अकांशु उपाध्याय
नई दिल्ली। दिल्ली एनसीआर अलग अलग खबरों का सार यही है कि ये महंगाई नहीं है। ये कालाबाजारी के जरिये जबरन थोपी गई महंगाई है। आलू और प्याज के बढ़े दामों का किसानों को कोई फायदा नहीं मिल रहा है। बिचौलिये ये माल उड़ा रहे है। नारे में कहा जा रहा है कि हम बिचौलियों को हटा रहे हैं, लेकिन असल में बिचौलिये चांदी काट रहे हैं। उत्तर-प्रदेश से अमर उजाला ने लिखा है कि आलू और प्याज को आवश्यक वस्तु अधिनियम से बाहर करने पर मुश्किलें बढ़ गई हैं। रिकॉर्ड के मुताबिक, कोल्ड स्टोरेज में 30 लाख मीट्रिक टन आलू है। आलू की नई फसल आने तक सिर्फ 10 लाख मीट्रिक टन की खपत होगी। फिर भी दाम आसमान छू रहे हैं। इस पर कोई नेता भाषण नहीं दे रहा जनता इसी तरह से महंगाई का शिकार बनती रहे इस विषय पर कोई भी पक्ष या विपक्ष बोलने को तैयार नहीं है सबके जमीर खत्म हो चुके हैं लगता है। एक तो कोरोना दूसरा लॉकडाउन तीसरा नौकरी चली गई चौथा जिसकी नौकरी बची उसकी सैलरी आधी है ऊपर से यह महंगाई। अब देश और देश की राजनीति और देश के लोग किस तरफ जा रहे हैं यह समझ से बाहर हो रहा है।
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