शनिवार, 30 मई 2020

अजीत जोगी विचित्र प्रतिभा के धनी रहेंं

रायपुर। अजीत प्रमोद कुमार जोगी एक भारतीय राजनेता थे तथा छत्तीसगढ़ के प्रथम मुख्यमंत्री रह चुके थे। 29 अप्रैल 1946 को छत्तीसगढ़ के बिलासपुर में जन्मे अजित जोगी ने भोपाल से मैकेनिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई की और बाद में उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय से क़ानून की डिग्री ली। जोगी ने कुछ समय तक रायपुर के इंजीनियरिंग कॉलेज में अध्यापन भी किया।


प्रशासनिक सेवा में एंट्री


जोगी सिविल सर्विसेस की परीक्षा दी और भारतीय पुलिस सेवा के लिये चुने गये। डेढ़ साल तक पुलिस सेवा में रहने के बाद जोगी ने फिर से परीक्षा दी और वो भारतीय प्रशासनिक सेवा के लिये चुन लिये गये। मध्य प्रदेश में 14 सालों तक कई महत्वपूर्ण ज़िलों के कलेक्टर रहे। अजित जोगी ख़ुद को आदिवासी मानते थे लेकिन पिछले कई सालों से उनकी जाति पर विवाद बना रहा. अभी भी उनकी जाति का मामला न्यायालय में लंबित है। अपनी दबंग छवि के कारण वो मध्य प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह के काफ़ी नज़दीकी लोगों में शुमार थे। अर्जुन सिंह और राजीव गांधी की सलाह पर ही उन्होंने नौकरी छोड़ी और फिर उन्हें कांग्रेस पार्टी ने राज्यसभा का सदस्य बनाया तथा जल्दी ही अजित जोगी राजीव गांधी की कोर टीम के सदस्य बन गये और दो बार राज्यसभा के लिये चुने जाने वाले अजित जोगी को कांग्रेस पार्टी ने राष्ट्रीय प्रवक्ता भी बनाया।


राजनीति(अजित जोगी कहते थे-“मैं सपनों का सौदागर हूं।”)


राजीव गांधी के साथ अजीत जोगी 1998 में उन्होंने रायगढ़ लोकसभा से पहली बार चुनाव लड़ा और वो संसद पहुंचे। हालांकि एक साल बाद 1999 में उन्हें हार का सामना करना पड़ा।तब मान लिया गया था कि पार्टी में अब जोगी को हाशिये पर ही रहना होगा। लेकिन वर्ष 2000 में मध्य प्रदेश से अलग जब छत्तीसगढ़ राज्य बनाया गया तो मुख्यमंत्री के तमाम नामों की अटकलों के बीच अप्रत्याशित रूप से अजित जोगी राज्य के पहले मुख्यमंत्री बनाये गये। जोगी ने किसी करिश्माई नेता की तरह काम करना शुरू किया. स्थानीय बोली में दिये जाने वाले उनके भाषणों ने पहली बार लोगों में छत्तीसगढ़िया अस्मिता को जगाने का काम किया। रामानुजगंज से लेकर कोंटा तक, राज्य के अलग-अलग हिस्सों में उनके हर दिन के दौरों का रिकॉर्ड अब तक बरक़रार है।


कार्यकाल: (छतीसगढ़: 9 नवम्बर 2000 – 6 दिसम्बर 200


अफ़सर से नेता बने जोगी ने अपने अफ़सरों पर कहीं अधिक भरोसा किया और राज्य में अफ़सरशाही ने पार्टी के नेताओं को ही हाशिये पर खड़ा कर दिया. सरकार एक के बाद एक गंभीर आरोपों में उलझती गई। अंततः केवल तीन साल के भीतर ही ‘सपनों के सौदागर’ से ‘यथार्थ का सार्थवाह’ बनने की उनकी कोशिश धरी रह गई और 2003 में जोगी के नेतृत्व में लड़े गये विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी को हार का सामना करना पड़ा। राज्य में भारतीय जनता पार्टी की सरकार चुनी गई. जिसने अगले 15 सालों तक शासन किया। 2003 के चुनाव के दौरान ही उनके बेटे अमित जोगी पर राकांपा के नेता राम्वतार जग्गी की हत्या के आरोप लगे और उन्हें लंबे समय तक जेल में भी रहना पड़ा। सत्ता जाने और बेटे के हत्या के आरोप में फंसने के बाद 2003 में कथित रूप से भाजपा विधायकों की ख़रीद-फरोख़्त का आरोप उन पर लगा और कांग्रेस पार्टी ने उन्हें पार्टी से निलंबित भी कर दिया।अगले साल यानी 2004 में अजित जोगी का न केवल निलंबन वापस हुआ, बल्कि पार्टी ने उन्हें महासमुंद से लोकसभा की टिकट भी दी।आपातकाल में सूचना एवं प्रसारण मंत्री रहने के अलावा कांग्रेस पार्टी के दिग्गजों में शुमार किये जाने वाले विद्याचरण शुक्ल इस सीट से भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार थे. लेकिन अजित जोगी यह सीट जीतने में कामयाब रहे।


