
सीधे सपाट शब्दों में एमएसपी को आमजन न्यूनतम समर्थन मूल्य तक ही समझ पाते हैं, लेकिन वास्तविक तौर पर एमएसपी वह है जो वर्ष में दो बार रबी और खरीफ की फसल के समय फसल कटान से पहले घोषित की जाती है। इसका सीधा सा अर्थ है कि सरकार किसानों को गारंटी देती है कि उनको फसल का एक निश्चित मूल्य जरूर मिलेगा। अन्य माध्यमों से फसल नहीं बिकने पर सरकार किसानों की फसल की खरीद फरोख्त एमएसपी पर करेगी। किसानों की खुशहाली के लिए यह व्यवस्था कुछ बड़ी फसलों के लिए आर्थिक मामलों की कैबिनेट कमेटी द्वारा एक कमीशन की सिफारिश के बाद की गई थी।
इसके साथ ही एमएसपी के तहत बुवाई से लेकर कृषि श्रम तक कई तरह की कीमतों को सरकार इसमें शामिल करती है। किसान भी दूरगामी परिणामों को देखते हुए इसी वजह से ही आंदोलन की धुरी एमएसपी को बनाए हुए हैं।
हरियाणा और पंजाब के किसानों के विरोध का कारण कृषि जानकार एमएसपी को ही बता रहे हैं, क्योंकि एमएसपी की शुरुआत ही इन दोनों राज्यों के किसानों को लाभ देने के लिए हुई थी। 1980 के दशक में हरित क्रांति की शुरुआत भी इन्हीं राज्यों से शुरू होकर इतिहास में दर्ज हो गई थी। जिस व्यवस्था से किसान समृद्ध हुए हैं, नए कानून से उन्हें उसी व्यवस्था को खत्म होने का खतरा लग रहा है।
वर्तमान में 23 प्रमुख फसलों को एमएसपी की व्यवस्था में शामिल किया गया है। इनमें गेहूं, चावल, जौ, ज्वार, बाजरा, मक्का और रागी के साथ ही पांच तरह की दालों और 8 किस्म के तेल बीज, कच्चा कपास व जूट, गन्ना और वीएफसी तंबाकू शामिल हैं। देश के लगभग 9.0 करोड़ टन अनाज भंडारण में भी एमएसपी को बड़ा कारण माना जाता है। कृषि लागत एवं मूल्य आयोग (सीएसीपी) एमएसपी के अंतर्गत आने वाली फसलों की कीमतें तय करता है। वर्ष 1965 में हरित क्रांति के समय एमएसपी की घोषणा की गई थी। वर्ष 1966-67 में गेहूं की खरीद के साथ इसकी शुरुआत हुई। एमएसपी का लाभ उन्हीं किसानों को मिल पाता है जिनके पास औसतन 5 हेक्टेयर से अधिक कृषि योग्य भूमि होती है। हरियाणा और पंजाब के किसानों में ऐसे किसानों की संख्या काफी अधिक है। इन दोनों राज्यों सहित देश के अन्य राज्यों में 86 प्रतिशत ऐसे किसान हैं जिनके पास औसतन 2 हेक्टेयर से भी कम जमीन है। कई किसानों के पास कृषि भूमि ही नहीं है। ऐसे में वह एमएसपी के दायरे से बाहर हो जाते हैं और उन्हें इसका लाभ ही नहीं मिल पाता है।
इसीलिए कहा जा रहा है कि किसानों की धुरी एमएसपी है। इसके कारण ही किसानों को अपनी फसल का उचित मूल्य मिल पाता है, यदि उन्हें एमएसपी का लाभ ही नहीं मिलेगा तो वह बर्बाद हो जाएंगे। केंद्र सरकार जब तक तीनों नए कृषि कानूनों को रद्द नहीं करेगी या वापस नहीं लेगी उनकी लड़ाई जारी रहेगी। एमएसपी किसानों के बेहद महत्वपूर्ण व्यवस्था है। पंजाब-हरियाणा को छोड़कर देश के 71 प्रतिशत किसानों को एमएसपी का अर्थ ही नहीं पता है। हरियाणा के किसानों से ही वहां के मुख्यमंत्री ने पंगा ले लिया है।
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