संकल्प के प्रति 'संपादकीय'
रणभूमि में जो सबसे आगे और आतुर है। वह प्रत्येक दशा में वीर है। वह चतुर है या नहीं, यह बात कोई मायने नहीं रखती है। आज देश इतने बुरे दौर से गुजर रहा है। जो लोग हर मंच और भीड़ में आगे नजर आते थे। वे सब मृत्यु के भय से कहीं दुबक कर बैठ गए हैं। भय का आवरण ओढ़ने के कारण उनका गला सूखता जा रहा है। इसीलिए कर्म हीन सदा संसार में अपयश को प्राप्त होता है। सामर्थ हीन और अभावग्रस्त जनता पीड़ा का अर्थ बखूबी समझ रही है। जो वेदना और संवेदना को प्रतीत कर रहे हैं। अपने दायित्व निर्वाह करने में स्वयं को असफल और विवश प्रतीत कर रहे हैं। ऐसे समस्या ग्रस्त लोगों का किसी प्रकार कोई अनुमान निर्धारित करना घोर मूर्खता ही साबित होगी। साथ-साथ चटुकारिता करने वाले पत्रकारों पर भी लानत है। जो अपने कर्तव्य से भटक गए हैं। समाज को संकट की विषम परिस्थितियों में वास्तविकता दिखाने वाले, बताने वाले दर्पण की आवश्यकता होती है। लेकिन यह बात समर्पित भाव का ज्ञान रखने वाले लोग ही समझ पाएंगे। जो खुद अपने निजी स्वार्थों के कारण एहसानों की जंजीरों में कैद है। उनसे भला क्या उम्मीद की जा सकती है? जो नेता अथवा जनप्रतिनिधि जनता के सामने नए-नए डोंग का स्वांग रचते थे। उनकी भी असलियत आज जनता स्वयं देख रही है। इस बात को आप भी बखूबी जानते हैं। आदर्शों की बकवास करने से कोई आदर्शवादी नहीं बनता है। जो आदर्श और सिद्धांतों को आत्मसात कर लेता है। उसे बखान करने की जरूरत ही नहीं पड़ती है। उसकी निष्ठा और कर्तव्य स्वयं उदाहरण के रूप में प्रस्तुत रहते हैं।
देश में 'सामाजिक दूरी' का ध्यान रखने के साथ-साथ अपनी निर्धारित 'सामाजिक परिधि' के सिद्धांत पर समाज को आगे बढ़ने की जरूरत है। एक दूसरे का सहयोग और सेवा करने की जरूरत है। इस खाई को पाटने का कार्य उद्देश्य हित साधने के लिए सामाजिक संस्थाओं को ही पहल करनी होगी। सामाजिक संस्थाओं ने स्वयं इस उद्देश्य पूर्ति हेतु यह संकल्प लिया है। जिसे निभाने का सही वक्त है। सरकार सभी को सुरक्षित रखने का प्रयास कर रही है। निरंतर विभिन्न प्रकार के आयामों पर कार्य भी किया जा रहा है। लेकिन यह सरकार की पहुंच से बाहर है।
राधेश्याम 'निर्भयपुत्र'
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