मधुकर कहिन
सावधान अजमेर!! इसे कहते हैं मोटिवेशनल वायरस
नरेश राघानी
इन दिनों इंटरनेट के माध्यम से छाए हुए मोटिवेशनल स्पीकर डॉ विवेक बिंद्रा बड़ी चर्चाओं में हैं। वैसे तो डॉ बिंद्रा एक प्रेरणादायक वक्ता है। जिसे अंग्रेजी में मोटिवेशनल स्पीकर बोलते हैं। परंतु इनकी वेबसाइट बड़ा बिजनेस डॉट कॉम इससे भी आगे कई और चीजें करने का दावा करती है। जिसमें यह मोटिवेशन स्पीच के माध्यम से लोगों को प्रेरित करने हेतु फीस लेते हैं। लोग इन्हें सुन भी रहे हैं और फीस भी दे रहे हैं। विवेक बिंद्रा ने कंपनी भी खोल रखी है। जिसकी कुल मिलाकर कागजों पर कैपिटल 10 लाख मात्र है। ऐसी तीन कंपनियां रेजिस्टर है। यानी कि कुल मिलाकर 30 लाख ।
कंपनी का काम काज देखकर आपको ऐसा बिल्कुल नहीं लगेगा कि यह एक ही सेमिनार या एक कोर्स फ्रैंचाइज़ के 15 लाख ले लेती है। परंतु यहां बात जब पैसे की है तो डॉ बिंद्रा से यह पूछना बहुत आवश्यक हो जाता है कि अगर इसे एक कोर्स कह रहे हैं जो कि किसी पाठ्यक्रम की तरह सुनाई दे रहा है। तो ऐसा पाठ्यक्रम की मान्यता किस यूनिवर्सिटी अथवा कौंसिल से है ? क्या उनके पास इस तरह से बिना किस उपयुक्त मान्यता के शिक्षा को इस तरह से बेचने का कोई वैधानिक अधिकार सरकार द्वारा है या नहीं है ? क्या उनकी कंपनी ने मानव संसाधन मंत्रालय , एआईसीटीई , या किसी भी सरकारी अकादमिक परिषद से इस की अनुमति या मान्यता ली है अथवा नहीं ? क्या उन्हें यह मालूम है कि उनके प्रतिनिधि जिन्हें वह फ्रैंचाइज़ के नाम पर धन लेकर व्यावसायिक अधिकार दे रहे हैं , वह आम लोगों से इसका कितना पैसा ले रहे हैं ? और किस रूप में ले रहे हैं ? पैसे की रसीद भी देते हैं या नहीं ? क्या इंटरनेट पर चल रहे उनके यूट्यूब चैनल को भारतीय प्रसार नियमों के तहत अनुज्ञा प्राप्त है या नहीं ? क्या लोगों से ली गयी राशि पर जीएसटी लिया जा रहा है या नहीं ? क्या सर्विस टैक्स नियमों की पालना हो रही है या नहीं ? फिर जिस मोटिवेशन कोर्स का आपके सहयोगी पैसा ले रहे हैं , वह वीडिओज़ क्या वैसे ही आपके यूट्यूब पर उपलब्ध है या नहीं ?
वगैराह ... वगैराह
खैर !!!! सुनाई यह दिया है कि अजमेर में 15 से 20 हज़ार की फीस लेकर इस तरह का कोर्स offline बेचा जा रहा है।
देश में आयोजित ऐसे हर एक सेमिनार में सैकड़ों लोग होते हैं। जो फीस देकर डॉ बिंद्रा को सुनते हैं। और ऐसे एक सेमिनार की कमाई लगभग 15000 प्रति श्रोता के हिसाब से ली जा रही है। अब आप यदि 15 हज़ार को सेमिनार में बैठे श्रोताओं की संख्या से गुना करतेहैं तो यह आंकड़ा लाखों पार कर जाता है । यानी कि एक सेमिनार से लगभग 15 लाख रुपये मिलते हैं। और बिंद्रा इस तरह के सैकड़ों सेमिनार कर चुके हैं। जबकि सरकारी रिकॉर्ड में शायद डॉ बिंद्रा की एक कंपनी की टोटल पेड अप कैपिटल 1 लाख मात्र दिखाई दे रही है । ऐसी और भी कंपनियां सरकारी रिकॉर्ड में दर्ज है परंतु कोई भी कंपनी अब तक डेढ़ साल से ज्यादा पुरानी नहीं हैं। शायद हर साल नई कंपनी बना कर यह किया जाता होगा !!!!
