विशाल दत्त
गाजियाबाद। बीते 24 घंटों में गाज़ियाबाद जिले में कोरोना के 179 नए मरीजों की पहचान हुई है, 74 मरीज ठीक हुए हैं, एक व्यक्ति की मौत हुई है और अब जनपद में 1497 सक्रिय मरीज हैं। गुरुवार को जुड़े नए संक्रमितों में सीबीआई के 12 कांस्टेबल शामिल हैं। बृहस्पतिवार को जिला प्रशासन को जिन 1500 व्यक्तियों की रिपोर्ट मिली है उनमें से केवल 179 ही पॉज़िटिव हैं। इसका मतलब है कि संक्रमण फैलने की रफ्तार में कमी आई है।
हालांकि सिर्फ एक दिन की रिपोर्ट के आधार पर ऐसा कहना गलत होगा लेकिन मजबूरी है कि जिला स्वास्थ्य विभाग आंकड़े उपलब्ध नहीं करा रहा है। स्वास्थ्य विभाग के हालात देखकर यह भी संभव है कि खुद स्वास्थ्य विभाग के पास ही सटीक जानकारी नहीं हो।
पुराने सैंपल होते हैं बुलेटिन का आधार
दरअसल स्वास्थ्य विभाग द्वारा जारी आंकड़े पुराने सैंपल्स की रिपोर्ट पर आधारित होते हैं। सरकारी लैब्स से सैंपल के नतीजे आने में 2-3 दिन का समय लगता है। बहुत से मामलों में यह इंतज़ार 7-8 दिन का भी हो सकता है। आसान भाषा में कहें तो गुरुवार को जिन 179 नए संक्रमितों की पहचान हुई है, उनके सैंपल संभवतः सोमवार या मंगलवार को लिए गए होंगे। यही कारण है कि राज्य स्वास्थ्य विभाग द्वारा जारी आंकड़ों के आधार पर यह कहना मुश्किल है कि वर्तमान में सक्रिय मरीजों की संख्या कितनी है। न ही हम यह कह सकते हैं कि आज जो सैंपल लिए गए थे, उनमें से कितने पॉज़िटिव हैं और कितने नेगेटिवे।
प्रोटोकॉल के तहत सैंपल लेने के बाद संदिग्ध मरीज को क्वारंटाइन सेंटर भेज दिया जाता है और परिवार के अन्य सदस्यों के भी सैंपल लेकर उन्हें सेल्फ क्वारंटाइन के आदेश दिए जाते हैं। अगर नगर निगम या स्वास्थ्य विभाग मेहरबान हुआ तो 6-7 दिन बाद इलाके को सैनिटाइज़ किया जाता है, वरना आपकी रक्षा के लिए ऊपर वाला तो है ही।
पोर्टल पर नहीं अपलोड हुई हैं 17 हजार रिपोर्ट्स
कोरोना रिपोर्ट्स के प्रति जिला प्रशासन और स्वास्थ्य विभाग की लापरवाही का आलम यह है कि नेगेटिव रिपोर्ट्स और कोरोना संक्रमण से मुक्त हो चुके लोगों की 17 हज़ार से भी अधिक रिपोर्ट्स अभी तक सर्वर पर अपलोड नहीं हुई हैं। जिलाधिकारी अजय शंकर पाण्डेय के आदेश पर अब यह ज़िम्मेदारी लखनऊ से भेजे गए एसीएमओ डॉ राजेश गुप्ता को सौंपी गई है। उनके सहयोग के लिए एडीएम एलए के नेतृत्व में सीएमओ कार्यालय में एक अलग कंट्रोल रूम बनाया गया है।
क्या है इस समस्या का इलाज
आजकल आपको मुहल्ले में कपड़ों पर इस्तरी करने वाले से लेकर मंत्रियों के तथाकथित प्रतिनिधियों तक हर व्यक्ति सलाह देता ही नज़र आता है। ऐसे में यदि हम भी प्रशासन को कुछ सलाह दे दें तो इसमें कोई हर्ज नहीं होगा। लेकिन हमारी सलाह पिछले 30 वर्षों के प्राइवेट सेक्टर में काम के अनुभव पर आधारित होगी।
हम जिले में तैनात सरकारी अधिकारियों और कर्मचारियों के अनुभव या योग्यता पर सवाल नहीं कर रहे हैं मगर हमें इस सत्य को भी स्वीकारना होगा कि बरसों से सरकारी तंत्र में काम करने के बाद उनके काम करने का एक पैटर्न बन गया है जिसे महामारी के समय में अचानक बदलना संभव नहीं है।
जिला प्रशासन को चाहिए कि वह कोविड डाटा मैनेजमेंट के लिए या तो किसी निजी कंपनी को ठेका दे या फिर किसी तकनीकी रूप से सक्षम अधिकारी के नेतृत्व में 20-25 डाटा एंट्री करने वालों की एक टीम गठित की जाए। इन डाटा एंट्री करने वालों को अल्पकालिक संविदा के आधार पर रखा जा सकता है। जिले में सरकारी खर्च से चल रही उन दर्जनों स्वयं सेवी संस्थाओं की भी मदद ली जा सकती है जिनके कर्ता धर्ता सिर्फ हाथों में गुलदस्ता लिए अधिकारियों के आसपास फोटो खिंचवाते नजर आते हैं। हो सकता है कि रेकॉर्ड को अपडेट करने में 7-8 दिन का समय लगे, लेकिन एक बार रेकॉर्ड अपडेट होने के बाद उसमें हर दिन की एंट्री जोड़ना कोई बड़ी बात नहीं होगी।
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