तुझे कीड़े पड़ जईयो 'संपादकीय'
संपूर्ण विश्व कोरोना वायरस कोविड-19 के कहर से त्रस्त है। विश्व के महानतम जीव वैज्ञानिक, औषधि विज्ञान पर अनुसंधानरत है। लेकिन सब असमंजस के बीच भंवर में खड़े एक दूसरे को आशा भरी नजरों से देख रहे हैं। सामर्थ और शक्ति को धारण करने वाले राजनेताओं में बौखलाहट बढ़ती जा रही है। इसका प्रभाव हमारे देश में भी कम नहीं है। देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पूर्व सार्वजनिक वक्तव्य में बौखलाहट के स्पष्ट साक्ष्य मिले हैं। उन्होंने देश की कुल आबादी से कई करोड़ की गिनती खत्म कर दी। उनकी दृष्टि में भारत में केवल 130 करोड़ की ही आबादी रहती हैं। शायद अब उन्हें इस बात का आभास हो गया है कि सृष्टि का संचालन नियति पर ही निर्भर रहता है, जो मानव विवेक से अत्यंत सुदूर और निर्धारित बना रहता है। इसके विपरीत उचित समय पर संतुलित निर्णय लेकर दूरगामी दृष्टिकोण का प्रमाण भी प्रधानमंत्री के द्वारा दिया है। किंतु सफलता और असफलता के बीच कठोर निर्णय क्षमता के साथ-साथ दृढ़ इच्छाशक्ति भी आवश्यक है। जिसका वर्तमान में प्रधानमंत्री में अभाव प्रतीत किया जा रहा है। राष्ट्रीय नीति और नीति का राष्ट्रीयकरण करने में देश के प्रधानमंत्री के हाथ खाली असफलता लगी है। हो सकता है यह कार्य सिद्धि से प्राप्त परिणाम का ही स्वरूप है। देश के प्रत्येक नागरिक ने प्रधानमंत्री के कथन अनुसार वैशाख माह में दीपावली मनाई और उसके पश्चात थाल-थाली और तस्करी भी खूब बजाई। देश की गरीब जनता ने पीड़ाकारी कष्टों को अपना भाग्य मानकर स्वीकार कर लिया।
परंतु लाखों लोग इस महामारी के परिवेश और शंकाग्रस्त-भयकारी राजनैतिक योजनाओं से त्रस्त है। इतने त्रस्त है कि उनकी पीड़ा का आभास हृदय विदारक है। भारत में कई ऐसी प्रजातियां हैं जिन्हें खानाबदोश कहे तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। ऐसे लोग निर्वाचन प्रणाली से भी मुक्त रहते हैं। लेकिन वह वास्तविक रूप से मूल भारतीय हैं। उनके विषय में वर्तमान सरकार की उदारता इतिहास में कालिख बनकर रहेगी। इतने लंबे समय तक लॉक डाउन से निर्मित व्यवस्था में जीवन यापन, वह भी बिना किसी सरकारी सहायता के, यह अभूतपूर्व है। किंतु शायद अब उनके इस साहस और धीरज दोनों ने ही जवाब दे दिया है। 40 डिग्री सेल्सियस से अधिक तापमान में एक मां का करूण ह्रदय तपती धूप में अपने बच्चे के सूखते गले को, अपने आंसुओं से तृप्त करना चाहती है। भूख और प्यास से बेहाल उस मां के हृदय से लरज़ती हुई आवाज में यह शब्द निकलते हैं। जिन्हें संभवत: मैं जीवन भर नहीं भूल पाऊंगा।
'रे मोदी, तुझे कीड़े पड़ जईयो'। क्या आबादी की कम होने वाली गिनती की शुरुआत, इन्हीं लोगों से होती है?
राधेश्याम 'निर्भयपुत्र'
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Thank you, for a message universal express.