शुक्रवार, 19 जून 2020

परम विश्वासघाती 'संपादकीय'

मौत के सौदागर बेइमान धोखेबाज बेधर्मी भूमाफिया सामंतवादी चीन की घिनौनी खूनी करतूत पर विशेष-  सम्पादकीय

    दुनिया को कोरोना वायरस फैला कर मौत के मुंह में ढकेलने वाला मौत का सौदागर चीन आजादी के बाद से ही भारत की सरजमीं को हड़पने की जुगत में जुटा है और हमारी काफी जमीन उसके कब्जे में है।वह शुरू से ही हमारे साथ दुश्मनों जैसा व्यवहार करके हमें नुकसान पहुंचाने का असफल प्रयास कर रहा है।उसकी कार्यशैली शुरू से ही विश्वासघाती मक्कारी वाली रही और वह हमेशा हमारे साथ धोखेबाजी करता रहा है। आजादी मिलने के जब हमारे देश ने उसके कुत्सिक प्रयासों का विरोध करना शुरू किया तो आजादी मिलने के डेढ़ दशक बाद ही उसने हमें कमजोर मानकर अपनी ताकत दिखाते हुए 1962 में हमला कर दिया था।उस समय हमारे देश बाल्यकाल के दौर से गुजर रहा था और उसके सामने हमारी सैन्य ताकत बहुत कम थी लेकिन हमारी सेना का आत्मबल कमजोर नहीं था।हमारे देश को मजबूरी में न चाहते हुए भी भारतमाता की अखंडता के लिए उससे युद्ध करना पड़ा था।सैन्य शक्ति कम होने के कारण हमें युद्ध में हार का मुंह जरूर देखने पड़ा लेकिन हमारे सैनिकों ने ठिगने चीनियों को छठीं का दुध याद दिलाते हुए एक नया इतिहास लिख दिया था जिसे गुरिल्ला युद्ध के रूप में दुनिया आज भी याद करती है।चीन शुरू से ही हमारे भू-भाग पर अपना अधिपत्य जमाने की कोशिशों में लगा है और समय समय पर अपनी ताकत का अहसास कराकर हमें डराने में लगा है।1962 के बाद युद्ध तो नहीं हुआ लेकिन सीमावर्ती इलाकों पर कब्जा करना की कोशिशें जारी रही और समय समय पर समझौते होते रहे।सिकिम्म तिब्बत अरूणाचल लद्दाख को लेकर विवाद का क्रम चलता रहा है।समझौते के तहत गोलाबारी तो नहीं लेकिन इधर काफी  समय से दोनों सेनाओं के बीच हाथापाई गुत्थम गुत्था लगातार चल रहा है लेकिन हमारे बहादुर जाबांज सैनिक समझौते का पालन करते हुए उसे मुंहतोड़ जवाब दे रहे हैं।चीन शुरू से ही हमारे देश को अपना पिछलग्गू बनाकर मुरीद बनाने की फिराक में लगा है लेकिन हमारा उनके झांसे में नहीं आ रहा है बल्कि वह पहले सोवियत रूस तथा अब अमेरिका से दोस्ती कर रहा है।यह बात चीन को अच्छी नहीं लग रही है और वह अपने को सुपर बनाने के लिए तरह तरह की साजिशें कर हमारे दुश्मनों को पनाह देकर हमारे खिलाफ उकसा   रहा है और हमारे सीमावर्ती पड़ोसी देशों पाकिस्तान एवं नैपाल को भड़का कर हमदर्दी के नाम अपना उल्लू सीधा कर रहा है।वह अमेरिका के बराबर सुपर देश बनने का दिवास्वप्न देख रहा है लेकिन सुपर पावर देश अमेरिका उसे मिटाने पर तुला हुआ है।वह अपनी ऐटमी ताकत के बल पर दुनिया को अपनी जूती के नीचे लाने के लिए तरह तरह के घृणित प्रयास कर मानवता के लिए खतरा पैदा करने में जुटा है।इधर सुपर पावर देश अमेरिका चीनी वायरस से हो रही भारी तबाही से तिलमिला कर खुलकर उसका विरोध करने लगा है।अमेरिका से हमारी दोस्ती उसे रास नहीं आ रही है और वह खिसियाई बिल्ली की अमेरिका की जगह भारत को सबक सिखाने का षड़यंत्र कर रहा है।जबसे हमारे देश ने सीमा पर अपनी सरजमीं पर सड़क का निर्माण शुरू किया है तबसे वह तिलमिला उठा है और लगातार घिनौनी हरकतें कर रहा है।हद तो तब हो गई जब सेना के साथ हुये समझौते के बावजूद अपनी करतूतों से बाज नहीं आया और मौका देखने गई सेना की एक छोटी टुकड़ी पर भारी फौजी ताकत के साथ हमला करके खूनखराबा करना शुरू कर दिया।वसूलों सिद्धांतों पर चलने वाली हमारी सेना को स्वप्न में भी ऐसी हरकत की उम्मीद नहीं थी और अचानक हमले से वह सकते में आ गई।जब तक हमारी सेना संभलती तब तक हमारे कई जवान हताहत हो गये।इसके बाद हमारी सेना ने भी मुंहतोड़ जवाब देते हुए उनके दोगुना सैनिकों को मुल्के अदम पहुंचा दिया।इस घटना के बाद हमारे देश में जहाँ उबाल आ गया वहीं कोरोना वायरस से भारी तबाही मचाने से बौखलाई दुनिया उसकी मक्कारी धोखेबाजी हरामीपन को देखकर सकते में आ गई है।

हमारी सरकार इस घटना के बाद सक्रिय हो गई है और सीमा पर फौजी ताकत को बढ़ाकर ड्रैगन को सबक सिखाने की रणनीति को अंतिम रूप देने में जुट गई है।प्रधानमंत्री रक्षामंत्री विदेशमंत्री सेना के तीनों सेनापतियों के साथ बैठक कर चुके हैं तथा विपक्षी दलों की बैठक आज बुलाई गई है।इस नाजुक हालत में मुख्य विपक्षी दल की भूमिका निभाने वाली कांग्रेस के आका राहुल गांधी चीन को सबक सिखाने में सहयोग देने की जगह सरकार पर गंभीर आरोप लगाते हुए अपनी राजनैतिक रोटियां सेंकने लगें हैं।अमेरिका ने भी अपने तीन जंगी जहाज महासागर में उतारकर बेइमान हरामखोर चीन की घेराबंदी कर सबक सिखाने की तैयारी शुरू कर दी है तो रूस जैसे तमाम देश भी चीन के खिलाफ लामबंद होने लगे हैं।लगता है कि चीन की विश्वासघाती सेना द्वारा निहत्थे भारतीय सैनिकों पर हमला विश्वयुद्ध का कारण बन जायेगा क्योंकि चीन गलती न मानकर अपनी करतूतों से बाज नहीं आ रहा है। वह हमारी सरजमीं से हटकर युद्ध टालने की जगह वह गलवान घाटी में बांध बनाकर उसका पानी रोककर और अपनी सैनिक शक्ति बढ़ाने में जुट गया है। 

भोलानाथ मिश्र

 

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