फिर भी जो व्यवसाय कागज पर मात्र 10 लाख का है। वह एक ही फ्रैंचाइज़ शो में 15 लाख छाप रहा है ??? वह भी बिना किसी रसीद के ?? कैसे ???
और सरकारी महकमों को अब तक आखिर भनक भी क्यूँ नहीं लगी है ? इन सब बातों पर क्या सरकारी जांच की आवश्यकता महसूस नहीं होती ? हमारे सिस्टम की प्रॉब्लम यह है कि यह सिस्टम खुद लोगों को बढ़ावा देता है , और खुद ही कुछ बहुत बड़ा हो जाने के बाद इन्हें रास्ता भी दे देता है बच के निकलने का ...
मेरे इस कथन का बिल्कुल यह मतलब नहीं है कि डॉ बिंद्रा कोई बहुत गलत काम करने जा रहे हैं। हां यह मतलब अवश्य है की यह पूरा सही दिखाई नहीं दे रहा है। और जितना गलत है उतना पूछने का अधिकार इस देश में हर किसी को है ? वक्त पर हमारे जैसे कुछ सनकी गला फाड़कर लोग चिल्ला लेते हैं। तो कुछ हो जाता है। नहीं तो जो जैसे चल रहा है , बस वैसे ही काम चल जाता है। अब आप सोच रहे होंगे कि मैं यह सब बातें यहां अजमेर में बैठे लोगों को क्यों बता रहा हूँ ??? तो साहब सतर्क हो जाइए और वो इसलिए क्योंकि
इस कंपनी का अगला निशाना अब अजमेर है ।
अजमेर की कुछ घरेलू महिलाओं का क्लब अब इसका शिकार होने जा रहा है । जिस का संचालन अजमेर के एक राजनीतिक परिवार की ग्रहणी करने जा रही है। जो कि शायद इन सब बातों से खुद भी अनजान है । परंतु जाने या अनजाने यदि कोई नुकसान हुआ तो वह अजमेर वासियों के ही होगा। एक ज़िम्मेदार नागरिक को इस तरह का कोई भी कदम सोच समझ कर पारिवारिक और सामाजिक प्रतिष्ठा को ध्यान में रखते हुए ही उठाना ज़रूरी होता है। जयपुर में बैठे इस कंपनी के कुशल कारीगरों का इतिहास एमएलएम कंपनियों से जुड़ा है। जो कि अक्सर अपने ही चेंनल पार्टनरों से लेनदेन को लेकर विवाद में उलझे रहने हेतु मशहूर होते है।परंतु इन्हें यह मालूम नहीं है कि ये अजमेर है बाबू।
अब अजमेर तो !!!! सदा ही मशहूर रहा है क्योंकि अजमेर ने कभी भी आधी सही या पूरी गलत चीज को स्वीकार नहीं किया है। चाहे वह प्रवीण तोगड़िया का त्रिशूल दीक्षा के बहाने त्रिशूल बाँटनां हो या फिर कोई भी छोटे से छोटा घोटाला । किसी भी तरह की कोई थोड़ी सी भी बेवाजिब बात जब जब भी अजमेर की धरा पर हुई है। अजमेर के लोगों ने उछल कर बाउंस बैक किया है।और बड़े से बड़े धुरंधरों को धूल चटाई है। जिन का विजय रथ शायद पूरे हिंदुस्तान में कहीं भी नहीं रुकता था। उनके विजय रथ के परखच्चे अजमेर की धरा पर पढ़ते ही उड़ गए हैं। इसका इतिहास गवाह है।
प्रशासन को चाहिए कि इस तरह की गतिविधियों और ऐसे आसमानी आयोजन करने वाले बाहरी व्यावसायिक समूहों की हरकतों पर नज़र रखे , ताकि अजमेर की भोली भाली जनता किसी आर्थिक हानि का शिकार न बने।
मेरा यह मानना है कि पत्रकार को इंसाफ के झगड़े में नहीं पड़ना चाहिए। पत्रकार का काम आवाज उठाना रहा है। सो अपन ने आवाज उठा दी भैया !!! जिस किसी का जमीर आवाज़ सुनकर जागेगा वह अपने आप अपना काम करेगा।
अपना काम तो हो गया भैया !!! और हां जिस किसी को मेरी यह बातें मनगढ़ंत अफसाना लग रही हो। वह सादर आमंत्रित है मेरे गरीब खाने पर। मैं उसे सब कुछ उपलब्ध करवाने में सक्षम महसूस करता हूँ।
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Thank you, for a message universal express.