बुधवार, 23 सितंबर 2020

आर्कटिक सागर में ग्लोबल वार्मिंग का असर

नई दिल्ली। ग्लोबल वॉर्मिंग की वजह से आर्कटिक महासागर में बर्फ का पिघलना लगातार जारी है। वैज्ञानिकों का कहना है कि जिस तरह से बर्फ पिघलती जा रही है उससे ये अपना रिकार्ड तोड़ देगी। नेशनल स्नो एंड आइस डेटा सेंटर के शोधकर्ताओं ने कहा कि 15 सितंबर को ये संभावना थी कि बर्फ सबसे अधिक पिघल जाएगी। रिसर्च में ये चीज देखने को मिली। अभी तक यहां 1.44 मिलियन वर्ग मील महासागर का इलाका बर्फ से ढंका था।
दरअसल, समुद्री बर्फ का उपग्रह से चित्र लेने और इसको मॉनिटर करने का काम चार दशक पहले शुरू हुआ था। यह देखा गया है कि साल 2012 से इसमें कमी दर्ज की जा रही है। सबसे पहले इसे 1.32 मिलियन वर्ग मील मापा गया था। उसके बाद से साल दर साल इसमें कमी होती जा रही है। वैज्ञानिकों का कहना है कि ये सब जलवायु परिवर्तन की वजह से हो रहा है और लगातार जारी है। इस बीच यह भी कहा जा रहा है कि जंगलों की भयंकर आग ने इन ग्लेशियरों को पिघलाने में कहीं न कहीं भूमिका निभाई है।


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