लिखा तो जा सकता है 'व्यंग्य'
मैं कवि नहीं हूं, होना भी नहीं चाहता। कवि होने के हजारों लफड़े है, मगर फिर भी मैं मंदी पर कविता लिखना चाहता हूं।
मंदी पर कविता लिखना कोई मुश्किल काम नहीं है।
यह ठीक वैसा ही है जैसे नेता, राजनीति पर लिखा जा सकता है, खूब लिखा जा रहा है।
आलम यह है कि हर राजनीति व्यंग्य लिखने वाला खुद को हरिशंकर परसाई नहीं समझ रहा। लेकिन मुझे तो मंदी पर कविता लिखनी है।
कविता लिख लूंगा, इसका मुझे यकीन है।
मंदी पर कविता लिखने के लिए मुझे शब्दों के उत्खनन की जरूरत नहीं पड़ेगी।
बहुत भारी भरकम भाषा की जरूरत होगी।
एकदम आम भाषा मे लिखूंगा, ऐसी भाषा लिखूंगा जो ठेले वाले से लेकर रिक्शा वाला तक समझ लें।
कविता की थीम कुछ इस तरह की रखूंगा कि सीधा सरकार के दिमाग पर असर छोड़े।
सरकार से नेताओं और मंत्रियों तक पहुंचे।
एकाद सरकारी टि्वटर हैंडल से मेरी कविता री- ट्वीट भी की जाएं।
अखबारों में जगह पाएं, सोशल मीडिया पर वायरल हो। कविता के इतने प्रचार से फायदा अंततः मुझे ही होगा।
हो सकता है, इस बहाने मेरी कविता पूरी दुनिया में फैल जाएं।
चंद्रमौलेश्वर शिवांशु 'निर्भयपुत्र'
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