नागरिक करें अपने मौलिक कर्तव्यों का निर्वहन, अधिवक्ता दे रहे हैं नि:शुल्क कानूनी सेवाओं की जानकारी। न्यायाधीश पीयूष शर्मा
रतन सिंह चौहान
होडल पलवल। भारतीय संविधान में नागरिकों के मौलिक कत्र्तव्यों का उल्लेख किया गया है। संविधान में वर्णित अधिकारों और कर्तव्यों का घनिष्ठ संबंध रहा है। अधिकार और कत्र्तव्य एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। एक के बिना दूसरा अस्तित्वहीन हो जाता है। कत्र्तव्यों के बिना अधिकारों की मांग करना न्यायसंगत नहीं है। मौलिक कर्तव्य भारतीयों को सामान्य भाईचारे की भावना को बढ़ावा देने, पर्यावरण और सार्वजनिक संपत्ति की रक्षा करने, वैज्ञानिक सोच का विकास करने, हिंसा को त्यागने और जीवन के सभी क्षेत्रों में उत्कृष्टता की दिशा में निरंतर प्रयास करना है। नागरिक इन कर्तव्यों का पालन करने के लिए संविधान द्वारा नैतिक रूप से बाध्य हैं। संविधान के 42वें संशोधन के द्वारा भाग 4 में धारा 51 के अंतर्गत 11 मौलिक कर्तव्यों का उल्लेख किया गया है।
यह हैं मानव के मौलिक कर्तव्य:-
संविधान का पालन करें, राष्ट्रीय ध्वज और राष्ट्रगान का आदर करें। ऐसे आदर्शों का अनुसरण करें, जिनसे स्वतंत्रता आंदोलन का प्रोत्साहन मिलता था। भारत की एकता और अखण्डता की रक्षा करें, आवश्यकता पडऩे पर देश की रक्षा करें, सभी वर्गों के लोगों में भ्रातृत्व और समरसता की भावना बढ़ाएं और स्त्रियों का आदर व सम्मान करें। अपने देश की गौरवशाली परम्पराओं और संस्कृति को बनाए रखें, प्राकृतिक पर्यावरण जिसमें वन, नदियां, झील और जगत के जीव-जंतु शामिल हैं उनका संरक्षण एवं सुधार करना, मानवतावाद और वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विकास करना, सार्वजनिक संपत्ति की रक्षा करना, व्यक्तिगत और सामूहिक कार्यकलाप के हर क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य के लिए प्रयास करना, 6 से 14 वर्ष की आयु तक के बच्चों को उनके माता-पिता या अभिभावक द्वारा शिक्षा का अवसर प्रदान करना आदि शामिल हैं।
आज हम वैश्विक महामारी कोविड-19 के दौर से गुजर रहे हैं। यदि कोई व्यक्ति इस वैश्विक महामारी के दौरान सरकार द्वारा दिए गए निर्देशों व कर्तव्यों का पालन नहीं करता है तो उन लोगों के खिलाफ आपदा प्रबंधन अधिनियम 2005 के तहत कार्यवाही की जा सकती है। यदि किसी व्यक्ति, पीडि़तों या किसी निश्चित वर्ग के लिए दी जाने वाली राहत सामग्री व सहायता नहीं मिल रही है या किसी मामले में कानूनी सहायता की आवश्यकता है ।
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