मठ में हुआ गौ पूजन, महंत नारायण गिरि ने बताया गौ सेवा का महत्व
रोशन कुमार
गाजियाबाद। गोपाष्टमी के पर्व पर श्री दुद्धेश्वर नाथ महादेव मठ मन्दिर में महन्त नारायण गिरि जी महाराज गौशाला में 65 गौ माता व गौ वंश की पूजा की। इस अवसर पर श्री दूधेश्वर वेद विद्यालय के प्रधानाचार्य तोयराज उपाध्याय जी सहित समस्त आचार्यों ने वैदिक मंत्रों द्वारा गौमाता का विधि विधान से पूजन करवाया।
इस अवसर पर महंत नारायण गिरि ने बताया कि गोपाष्टमी ब्रज में संस्कृति का एक प्रमुख पर्व है। गायों की रक्षा करने के कारण भगवान श्रीकृष्ण जी का अति प्रिय नाम ‘गोविन्द’ पड़ा। कार्तिक, शुक्ल पक्ष, प्रतिपदा से सप्तमी तक गो-गोप-गोपियों की रक्षा के लिए गोवर्धन पर्वत को धारण किया था। 8वें दिन इन्द्र अहंकार रहित होकर भगवान की शरण में आये। कामधेनु ने श्रीकृष्ण का अभिषेक किया और उसी दिन से इनका नाम गोविन्द पड़ा। इसी समय से अष्टमी को गोपोष्टमी का पर्व मनाया जाने लगा, जो कि अब तक चला आ रहा है।
इस दिन प्रात: काल गायों को स्नान कराएँ तथा गंध-धूप-पुष्प आदि से पूजा करें और अनेक प्रकार के वस्त्रालंकारों से अलंकृत करके ग्वालों का पूजन करें, गायों को गो-ग्रास देकर उनकी प्रदक्षिणा करें और थोड़ी दूर तक उनके साथ में जाएँ तो सभी प्रकार की अभीष्ट सिद्धि होती हैं। गोपाष्टमी को सांयकाल गायें चरकर जब वापस आयें तो उस समय भी उनका अभिवादन और पंचोपचार पूजन करके कुछ भोजन कराएँ और उनकी चरण रज को माथे पर धारण करें। उससे सौभाग्य की वृद्धि होती है।
भारतवर्ष के प्राय: सभी भागों में गोपाष्टमी का उत्सव बड़े ही उल्लास से मनाया जाता है। विशेषकर गोशालाओं तथा पिंजरा पोलो के लिए यह बड़े ही महत्त्व का उत्सव है। इस दिन गोशालाओं की संस्था को कुछ दान देना चाहिए। इस प्रकार से सारा दिन गो-चर्चा में ही लगना चाहिए। ऐसा करने से ही गो वंश की सच्ची उन्नति हो सकेगी, जिस पर हमारी उन्नति सोलह आने निर्भर है। गाय की रक्षा को हमारी रक्षा समझना चाहिए। इस दिन गायों को नहलाकर नाना प्रकार से सजाया जाता है और मेंहदी के थापे तथा हल्दी रोली से पूजन कर उन्हें विभिन्न भोजन कराये जाते हैं।
गौ या गाय हमारी संस्कृति की प्राण है। यह गंगा, गायत्री, गीता, गोवर्धन और गोविन्द की तरह पूज्य है। शास्त्रों में कहा गया है- ‘मातर: सर्वभूतानां गाव:’ यानी गाय समस्त प्राणियों की माता है। इसी कारण आर्य-संस्कृति में पनपे शैव, शाक्त, वैष्णव, गाणपत्य, जैन, बौद्ध, सिख आदि सभी धर्म-संप्रदायों में उपासना एवं कर्मकांड की पद्धतियों में भिन्नता होने पर भी वे सब गौ के प्रति आदर भाव रखते हैं। हम गाय को ‘गोमाता’ कहकर संबोधित करते हैं। मान्यता है कि दिव्य गुणों की स्वामिनी गौ पृथ्वी पर साक्षात देवी के समान हैं।
सनातन धर्म के ग्रंथों में कहा गया है- ‘सर्वे देवा: स्थिता देहे सर्वदेवमयी हि गौ:।’ गाय की देह में समस्त देवी-देवताओं का वास होने से यह सर्वदेवमयी है। मान्यता है कि जो मनुष्य प्रात: स्नान करके गौ स्पर्श करता है, वह पापों से मुक्त हो जाता है। संसार के सबसे प्राचीन ग्रंथ वेद हैं और वेदों में भी गाय की महत्ता और उसके अंग-प्रत्यंग में दिव्य शक्तियां होने का वर्णन मिलता है। गाय के गोबर में लक्ष्मी, गोमूत्र में भवानी, चरणों के अग्रभाग में आकाशचारी देवता, रंभाने की आवाज़ में प्रजापति और थनों में समुद्र प्रतिष्ठित हैं।
मान्यता है कि गौ के पैरों में लगी हुई मिट्टी का तिलक करने से तीर्थ-स्नान का पुण्य मिलता है। यानी सनातन धर्म में गौ को दूध देने वाला एक निरा पशु न मानकर सदा से ही उसे देवताओं की प्रतिनिधि माना गया है।
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