ड्राइवर, क्लीनर ,कंडक्टर, मैकेनिक मिलावट और मजदूर पेशा व्यक्तियों का हाल भी पूछ लो जनाब
पंजाब से सुरिंदर प्रसाद की रिपोर्ट ।
लॉक डाउन के चलते हुए देशभर में हर आदमी अपने घर में रहने की कोशिश कर रहा है बल्कि यूं कहें कि वह भी लाक डाउन हो चुका है। लेकिन इस लाक डाउन में जिस तरह से गरीब लोगों का एक अहम तबका परेशान हैं, उसके बारे में शासन और प्रशासन को गंभीरता से सोचना बहुत ज्यादा जरूरी हो गया है क्योंकि यह वह लोग हैं जो खुद भूखे रहकर अपने मालिकों का गल्ला भरते हैं । यह वह लोग हैं जो सुबह कमा कर शाम को पेट भरते हैं। ऐसे कई लोग अपने घरों के अंदर कैद होकर इस तरह से इंतजार कर रहे हैं जैसे कोई रोज आने वाली इनकम उन्हें घर बैठे ही मिलेगी। लेकिन ऐसी कोई इनकम उनके घर आना नहीं है। हम यहां बात कर रहे हैं बसों पर और ट्रकों पर काम करने वाले वह ड्राइवर, क्लीनर, कंडक्टर तथा बस को सुधारने वाला मैकेनिक। घर बनाने का काम करने वाला सिलावट और तगारी तो क कर घर बनाने में मदद करने वाला वह मजदूर जो इस समय ना तो महाराष्ट्र गुजरात और ना ही राजस्थान गया है वह अपने जिले में अपने गांव में ही रह कर इस प्रकार की मजदूरी कर रहा है। उनका घर भी आज बर्बादी की ओर बढ़ रहा है। क्योंकि बस के या ट्रक के ड्राइवर , क्लीनर और कंडक्टर को अथवा मैकेनिक को कोई महीने की पगार गाड़ी के मालिक नहीं दे रहे हैं यह वह लोग हैं जो रोजाना ?200 से लेकर ?400 तक कमाते हैं आज वह इनकम बंद हो चुकी है। गाड़ी मालिक या प्रशासन इनकी खेर खबर लेने के लिए अभी तक इनके दरवाजे पर नहीं पहुंचा है। दूसरी ओर चालक परिचालक संघ के द्वारा भी शासन और प्रशासन से यह मांग की जा रही है कि उन्हें 21 दिनों तक घर पर रहते हुए लाकडाउन में किस तरह से अपना और अपने परिवार का गुजर बसर करना है उसके लिए उन्हें मदद देना जरूरी है किंतु 22 मार्च से लेकर समाचार लिखने तक ना तो गाड़ी के सेठ और ना ही शासन का कोई जवाबदार अधिकारियों ने उनकी खेर खबर नहीं ली में आने वाला समय उनके लिए कितना कठिन होगा इसकी कल्पना की जा सकती है । कोरोना की महामारी से बचते हुए कहीं भूखे मरने की महामारी आम ना हो जाए इसके लिए खासतौर से कमजोर, मध्यमवर्गीय एवं अत्यंत गरीब परिवारों की पूछ परख करना, उन्हें मदद करना, समाजसेवियों के लिए शासन के लिए और प्रशासन के लिए अति आवश्यक हो गया है। क्योंकि शहर तो वीरान हो चुके हैं और जो घर में रहते हुए वर्षों से गुमसुम थे, वह आज फिर घरों में रहते हुए और ज्यादा गुमसुम हो चुके हैं। क्योंकि उनके पास ना तो बाजार से लाने का और ना घर चलाने का कोई साधन मुहैया है यही हाल मजदूर पेसा सिलावट लोगों और मजदूरों का है। जो रोजाना कमा कर रोजाना खाते हैं आज रोज की कमाई में घर को चलाना और बच्चों को पालना इन लोगों के लिए भी काफी तनावपूर्ण बन चुका है। इसलिए हमारा यही कहना है कि । ऐसे बंद हो चुकी है, लेकिन खाने का काम जारी है ऐसे
शहरों का यू वीरान होना
कुछ गजब कर गया,
बरसों से पडे गुमसुम घरो को
और गमज़दा कर गया।
सभी ड्राइवर कल्याण संघ लुधियाना पंजाब।
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