सोमवार, 11 मई 2020

राजनीति के शिकार बनें अधिकारी, साजिश

घटिया राजनीति के शिकार अधिकारी, साजिश
अकांशु उपाध्याय 
गाजियाबाद। संपूर्ण भारतवर्ष में लॉक डाउन का तीसरा चरण चल रहा है। 49 दिन के लंबे लॉक डाउन में गरीब मजदूरों की समस्या बढ़ती ही जा रही है। जो दाने-दाने को मोहताज है, ऐसे लोगों के विकार का समाधान खोजने के बजाय राजनीति की अंगीठी सिलगाई जा रही है।
 उत्तर-प्रदेश की सबसे बड़ी नगर पालिका की अध्यक्ष श्रीमती रंजीता धामा अपने पद से इस्तीफा देने की घोषणा कर चुकी है। उन्होंने प्रशासन पर कई गंभीर आरोप भी लगाए हैं। जिसके कारण लोनी क्षेत्र में राजनैतिक तनाव बढ़ता जा रहा है। जिसमें विधायक और पूर्व चेयरमैन मनोज धामा के बीच सियासी तनातनी की जानकारी आप सभी लोगों को भलीभांति हैं। लेकिन इसके विपरीत क्षेत्र में अधिकारियों के द्वारा सुनियोजित-प्रायोजित राजनीति की जा रही है। अधिकारियों ने जनता का सूझबूझ के साथ ध्रुवीकरण कर दिया है। एक तरफ एक जनप्रतिनिधि को विश्वास में लेकर क्षेत्रवाद की जड़ें जमाने का भी काम किया है, दूसरी तरफ चेयरमैन की उपेक्षा की अपेक्षा में जरूरतमंद लोगों की अनदेखी की जा रही है। उपजिला अधिकारी और अधिशासी अधिकारी के द्वारा निर्धारित नगरीय क्षेत्र में जरूरतमंदों के खिलाफ साजिश की गई है। क्षेत्र में सरकारी रसोइयों के संचालन और निर्धारण से यह स्पष्ट होता है। जनप्रतिनिधियों के बीच उपजे राजनीतिक द्वेष का यह विस्तार अधिकारियों की ही देन है। अधिकारी जनता के साथ किस कारण भेदभाव कर रहे हैं, इसका क्या कारण है ? यह तो अभी स्पष्ट नहीं है। किंतु अधिकारी इतने भोले भी नहीं है कि उन्हें किसी मामले की जानकारी ना हो। सब कुछ जानने के बाद क्षेत्रवाद का निर्माण करके संकट से ग्रस्त जनता के साथ असंवैधानिक कार्य किया गया है। साथ-साथ मजबूर जनता का स्पष्ट शोषण भी किया जा रहा है। भेदभाव को बढ़ावा देकर अपने अधिकारों का दुरुपयोग किया है। आप भी भली-भांति जानते हैं। नगर की जनता नगर में ही रहेगी। शायद आपका निर्धारित ठिकाना नहीं है। आज जनता की सेवा का महत्वपूर्ण अवसर आपको मिला है। जिसे कुंठित विचारों से आपने दोष पूर्ण कर दिया है। 
श्रीमती रंजीता धामा को इस्तीफा देने की कोई आवश्यकता नहीं है। घटिया राजनीति का शिकार बनने से बचना चाहिए। यह मामला केवल राजनीति तक सीमित नहीं है। नगर की जनता के प्रति आप के दायित्व का भी है। अपने अधिकारों की रक्षा करना और उनका उचित पालन करने की जरूरत है। इसके लिए संभव प्रयत्न करने में कोई कोताही नहीं बरतनी चाहिए। यह भी नहीं भूलना चाहिए कि शत्रु बड़ा प्रबल होता है। किंतु उसके निराकरण का कोई कारण अवश्य होता है। इसलिए संपूर्ण शक्ति से कर्म-क्षेत्र की रक्षा करनी चाहिए।


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