शनिवार, 31 अक्तूबर 2020

छक्का मारा, दूसरे शहर में जाकर गिरी थी गेंद

इस भारतीय बल्लेबाज ने जड़ा ऐसा छक्का, दूसरे शहर में जाकर गिरी गेंद


लंदन। ये उस दौर की बात है जब इंडिया में क्रिकेट पनप रहा था. हमें टेस्ट क्रिकेट स्टेटस भी नहीं मिला था। यानी 1932 से पहले की बात बल्लेबाज का नाम कर्नल सीके नायडू कर्नल इसलिए क्योंकि वो होल्कर सेना में सेनापति थे। क्रिकेट में खास इंटरेस्ट और लंबे शॉट्स खेलने का गजब हुनर। ये वो वक्त था जब क्रिकेट में डिफेंस करने को ही क्रिकेट माना जाता था। छक्के मारने की कोई सोच भी नहीं पाता था।
1926 में इंग्लैंड से मेरिलबोन क्रिकेट क्लब (MCC) की टीम भारत आई. इसमें इंग्लैंड के पूर्व एशेज कप्तान अर्थर गिलिगन समेत कई क्रिकेटर आए। इंडिया में यहां अलग अलग धर्मों की टीमें बनीं हुईं थी। मसलन हिंदू, पारसी, मुस्लिम और रेस्ट। एक दिसंबर को हिंदू और एमसीसी के बीच बॉम्बे जिमखाना में मैच हुआ. यहां सीके नायडू ने 153 रनों की पारी खेली. 11 लंबे-लंबे छक्के और 13 चौके जड़े. अंग्रेज इस पारी को देखते रह गए। छक्के मारने के मामले में ये वर्ल्ड रिकॉर्ड था। इस मैच ने सीके नायडू को सुपरहीरो बना दिया। क्रिकेट जानकार बोरिया मजूमदार के मुताबिक उस वक्त एमसीसी के मजबूत बॉलिंग लाइन अप की सीके नायडू ने बखियां उधेड़ दीं। एक के बाद एक आगे बढ़ बढ़ कर छक्के लगाए और वो मैच उस वक्त ट्रांजिस्टर में रिले हुए था। जनता उस वक्त बॉम्बे जिमखाना में खचाखच भर गई थी।
सीके नायडू की इस पारी ने एमसीसी की टीम को ये कहने पर मजबूर कर दिया कि इंडिया टेस्ट क्रिकेट में आने को तैयार है। ये भारतीय क्रिकेट में खास पड़ाव साबित हुआ। इंडिया जाने से पहले गिलिगन पटियाला के राजा भूपिंद्र सिंह से मिले। दोनों की मुलाकात दिल्ली के रोशनारा क्लब में हुई। उस वक्त भूपिंद्र सिंह भारतीय क्रिकेट के मुखिया थे। दोनों में बात हुई और फिर 1928 में बीसीसीआई बनी। इसी टीम ने इंडिया को टेस्ट स्टेटस देने की मुखालफत की और 1932 में पहली बार सीके नायडू की कप्तानी में टीम इंग्लैंड गई। उस वक्त सीके की उम्र 35 साल थी।
वहीं सीके नायडू की बेटी चंद्र नायडू ने एक इंटरव्यू में बताया है, “उस वक्त ये माहौल होता था कि कोई छत पर बैठा है, कोई पेड़ पर चढ़ा है। अगले दिन अखबारों में कार्टून छपा। जिसमें मैदान के बाहर पेड़ पर लोग बैठे हैं और कह रहे हैं। सीके हमें मत मारना। उस वक्त 95 यार्ड्स की बाउंड्री होती थीं और उसके बावजूद वो 15 फीट बाहर ही मारते थे। यानी सीके के छक्कों का कोई मुकाबला नहीं था। वो भी तब जब उस वक्त इतने अच्छे स्ट्रोकिंग के बैट नहीं होते थे। उसी वक्त का एक किस्सा हमने ये भी सुना था कि एक बार सीके नायडू ने बॉम्बे यूनिवर्सिटी के मैदान पर खेलते हुए जो छक्का मारा तो गेंद मैदान के बाहर राजाबाई क्लॉक टावर पर लगी घड़ी पर जा लगी औऱ वो टूट गई।
31 अक्टूबर 1895 को नागपुर में पैदा हुए सीके ने 1915 में क्रिकेट खेलना शुरू कर दिया था जो अगले करीब 50 साल तक जारी रही। इस दौरान सीके ने 7 इंटरनेशनल मैच ही खेले. मगर 207 फर्स्ट क्लास मैच खेले जिनमें 35.94 के औसत से 11825 रन बनाए थे। दाएं हाथ के इस बल्लेबाज ने अपने इस लंबे करियर में नायडू ने 26 सेंचुरी और 58 हाफ सेंचुरी जड़ीं। साथ ही सीके नायडू की पहचान ऑफ-ब्रेक फेंकने वाले स्पिनर के रूप में भी थी जिनके नाम 411 विकेट थीं। क्रिकेट से सीके का वो जुड़ाव रहा कि 1956-57 में उन्होंने अपना आखिरी रणजी मैच 62 साल की उम्र में खेला था।
सीके नायडू का वो जलवा और पॉपुलैरिटी थी कि पहली बार अगर किसी क्रिकेटर को विज्ञापन में लाया गया तो वो सीके नायडू थे। 1941 में सीके नायडू ने बाथगेट लिवर टॉनिक का विज्ञापन किया था। ये अपने आप में बड़ी उपलब्धि थी।             


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