शंभू नाथ गौतम
नई दिल्ली/भोपाल। कई दिनों की जद्दोजहद करके केंद्रीय नेतृत्व ने पिछले दिनों सीएम शिवराज सिंह चौहान और ज्योतिरादित्य सिंधिया के बीच मंत्री पद पाने के लिए मची खींचतान को केंद्रीय नेतृत्व बड़ी मुश्किल से सुलझा पाया था । हाल ही में हुए मध्य प्रदेश में मंत्रिमंडल गठन में सिंधिया शिवराज सिंह से बाजी मार ले गए थे । सिंधिया का राज्य सरकार में बढ़ता जा रहा कद सीएम शिवराज सिंह के लिए नाक का सवाल बन गया है । मंत्रिमंडल गठन को 4 दिन पूरे हो गए हैं उसके बाद भी विभागों का अभी तक बंटवारा नहीं हो सका है । एक बार फिर सिंधिया ने अपने गुट के बने मंत्रियों को मलाईदार विभाग देने के लिए केंद्रीय नेतृत्व पर दबाव डाल रखा है । सिंधिया के इस कदम से चौहान एक बार फिर मुश्किल पड़ गए हैं । इस मामले को सुलझाने के लिए चौहान एक बार फिर दिल्ली में डेरा डाले हुए हैं । रविवार शाम अचानक मुख्यमंत्री चौहान दिल्ली पहुंच गए । राजधानी में शिवराज ने भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा से मुलाकात की है । उसके बाद उन्होंने केंद्रीय संगठन के नेताओं से भी मिलकर इस मसले को सुलझाने की पैरवी कर रहे हैं। लेकिन ज्योतिरादित्य सिंधिया की भाजपा केंद्रीय नेतृत्व में इतनी गहरी पैठ हो चुकी है कि शिवराज सिंह को ही मुख्यमंत्री बनने के बाद कई बार समझौता भी करना पड़ा है । मंत्री नहीं बनाए जाने से नाराज व एक दिन पहले मुख्यमंत्री शिवराज सिंह को पत्र लिखने वाले पूर्व मंत्री व विधायक अजय विश्नोई ने फिर पार्टी की कार्यशैली पर सवाल खड़े किए हैं।
ज्योति राजे सिंधिया मध्यप्रदेश सरकार में अपनी हिस्सेदारी बराबर चाहते हैं—
ज्योतिरादित्य सिंधिया जब से भाजपा का दामन थामा है तभी से मध्य प्रदेश की राजनीति को लेकर बहुत ही एक्टिव नजर आ रहे हैं । सिंधिया शिवराज सिंह चौहान की सरकार में अपनी बराबर की हिस्सेदारी चाहते हैं, लेकिन यह शिवराज को हजम नहीं हो रहा है । तभी मध्य प्रदेश सरकार के हर एक फैसले को लेकर दोनों नेता आए दिन दिल्ली में अपनी-अपनी फरियाद लेकर पहुंच जाते हैं । हम आपको बता दें कि शिवराज सिंह सरकार में सिंधिया समर्थकों के 12 विधायक मंत्रिमंडल में शामिल किए गए हैं । जिनमें से सात को कैबिनेट मंत्री बनाया गया है । इन्हीं कैबिनेट मंत्रियों को लेकर सिंधिया अहम विभाग पाने के लिए केंद्रीय भाजपा आलाकमान पर दबाव बढ़ा रहे हैं । मंत्रिमंडल के गठन के बाद अभी तक राज्य सरकार के मंत्रियों को विभागों का बंटवारा नहीं किया जा सका है । सिंधिया के जबरदस्त हस्तक्षेप होने से शिवराज सिंह चौहान इस बार खुलकर अपनी सरकार नहीं चला पा रहे हैं । भाजपा के सामने यह मुश्किल भी है कि सिंधिया खेमे के साथ कांग्रेस से भाजपा में लौटे हरदीप डंग, बिसाहूलाल सिंह और एंदल सिंह कंसाना को भी विभाग देने हैं। ये तीनों कैबिनेट मंत्री बने हैं।
गठबंधन हो या समर्थन वाली सरकारों में नहीं बैठ पाता है सामंजस्य–
हम आपको देश की राजनीति में 24 वर्ष पीछे लिए चलते हैं । वर्ष 1996 में जब केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार गिर गई थी । उसके बाद एच डी देवगौड़ा के नेतृत्व में कई दलों ने मिलकर सरकार बनाई थी, देवगौड़ा उस समय प्रधानमंत्री बने थे । कुछ समय बाद ही केंद्र सरकार में खींचतान शुरू हो गई थी । आखिरकार सरकार को देवगौड़ा चला नहीं पाए और एक साल के अंदर ही उन्होंने प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था । उसके बाद कांग्रेस समेत कई दलों ने इंद्र कुमार गुजराल को प्रधानमंत्री बनाया था । गुजराल भी अपनी सरकार खुलकर नहीं चला पाए थे उन्हें भी लगभग 1 साल के अंदर का प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा था । उसके बाद वर्ष 1998 में लोकसभा चुनाव हुए थे फिर अटल बिहारी वाजपेयी ने कई दलों के साथ सरकार बनाई थी । लेकिन अगले साल वर्ष 1999 में अटल की भी सरकार गिर गई थी । हम अगर बात करें उत्तर प्रदेश में तो भाजपा-बसपा की भी मिली-जुली सरकार बनी थी, यह भी अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर सकी । उसके बाद सपा और बसपा ने जब यूपी में अपनी सरकार बनाई उसका भी यही हाल रहा था । मौजूदा समय में अगर महाराष्ट्र की बात करें तो वहां भी शिवसेना, कांग्रेस और एनसीपी के साथ गठबंधन की सरकार चल रही है । महाराष्ट्र सरकार में तीनों दलों के बीच खींचतान मची रहती है।
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