अरविन्द तिवारी की रिपोर्ट
करनाल। भारत के अलावा सात समंदर पार विदेशों में भी प्रवासी महिलायें पति की लंबी उम्र की कामना के लिए आज करवा चौथ का निर्जला व्रत रखती हैं और रात में चांद देखने के बाद अपना व्रत खोलती हैं। लेकिन हरियाणा के करनाल जिले के औगंद, गोंदर व कतलाहेड़ी गांव में राजपूत समाज के चौहान वंश में आज भी करवाचौथ का त्यौहार नहीं मनाया जाता। बताया जा रहा है कि सदियों पहले के किसी श्राप से ये तीनों गांँव अभी तक मुक्त नही हो पाये है। जिस वजह से इन गांवों में अरसे से करवा चौथ का व्रत नहीं रखा जाता। इस दिन महिलायें मंदिर में जाकर पूजापाठ करती हैं। इस संबंध में मिली जानकारी के अनुसार अब से लगभग 600 साल पहले करनाल से लगभग 25 किमी दूर राहड़ा की एक लड़की अमृत कंवर का विवाह गोंदर के एक युवक से हुआ था तो उस दौरान जब वह लड़की अपने मायके गयी थी। वहांँ करवा चौथ से एक रात पहले उसने सपने में देखा कि किसी ने उसके पति की हत्या कर शव को बाजरे के खेत में छिपा दिया। उसने यह बात अपने मायके वालों को बतायी तो करवा चौथ के दिन सभी उसके ससुराल गोंदर गये। लेकिन वहांँ उसका पति नहीं मिला और फिर उसके बाद सपने में दिखी जगह पर महिला का पति मृत अवस्था में मिला था। कहा जाता है कि महिला ने उस दिन करवा चौथ का व्रत रखा था, इसलिये उसने घर में अपने से बड़ी महिलाओं को अपना करवा देना चाहा तो उन्होंने अशुभ मानते हुये लेने से मना कर दिया।
इससे व्यथित होकर वह महिला सती हो गई और उसने श्राप दिया कि यदि भविष्य में इस गांँव की किसी भी सुहागिन ने करवा चौथ का व्रत रखा तो उसका सुहाग उजड़ जायेगा। मान्यता है तब से ही इस गांँव की सुहागिन स्त्रियों ने अनहोनी के डर से व्रत रखना छोड़ दिया। हालांकि कतलाहेड़ी और औंगद गांव कुछ सालों बाद गोंदर गांव से अलग हो गये लेकिन उनके वंशज गोंदर के थे, इसलिये यहां भी उस परंपरा को माना जाता है। हालांकि इन गांँवों की बेटियों की शादी बाहर होने के बाद वो करवा चौथ का व्रत कर सकती हैं , तब उनके सुहाग पर किसी तरह का संकट नहीं आता।
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