इटावा। कोरोना संक्रमण के चलते देशव्यापी लाकडाउन ने सरकार और आम आदमी की मुश्किलों में इजाफा किया है लेकिन आपदा की इस घड़ी ने प्रकृति के सौंदर्य को बरकरार रखने के लिये नियमित अंतराल में मानव दखलदांजी पर रोक लगाने को लेकर एक नयी बहस को जन्म दे दिया है। लाकडाउन के तीसरे चरण की समाप्ति तक वायु और जल प्रदूषण में उल्लेखनीय गिरावट दर्ज की गयी।
इस दौरान न सिर्फ नदियां पवित्र और निर्मल हाे गयी बल्कि हवा भी साफ स्वच्छ हो गयी। जल और नभ में आक्सीजन के स्तर में बढोत्तरी दर्ज की गयी वहीं पराबैगनी किरणों को धरती पर आने से रोकने वाली ओजोन पर्त में सुधार देखने को मिला। पिछले कुछ दशकों से अप्रैल के महीनें से ही पड़ने वाली गर्मी इस वर्ष मई के मध्य तक महसूस की गयी।
पर्यावरणविद संजय सक्सेना ने कहा कि बेशक दुनिया भर में फैले कोरोना वायरस की वजह से हुए लॉकडाउन से आम आदमी मुसीबत में हो लेकिन इसके बावजूद प्रकृति के सुधार के लिए हर साल कम से कम 21 लॉकडाउन जरूर बनता है।
इटावा महोत्सव में आयोजित होने वाली पर्यावरण छात्र संसद के संयोजक संजय ने कहा कि कोरोना वायरस के दुनिया संकट में है लेकिन पर्यावरण को लेकर यह लॉकडाउन वरदान बनकर सामने आया। पर्यावरण की स्थिति सुधरी है प्रदूषण दूर हुआ है,हरियाली बढ़ रही है तथा तापमान पर भी अंतर पड़ रहा है।
पिछले वर्षों में तापमान में लगातार बढ़ोतरी हो रही थी जिसके चलते लोग परेशान थे। हर बार यह उम्मीद रहती थी कि शायद इस बार पारा कम चढ़े लेकिन ऐसा हो नहीं पा रहा था। हर साल होने वाला पौधारोपण अभियान भी पर्यावरण को प्रदूषण से बचाने में बहुत ज्यादा कामयाब नहीं हो सका।
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