गुजरात के बाद राजस्थान में भी सियासी सरगर्मी बढ़ी वरिष्ठ भाजपा नेता का एक ऑडियो हो रहा वायरल
जयपुर। कांग्रेस और उनके समर्थित विधायकों की नजर प्रदेश में होने वाली राजनीतिक नियुक्तियों पर भी है। जिन्हें सरकार में हिस्सेदारी नहीं मिली, उन्हें उम्मीद है कि उसमें तरजीह मिलेगी या अगले कैबिनेट विस्तार में जगह मिलेगी। गुजरात में कांग्रेस विधायकों के इस्तीफे के बाद अब राजस्थान में भी राज्यसभा चुनाव से ठीक पहले सियासी हलचल तेज हो गई है। एक तरफ गुजरात के 22 विधायकों की राजस्थान में बाड़ाबंदी हो रही है, वहीं दूसरी ओर प्रदेश में कांग्रेस व इसके समर्थित निर्दलीय 10 से 12 विधायकों ने सीएम अशोक गहलोत से शिकायत की है कि दिल्ली से भाजपा के बड़े नेता उन्हें फोन कर रहे हैं। भाजपा में शामिल होने के लिए उन्हें सभी तरह के लालच दिए जा रहे हैं।
हाल में एक वरिष्ठ भाजपा नेता का एक ऑडियो भी वायरल हुआ। हालांकि, अब तक राजस्थान में किसी कांग्रेस समर्थित निर्दलीय विधायक ने खुलकर भाजपा में जाने के संकेत नहीं दिए हैं। राजस्थान का सियासी गणित देखें तो कांग्रेस को कोई खतरा नहीं है। लेकिन भाजपा की नजर राजस्थान में गहलोत विरोधी उस गुट पर है जो लगातार सरकार के खिलाफ मुखर होता रहता है। भाजपा इसे ही साधने में जुटी है।
मप्र में कांग्रेस छोड़ भाजपा में शामिल हुए ज्योतिरादित्य सिंधिया गुट के 22 विधायकों का भविष्य जिस तरह अधर में है, उसे देखते हुए राजस्थान में कांग्रेस का असंतुष्ट खेमा भी सीधे तौर पर सियासी जोखिम लेने की स्थिति में नहीं है। इसके अलावा सीएम अशोक गहलोत का सियासी कद भी विधायकों को एकजुट रखने की बड़ी वजह है।
पीएम मोदी खुद कोरोना मैनेजमेंट को लेकर गहलोत की तारीफ कर चुके हैं। भीलवाड़ा मॉडल को पूरे देश ने सराहा। साथ ही, कोरोना से निपटने के मामले में भी गहलोत जिस तरह सभी विधायकों को साथ लेकर चले, उसे देखते हुए कोई उलटफेर आसान नहीं।
हालांकि, कांग्रेस के एक गुट में अंतर्विरोध देखते हुए ही भाजपा ने राज्यसभा चुनाव में दो प्रत्याशी उतारे हैं। जबकि उसके पास सिर्फ एक को जिताने लायक ही विधायक हैं। लेकिन कांग्रेस में कई विधायक मंत्री न बनने से नाराज चल रहे है। ऐसे ही नाराज विधायकों के दमखम पर भाजपा ने वोटों की गणित में कमजोर हुए भी दो प्रत्याशी मैदान में उतारे।
कांग्रेस के पास अपने 107 विधायक हैं। 13 निर्दलीय विधायक भी उसी के समर्थन में हैं। आरएलडी सरकार में पहले ही शामिल है। इसके अलावा बीटीपी, लेफ्ट का झुकाव भी सरकार की तरफ ही है। वहीं, भाजपा गठबंधन के पास कुल 75 विधायक ही हैं। मप्र में ज्योतिरादित्य व उनके समर्थक 22 विधायकों को उपचुनावों में टिकट बंटवारे को लेकर अंतर्विरोध चरम पर है। जिन सीटों पर ये विधायक उपचुनाव लड़ना चाहते हैं वहां से भाजपा के कई वरिष्ठ नेता भी दावेदार हैं। नतीजतन कैबिनेट री-शफल अटका हुआ है। कांग्रेस छोड़कर भाजपा में आए विधायक खाली हाथ हैं।
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