नई दिल्ली। 2022 तक किसान की आय दोगुनी जीरो बजट खेती दूसरे राज्य में कृषि उत्पाद बेचने की छूट बिना नीति ढांचा गत सुधार कर्ज माफी जैसे जुमलेबाजी के बावजूद आर्थिक सहयोग और विकास संगठन ओईसीडी के मुताबिक फसल बिक्री के कम मूल्य मिलने से 2016 के बीच 45 लाख करोड़ का नुकसान हुआ जिसमें सामाजिक आर्थिक असंतुलन बड़ा और परिणाम देश के किसान कर्ज की समस्या में फंसे और नौबत आत्महत्या तक पहुंच गई। आज जय जवान जय किसान जय अनुसंधान जैसे नारों को बुलंद कर किसानों के सामने से ही उसकी जमीन लूट ली जा रही है और किसान की जय जय कार की जा रही है सही बात है देश का 85% किसान बाजार की दया पर छोड़ दिया गया है। ऐसे किसान के पक्ष में जय कारा तो बनता है इधर कोविड वारियर्स के लिए थाली पीटी गई, ताली पीटी गई, दीया भी जला दिया गया। किंतु जब उसी को वायरस ने घेरा तो कोई पूछने नहीं जाता। जब चिकित्सा जैसे क्षेत्र में उच्च शिक्षित के साथ सरकार का यह व्यवहार है तो किसान के साथ जिसका रकबा एक-दो एकड़ का है व्यवहार क्या होगा? देश में मंडी व्यवस्था सबसे पहले बिहार में बंद हुई 2006 में बिहार से मंडी व्यवस्था समाप्त हो गई थी। पंजाब हरियाणा के किसान जहां पर मंडी है और बिहार के किसान जहां पर मंडी नहीं है के बीच का अंतर बहुत बढ़ गया है। 2015-16 में नाबार्ड के सर्वे के अनुसार बिहार का किसान 7175 रुपए प्रति माह कमाता है और पंजाब का किसान 23133 रुपए व हरियाणा का किसान 18496 रुपए प्रतिमाह कमाता है उदाहरण देश के सामने हैं। उसके बावजूद मंडी व्यवस्था की कमियों को सरकार दूर ना करके मंडी को ही समाप्त कर रही है यूरोप में फ्री मार्केट के बावजूद प्रतिवर्ष किसान को 7 लाख करोड़ की मदद दी जाती है। तब भारत में किसान को मदद पर बवाल क्यों होता है कोरोना की आड़ में सत्ता पर कब्जा तो दिख रहा है और कारपोरेट मीडिया इस नाटक को रोज दिखा भी रही है। किंतु खेती पर एक-एक करके तीन प्रहार को किसी ने मुद्दा नहीं बनाया आज बाजार में महंगी एसयूवी का मार्केट बंद है और बाजार की गतिशीलता केवल कृषि उत्पाद से हो रही है। किंतु कोविड के पूरे 20 लाख करोड़ के पैकेज केवल उद्योग को है और किसान के हिस्से केवल जय कारा का नारा है…
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