सोमवार, 21 सितंबर 2020

बदतर हाल को बेहतर स्थिति कहते हैं पीएम

देश के प्रधानमंत्री अगर ऐसी बुरी स्थिति को बेहतर स्थिति कहते हैं। तो देश का क्या हो सकता है। स्वामी नाथ जायसवाल।    
नई दिल्ली। प्रेस से बात करते हुए राष्ट्रीय मजदूर कांग्रेस इंटक के राष्ट्रीय अध्यक्ष स्वामी नाथ जायसवाल ने बतायाआज अगर मोदीजी खुद को कोरोना काल के दौरान भारत को बेहतर स्थिति में रखने का दावा करते हैं।और इस तिमाही में जीडीपी में हुई गिरावट तथा कमजोर होती अर्थव्यवस्था के बाद भी बीजेपी सरकार अपनी उपलब्धियां गिना रही है ।तो इंटक के माध्यम से मैं स्वामीनाथ जायसवाल बीजेपी की सरकार से पहला सवाल किसान-गरीब-मजदूर के बारे में ही पूछूँगा कि क्या वास्तव में उनके दिन बदल गए।2014 में सरकार बनाने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संसद में अपने पहले भाषण में सिर्फ गरीब।किसान-गांव-मजदूर और हाशिए पर पड़े लोगों के विकास का जिक्र करते हुए भरोसा यही जगाया था कि देश में किसानों और गरीबों के अच्छे दिन आने वाले हैं। पहली बार लगा कि गरीबी हटाओ का नारा एक जुमले से आगे निकलने वाला है। पीएम मोदी ने किसानों-मजदूरों और गरीबों के लिए योजनाओं का एलान भी खूब किया। लेकिन मसला किसी एक योजना का नहीं है जिसकी सफलता जमीन पर कठघरे में है। फसल बीमा योजना का डंका सरकार खूब पीट रही है।लेकिन सच ये है कि मुआवजे के चंद रुपयों पर आकर ये योजना टिक गई। दावा किसानों की आय दोगुनी करने का हुआ पर किसानों को उनकी फसल की लागत तक नहीं मिल पा रही है। मध्य प्रदेश में जहां न्यूनतम समर्थन मूल्य पर फसल खरीदे जाने का हल्ला है।वहां किसान पांच पांच दिन लाइन में लगा रहता है। वहीं की कृषि उपज मंडी में ऐसे हालात बन गए कि किसानों ने जमकर नारेबाजी की तो किसानों की आय दोगुनी होने का वादा कहां सच हुआ ये बड़ा सवाल है।तो किसान-मजदूर यकीन करें कैसे कि सरकार सिर्फ और सिर्फ उनके लिए सोच रही है।क्योंकि एक सच मनरेगा मजदूरों से इतर असंगठित क्षेत्र के मजदूरों का भी है। जिनकी नोटबंदी के दौर में नौकरी चली गई और उनमें से कइयों को आजतक नौकरी मिल नहीं पाई। घोषणाओं का सच अपनी जगह है।लेकिन जमीन की सच्चाइयां उतनी सुनहरी तो नहीं हैं जितना सरकार दावा करती है। क्योंकि अगर ये सच होता तो बार बार किसानों का आंदोलन जमीन पर नहीं दिखता। इस बार किसान सशक्तीकरण और संरक्षण अध्यादेश को लेकर किसान एक बार फिर सड़क पर उतरने जा रहे हैं। और किसानों ने तो चेतावनी दी है।कि आंदोलन के दौरान फल-सब्जी-दूध की आपूर्ति भी रोकेंगे यानी किसानों में गुस्सा तो है। तो क्या प्रधानमंत्री मोदी रिजल्ट दे नहीं पाये यही कहा जाए या 2024 का इंतजार किया जाए और देखा जाए कि किसानों और मजदूरों की हालत में कितना बदलाव आयेगा।
आम आदमी शायद जीडीपी का वित्तीय प्रभाव तो नहीं जानता पर यह जरूर समझता है। कि मजदूरों के मुंह का निवाला छीनना जुल्म है।लोगों का नंगे पांव चलना और बसों का खाली खड़े रहना पाप है। मंगलयान चलाने वाले देश में एक लड़की का कई सौ किलोमीटर पिता को साइकिल पर ले जाना बेबसी है। मोदी सरकार के कुप्रबंधन के कारण जनता पर कंगाली आ गई है। और इससे किसान, मजदूर आत्म हत्या कर रहे हैं।बीजेपी सरकार के कु-प्रबंधन के कारण आर्थिक तंगहाली से युवा, किसान व दिहाड़ीदार मजदूर सबसे ज्यादा त्रस्त हैं। किसान आत्महत्या करने को मजबूर और मोदीजी दम साधे, होठ सीए बैठे रहे।’ 116 किसान हर रोज आत्महत्या को मजबूर है। यही नहीं, साल 2019 में 14,019 बेरोजगार आत्महत्या को मजबूर हुए। 38 बेरोजगार रोज जिंदगी देने को मजबूर। सबसे चिंता की बात यह है। कि ये आंकड़े कोरोना महामारी से बहुत पहले के हैं। मोदी जी, आपको रात को नींद कैसे आती है? राष्ट्रीय मजदूर कांग्रेस इंटक के राष्ट्रीय अध्यक्ष स्वामीनाथ जायसवाल ने कहा मोदी जी, देश की सुध लीजिए, सत्ता का घमंड छोड़िये, किसानों का कर्ज़ा माफ़ कीजिए, बेरोजगार को रोजगार दीजिए। प्रबंधन की विफलता और फेल लॉकडाउन से खराब हालत वाले वर्ष 2020 के आंकड़े जब आएंगे तो हालात और भयावह होंगे।             


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