अन्नदाताओं ने दी सरकार को चेतावनी बना सकते हैं। तो गिरा भी सकते हैं।
कृषि बिल से दुकानदारी बंद होने के डर से नेता हुए चौकन्ने
ज़ाकिर घुरसेना। कैलाश यादव
नई दिल्ली। पिछले दिनों कृषि बिल को लेकर सड़क से लेकर संसद तक बवाल मचा हुआ हैं। कांग्रेस ने विरोध में बिल की कॉपी फाड़ दी थी। एवं कई विपक्षी दलों के सांसदों ने संसद में काफी हंगामा मचाया। लेकिन बहुमत बीजेपी का है। और बिल आखिरकार पास हो ही गया। भाजपा का कहना है। कि कांग्रेस किसान विरोधी है। अब ये समझ में नहीं आ रहा कि किसान हितैषी कौन है। भाजपा के सहयोगी दल भी इस बिल के विरोध में है। अकाली दल के प्रतिनिधि और केंद्र के मंत्री ने तो इस बिल के विरोध में इस्तीफा भी दे दिया। एक किसान ने तो जहर भी खा लिया। जनता ये खुसुर-फुसुर कर रही है। कि अगर ये बिल किसानों के हित में है। तो राजनीति क्यों। ये तो ऐसा हो गया कि पहले अंग्रेज व्यापारी बनकर आये और शासन करने लगे अब ये लोग शासक बनकर आये और व्यापार करने लगे। वैसे भी अगर किसानों की आमदानी बढ़ती है तो किसी पार्टी को परेशान होने की जरूरत क्यों पड़ी। राजनीति अन्नदाताओं के समझ से परे है। बहरहाल जो भी हो अन्न दाताओं के साथ अन्याय नहीं होना चाहिए अगर हुआ तो वे सरकार बनाना और बिगाडऩा भी जानते हैं।
मंत्री डॉ शिव डहरिया अचानक दिल्ली गए कोरोना काल में अचानक डॉ शिव कुमार डहरिया दिल्ली गए है। जहां वे पीएल पुनिया से मुलाकात कर चर्चा करेंगे जनता में खुसुर फुसुर है। कि अचानक ऐसी क्या बात हो गई कि मंत्री डॉ डहरिया को दिल्ली जाना पड़ा चारों तरफ राजनीति ही राजनीति अन्नदाता इस बिल से पसोपेश में है। कांग्रेस की माने भाजपा की माने या अन्य विपक्षी दलों की माने। किसानों के मन में शंका-कुशंका पैदा हो रही है। वैसे भी अन्नदाता पहले ही उपज के उचित मूल्य से वंचित है।उनका मानना है। कि मौजूदा व्यवस्था में भी समर्थन मूल्य से कम दामों में उपज को बेचने की मजबूरी है। और अगर इस बिल से किसानों को देश व्यापी बाजार मिलता है। और आड़तियों, दलालों से मुक्ति मिलती है। साथ ही उपज का अच्छा दाम मिलता है। तो यह किसानों के हित में है, अगर नहीं है। तो अन्नदाताओं की पेराई होगी जो किसी भी पार्टी के लिए ठीक नहीं है।
सपनों में जान होना चाहिए
कहते है कि मंजिल उन्हें ही मिलती है। जिनके हौसलों में जान होती है। पंखों से नहीं हौसलों से उड़ान होती है। और यही हमारे अन्नदाता कर रहे है। अपनी लड़ाई सड़क से लेकर संसद तक खुद लड़ रहे है और राजनीतिक दल खुद-ब खुद उनके साथ जुड़ रहे है।
एनसीबी रायपुर में भी करे कार्रवाई
लोग सुशांत केस से अब ऊब चुके है। क्योंकि जाँच की दिशा बदल गई है। ऐसा लगता है। जो भी हो ये भी आवयश्क था। रायपुर की जनता में खुसुर-फुसुर हो रही है कि एनसीबी जैसी कार्यवाही रायपुर में भी होनी चाहिए। हर मौहल्लों में नशे के कारोबारी मिल जायेंगे। जुआ, सट्टा और नशीली दवाई के अवैध कारोबारियों को छुटभैया नेताओं का संरक्षण होता है। जिसकी वजह से कई अपराधी तो थाने से ही छूट जाते है। शहर को अवैध कारोबार नशीली दवाई, चरस, गांजा, सिरप आदि के कारोबारियों ने जकड़ लिया है। शासन को चाहिए इस पर कड़ा से कड़ा कानून लागू करना चाहिए। ताकि नौनिहालों को इस नासूर से बचाया जा सके। हम करे तो खता तुम करो तो अदा
अभी हाल में ही प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने बिहार के विकास के लिए करोड़ों रूपये की सौगात दी। अभी बिहार में विधान सभा चुनाव होना है। इधर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल मरवाही के विकास के लिए करोड़ों रूपये देने की घोषणा की। अब भाजपा नेता कह रहे है। कि उपचुनाव सामने है। इसलिए सरकार ने घोषणाओं की झड़ी लगा दी है। जनता में खुसुर-फुसुर है। कि बिहार में भी प्रधानमंत्री ने अरबों की घोषणा की। वहां भी तो चुनाव है। ये तो ऐसा हो गया। हम करे तो खता तुम करो तो अदा।
क्या यही विकास का फार्मूला है।
जम्मू कश्मीर की शोपियां में पिछले 18 जुलाई को तीन लड़कों को मुठभेड़ में मार दिया गया। सुरक्षाबलों ने बताया था। कि इनके पास से भारी मात्रा में गोला-बारूद बरामद किया गया था। ये खूंखार आतंकवादी थे। अब घर वालों के शिकायत पर जाँच हुई तो मुठभेड़ फर्जी निकला। मरने वाले तीनों मजदूर निकले। जनता में खुसुर-फुसुर है। कि जवानों को विशेषाधिकार कानून का उल्लघंन करने का छूट किसने दिया। उच्च पदस्थ अधिकारियों ने पीडि़त परिवार को ये बोलकर चलता कर दिया कि भविष्य में किसी परिवार के साथ अन्याय नहीं होने देंगे लेकिन तीन परिवार के चिराग तो बुझ गए। इंसान के जिंदगी की कीमत जानवरों से भी कम और बदत्तर हो गई है। क्या यही विकास का फार्मूला है।
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