उत्तराखंड के अस्पतालों के बिगड़ते हालत पर हाईकोर्ट ने 34 बिंदुओं पर राज्य सरकार से मांगी रिपोर्ट
पंकज कपूर
देहरादून। हाईकोर्ट ने सरकार से राज्य के सभी अस्पताल और हेल्थ सेंटरों को लेकर 34 बिंदुओं पर रिपोर्ट मांगी है। कोर्ट ने यह भी पूछा है कि राज्य के अस्पतालों की क्या दशा है? उनमें कितने डॉक्टर हैं। कितने डॉक्टरों की कमी है? कितने ब्लड बैंक हैं? इन अस्पतालों में क्या सुविधा है? दवा, बिजली, पानी की क्या व्यवस्था है? चीफ जस्टिस की कोर्ट ने हफ़्ते में पूरी रिपोर्ट मांगी है। इस याचिका पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने इसका स्कोप बढ़ा दिया और सरकार से पूरे उत्तराखंड के अस्पतालों की रिपोर्ट देने को कहा। याचिकाकर्ता के अधिवक्ता अभिजय नेगी कहते हैं कि हाई कोर्ट ने जिन बिंदुओं पर रिपोर्ट मांगी है वह पूरा चार्ट बनाकर हाई कोर्ट के निर्देश के बाद कोर्ट में दिया गया था। इस आदेश के बाद उम्मीद है कि पहाड़ की स्वास्थ्य सुविधाएं ठीक होंगी।
सूबे में स्वास्थ्य सेवाओं का हाल किसी से छिपा नहीं है। जिन सरकारी अस्पतालों पर आम जनता के स्वास्थ्य का जिम्मा है उनमें न तो पर्याप्त डाक्टर हैं और न ही संसाधन। अब तक भी सरकारें इस मर्ज का इलाज नहीं ढूंढ पाई है। प्रदेश में स्वास्थ्य सुविधाओं की बेहतरी के लिए बीते सालों में नीतियां तो बनी मगर धरातल पर उतरी नहीं। यही वजह है कि इतने साल बाद भी सरकारी अस्पतालों में स्वीकृत पदों के अनुरूप न ही डॉक्टरों की तैनाती हुई और न ही अन्य स्वास्थ्य सुविधाओं की उपलब्धता। हैरान करने वाली बात यह कि 13 जनपदों में स्थित सरकारी अस्पतालों में डॉक्टरों के कुल 2715 स्वीकृत पदों के सापेक्ष 1547 पर ही डॉक्टर तैनात हैं। इनमें भी विशेषज्ञ डॉक्टरों की भारी कमी है।
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