मात्र ढाई घंटे में कलेक्टर से नेता बने थे 


पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन की जमी-जमाई जॉब छोडकर राजनीति में आने का किस्सा भी वो अपने सहयोगियों को बड़े रोचक अंदा में बताते थे। वो कहते थे कि ढाई घंटे के खेल में वे कलेक्टर से नेता बन गए थे। वह तब इंदौर के कलेक्टर थे। एक दिन ग्रामीण इलाके में दौरे के लिए गए थे। रात को जब घर लौटे तो पत्नी रेणु ने बताया कि प्रधानमंत्री कार्यालय से फोन आया था, पीएम राजीव गांधी बात करना चाह रहे थे। जोगी ने सोचा कि पीएम क्यों एक कलेक्टर को फोन करने लगे। इसके बाद रात करीब 9:30 बजे उन्होंने पीएम ऑफिस के नंबर पर फोन किया। राजीव गांधी के तत्कालीन पीए वी जॉर्ज ने फोन उठाया और कहा, ‘कमाल करते हो यार, देश का प्रधानमंत्री तुमसे बात करना चाह रहा है और तुम गांव में घूम रहे हो।’ इसके बाद उन्होंने कहा कि पीएम सुबह से उनसे संपर्क करने की कोशिश कर रहे हैं। वे चाहते हैं कि वे तुरंत कलेक्टर पद से इस्तीफा दें। 


कलेक्टर से नेता बनने वाले पहले व्यक्ति थे जोगी


अचानक इस्तीफे की बात सुनकर जोगी चौंक गए और कहा कि वे डेपुटेशन पर पीएम ऑफिस ज्वाइन कर सकते हैं इसमें रिजाइन देने की क्या जरूरत है। इस पर जॉर्ज ने कहा कि पीएम चाहते हैं कि वे राज्यसभा के लिए मध्यप्रदेश से नामांकन भरें। उनसे कहा गया कि रात 12 बजे तक दिग्विजय सिंह उन्हें लेने इंदौर पहुंच जाएंगे और इस्तीफे की सारी औपचारिकता सुबह 11 बजे तक पूरी हो जाएगी। उनके पास ढाई घंटे का समय है डिसाइड करने के लिए। इसके बाद जोगी केवल तीन लोगों से बात कर पाए थे, उनकी पत्नी रेणु जोगी, पीए और इंदौर के एक आइरिश डॉक्टर से। तीनों ने उन्हें प्रोत्साहित किया जिसके बाद उन्होंने एडमिनिस्ट्रेटिव सर्विसेस छोड़ कर राजनीति में जाने का फैसला किया और दूसरे ही दिन भोपाल जाकर राज्यसभा के नामांकन भरा था। 


स्व. अजीत जोगी की संपत्ति  


चुनाव आयोग को दिए गए हलफनामे के अनुसार महासमुंद संसदीय क्षेत्र से कांग्रेस उम्मीदवार और पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी के पास चल संपत्ति 43.82 लाख रुपए और अचल संपत्ति 1.10 करोड़ रुपए, दोनों मिलाकर डेढ़ करोड़ रुपए से अधिक की संपत्ति थी। उनकी पत्नी रेणु जोगी के पास 1.10 करोड़ रुपए की चल और 3.52 करोड़ रुपए की अचल संपत्ति है। इस तरह जोगी दंपत्ति के पास करीब सवा 6 करोड़ रुपए की संपत्ति बताई गई है।


अजीत जोगी के नाम पर किसी प्रकार की देनदारी नहीं थी। उनकी पत्नी रेणु जोगी के नाम पर करीब 15 लाख रुपये का आवास ऋण है जो रायपुर स्थित भारतीय स्टेट बैंक की एक शाखा में चुकाना है। 


स्व.अजीत जोगी पर मुकदमे  


शपथपत्र में अजीत जोगी द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार, उनकी जाति संबंधी मामला न्यायालय में लंबित है। उन्होंने इससे पहले शहडोल लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र से कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में कंवर जाति का प्रमाणपत्र प्रस्तुत किया था जिसे गलत बताया गया था। इस पर सीजेएम न्यायालय शहडोल में धारा 420,467, 468, 471 भादंसं के तहत मामला पंजीकृत किया गया था।  उन्होंने दो अन्य प्रकरणों पर उच्च न्यायालय जबलपुर में लंबित होना और अंतिम बहस के लिए तिथि निर्धारित नहीं होने की जानकारी दी थी।साथ ही अधीनस्थ न्यायालय की कार्यवाही स्थगित होने का उल्लेख किया था। जोगी ने शपथपत्र में मीडिया के हवाले से एक टिप्पणी का भी उल्लेख किया था कि सीबीआई द्वारा विशेष न्यायालय रायपुर में एक प्रकरण में समापन रिपोर्ट प्रस्तुत किए जाने की जानकारी मिली है। 


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