बॉलीवुड में नई ज्योति त्रिपाठी का उदय।
मुंबई। मुंबई को सपनों का शहर कहते हैं और जो लोग कुछ कर दिखाना चाहते हैं उनके सपने मुंबा देवी पूरा भी करती है। उप्र के प्रतापगढ़ जैसे छोटे से शहर से ज्योति त्रिपाठी अभिनय का सपना लिए पांच साल पहले मुंबई आई। "परमावतार श्रीकृष्ण" धारावाहिक से पहचान बनाई। इससे अभिनय का अंकुरण तो हुआ ही पर कविता के संस्कार तो "इनबिल्ट" थे। अक्षरों और शब्दों की इस आराध्या ने एक शानदार पुस्तक लिखी।पलकों में आकाश पर पलकों के भीतर ज्योति की आंखें 2015 के बाद पाँच वर्ष तक मुंबई में संघर्षों की साक्षी रही क्योंकि मुंबई में कोई गॉडफादर या फिल्मी परिवेश तो था नहीं था तो बस सपना, आत्मविश्वास और ईश्वर पर भरोसा पर अक्षरों और शब्दों के स्वर्ण कांचन संयोग ने देश की श्रेष्ठ कवयित्री बना दिया और देश भर में वीररस की कविता का डंका बजा दिया। पर अभिनय की कुलबुलाहट ज़ेहन में कहीं आकार ले रही थी, ये साकार हुई अपनी पहली फिल्म भुताहा से। इसमें ज्योति त्रिपाठी ने पत्रकार का सशक्त मुख्य किरदार निभाया है। दरअसल ये पत्रकारों के जद्दोजहद की कहानी है पर उसमें सुपर नेचुरल थ्रिलर का शानदार तड़का है जो दर्शकों को बहुत पसंद आएगा। विशेषकर ज्योति त्रिपाठी को पत्रकार की भूमिका में देखना सुखद है। इस फ़िल्म के डायरेक्टर 'रूपेश कुमार सिंह' हैं।
बातचीत के दौरान ज्योति ने बताया कि पाँच सालों के संघर्ष के बाद ये मेरी पहली फ़िल्म है।एक लंबे अंतराल के बाद काम न मिलने की वजह से थक हार कर घर जाने की तैयारी कर रही थी। उस रात मैं बहुत रोयी ये सोचकर कि मैं हार नहीं सकती।लेकिन ईश्वर मेहनत करने वालों को कभी अकेला नहीं छोंड़ता और आखिरकार उसने मेरी सुन ली । दूसरे दिन मेरे फोन की घंटी बजी वो मेरे लिए फोन की घण्टी से अधिक किस्मत की घंटी थी रूपेश सर का मैं आभार व्यक्त करना चाहती हूँ कि उन्होंने मुझ पर भरोसा किया मेरे अभिनय की कला को दुनिया के सामने लाया 'भुताहा' अक्टूबर महीने में आपके सामने होगी । जिसमें मैंने मुख्य किरदार की भूमिका निभायी है।
छोटी सी उम्र में मुंबई में आकर संघर्षों का शिलालेख लिखने के लिए कामना करें कि ज्योति त्रिपाठी की सफलता की ज्योति हमेशा जगमगाती रहे।
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