पूर्वजो की याद को पुनर्जीवित करना चाहते हैं कालका
इसी मंशा से यूरोपीय देश से कालका पहुँचे कौशांबी
125 वर्ष पूर्ब यूरोपीय देश गए पूर्वजों के ठौर ठिकाने को तलाश रहे हैं कालका
कौशांबी। अंग्रेजी हुकूमत में अंग्रेजों के चंगुल में फंसकर सीताराम यूरोप देश चले गए थे चौथी पीढ़ी के बाद उनके वंशज अपनी मातृभूमि तलाशने अपने वंशजों को याद कर उनके यश कीर्ति को पुनर्जीवित करने कौशांबी आए हुए हैं
ब्रिटिश पीरियड में कौशांबी क्षेत्र का हिस्सा इलाहाबाद जनपद के अधीन था उन दिनों अंग्रेजी हुकूमत भारत देश में हावी थी इस देश में गरीबी का आलम यह था कि गांव की जनता को काम धंधे नहीं मिलते थे और उसे कई कई दिनों तक भूखे सो जाना पड़ता था पेट के भूखे लोग दूसरों की बेरोजगारी कर अपने वा परिवार के पेट की आग शांत करना चाहते थे इस क्षेत्र के गरीबी झेल रहे लोगों को अंग्रेजों ने सुनहरे सपने दिखाए और अंग्रेजों के सुनहरे सपने में फंसकर तत्कालीन इलाहाबाद जिले के लोधन पुरवा निवासी सीताराम अंग्रेजो के साथ यूरोपीय देश चले गए लेकिन कौशांबी से जाने के बाद उन्हें अपनी मातृभूमि से लगाव रहा और पीढ़ी दर पीढ़ी अपने वंशजों को वह अपना इतिहास और जन्मभूमि बताते रहें
अंग्रेजों के साथ गए सीताराम ने चौथी पीढ़ी के हैट्रिक कालका को बताया कि वह लोधन के पुरवा के रहने वाले हैं और घर के सामने रेल लाइन के किनारे एक पीपल का विशाल वृक्ष है और गांव में उनके दो घर हैं उनके पिता का नाम कालका प्रसाद है और वह लोध बिरादरी के है यह बात अपने पुत्रों प्रपौत्रों को बताई
सीताराम ने अपने पुत्र रामप्रकाश को बताइ और रामप्रकाश ने अपने पुत्र श्याम नारायण को भारत भूमि को अपना जन्म स्थान वंशावली बताकर इस बात को आगे बढ़ाया इसी पीढ़ी में हैट्रिक कालका ने जन्म लिया और उनके पूर्वजों ने भी उन्हें अपनी वंशावली बताते हुए वर्तमान कौशांबी के लोधन पुरवा में अपने वंशजों की दास्तान बताई पीढ़ी दर पीढ़ी बीतता गया और चौथी पीढ़ी में अपनी मातृभूमि को तलाशते यूरोपीय महाद्वीप के छोटे से देश माल्टा से पूर्वजो की जन्मभूमि लोध का पूरा पहुँचे उन्होंने बताया कि लोध के पुरवा के रहने वाले उनके पूर्वज है और उनके पूर्वजों की जन्मभूमि यही है अंग्रेजों के समय में उन्हें यहां से अंग्रेज ले गए थे गरीबी और दासता का दंश झेल रहे लोगों को सुनहरे सपने दिखाकर अंग्रेज विदेश ले गए थे पूर्वजों ने उन्हें बताया कि तमाम साथी यहां से विदेश जा रहे तो उन्हीं के साथ वह भी चले गए थे यूरोप देश से कौशांबी पहुंचे 4 पीढ़ी पूर्व विदेशों की धरती में बस चुके हैट्रिक कालका के परिवार के नसों में आज भी भारतीय रक्त प्रवाहित हो रहा है उन्हें अपनी मातृभूमि से बेहद लगाव है हैट्रिक कालका ने बताया कि अब वह कौशांबी में अपने वंशजों के ठौर ठिकाने को पुनर्जीवित करना चाहते हैं इसी उद्देश्य से वहां अधिकारियों पत्रकारों और आम जनता से मुलाकात कर रहे हैं हैट्रिक कालका का कहना है कि वह कौशांबी में एक स्वयंसेवी शिक्षण संस्थान खोलना चाहते हैं जिससे पुराने वंशजो की याद को जागृति पुनर्जीवित किया जा सके।
सुबोध केशरवानी
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