सोमवार, 4 मई 2020

कृषि में निवेश एवं प्रोत्साहन की जरूरत

खेती में निवेश एवं प्रोत्साहन बढ़ाए जाने की जरूरत


 करोना संकट के समय चीनी मिलों ने निराश किया


     अब जबकि देश लाकडाउन के तीसरे दौर में प्रवेश कर गया है तथा उद्योग एवं व्यवसाय कारोबार को बचाने की चिंता जोर पकड़ रही है तथा कारोबारी जगत एवं उनके पैरोकार अर्थ विशेषज्ञ सरकारो को तमाम सहायता एवं रियायतो को दिए जाने की सलाह दे रहे हैं। ऐसे समय कारोबार जगत द्वारा पोषित एवं पालित मीडिया समूह एवं अर्थ चिंतक खेती-बाड़ी एवं उस पर आश्रित लोगों की समस्याओं से नजर बचाते दिखाई पड़ रहे हैं, मेरा अपना मत है कि कारोबारी जगत यदि बड़े मुनाफा मार्जिन के लालच पर कुछ माह तक विराम लगा सके तो करोना संकट के झटको से कुछ महीनों में स्वयं उबर सकता है। संगठित उद्योग जगत को केंद्र एवं राज्य सरकारों पर अनावश्यक दबाव डालने से बचने का प्रयास करना चाहिए। कारोबार जगत को उत्पादन प्रोत्साहन पैकेज से बहुत लाभ नहीं होने वाला है क्योंकि खरीदने वाला अधिकांश निम्न मध्यमवर्गीय खेती आश्रित समूह एवं छोटा व्यवसाय करने वाला वर्ग जो गांव एवं छोटे-छोटे कस्बों में रहता है, सरकारों को उस वर्ग की खरीदने की क्षमता बढ़ाने का प्रयास करना चाहिए,शहरों से पलायन करने वाले प्रवासी मजदूरों का दबाव अंततः लम्बे समय तक खेती-बारी आश्रित परिवारों पर ही पड़ने वाली है ,करोना संकट के समय सरकारों ने जिस आत्मविश्वास को दिखाया है उसका बड़ा कारण विपुल अन्न भंडार तथा बड़ी आबादी का खेती पर निर्भरता ही है।
      पिछले कुछ वर्षों में कर्ज माफी एवं किसान सम्मान लाभ के जरिए सरकारों ने थोड़ी राहत पहुंचाने का प्रयास किया है लेकिन सोच में अभी परिपूर्णता आना बाकी है इस देश में 80% से ऊपर बहुत छोटी जोत वाले किसान हैं जिनके परिवार के लोग प्रवासी मजदूर एवं खेतिहर मजदूर भी हैं तथा केवल अपने परिवार के भरण-पोषण के लायक अन्न पैदा कर लेते हैं मेरे अनुभव में *3:5 एकड़ से 18 एकड़* तक जोत वाले किसान परिवार जिनके आय का एकमात्र साधन खेती उत्पाद है वही वास्तविक संकट में है क्योंकि देश के बाजारों एवं गोदामों के लिए वही अन्न पैदा कर रहे हैं तथा प्रति एकड़ अधिकतम मानव रोजगार दे रहे हैं सरकारों ने *5 एकड़ से 18 एकड़ तक वालों को लगभग स्वयं के पुरुषार्थ एवं भाग्य के भरोसे छोड़ दिया है।
अर्थ विशेषज्ञों द्वारा मान लिया गया है कि 5 से 18 एकड़ वाले मध्य वर्ग में आते हैं जबकि हकीकत में ठेला, खोमचा,रेडी दुकानदार वालो से थोड़ा ऊंचा तथा गैर जीएसटी वाले व्यवसायियों के बराबर एवं उससे कुछ कुछ कम आमदनी वाले श्रेणी में है, खेती बारी वाले तबके के संबंध में किसी अन्य मौके पर विस्तृत चर्चा करूंगा!
करोना संकट के समय जिस तरह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने साहसिक एवं सामयिक निर्णय से देश को बचाने हेतु नेतृत्व देने का प्रयास किया है तथा उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने प्रदेश के बाहर फंसे लोगों के प्रति दिलेरी दिखाई है उसे देश एवं प्रदेश का मनोबल बढ़ाने में सहायता मिला है* देश के अनेक मुख्यमंत्री एवं करोना के मोर्चे पर लड़ने वाले सरकारी तंत्र के योद्धाओ ने अब तक अभूतपूर्व समर्पण का परिचय दिया है लेकिन चीनी मिलों के मालिकों ने निराश किया है पिछले कुछ वर्षों से सरकारी सहायता के अभ्यस्त हो चुकी चीनी मिलों ने अनुदान की प्रत्याशा में गन्ना किसानों के गन्ना मूल्य भुगतान को बहुत पीछे  एवं धीमा कर दिया है जबकि उन्हें करोना संकट के समय उदारता दिखाना चाहिए था। करोना ने कुछ गहरी चोट, संदेश एवं संकेत दिया है जिसे समय रहते समझने की जरूरत है परस्पर स्वावलंबी गांव, आत्मनिर्भर समाज एवं राज्य, तथा श्रम प्रधान एवं सस्ती तकनीक आधारित उत्पादन प्रणाली ही राष्ट्र को भविष्य के आर्थिक संकट, वायरसों के प्रकोप, तथा प्रकृति की नाराजगी से बचा पाएगी।
नीतिकारो, शासनाध्यक्षों को महात्मा गांधी के हिंद स्वराज, पंडित दीनदयाल उपाध्याय, राम मनोहर लोहिया एवं चौधरी चरण सिंह को जरूर पढ़ना चाहिए, जीवन-शैली अर्थनीति तथा उत्पादन प्रणाली में बदलाव भविष्य की जरूरत बन गई है उत्पादन प्रणाली मनुष्य की उपयोगी तथा प्रकृति की सहयोगी होनी चाहिए ।


मदन गोविन्द राव
   पूर्व विधायक
 कुशीनगर (ऊ.प्र.)


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