सोमवार, 2 मार्च 2020

लोनी नगर के भ्रष्टाचार का नया अध्याय

लोनी नगर के भ्रष्टाचार का नया अध्याय 
इकबाल अंसारी 
गाजियाबाद। नगर पालिका परिषद लोनी में जितना भ्रष्टाचार निरंतर-निर्विरोध जारी है। उतना उत्तर-प्रदेश की किसी भी नगरपालिका में नहीं हो सकता है। यह भ्रष्टाचार किसी से रुकने वाला भी नहीं है। कम से कम भाजपा सरकार में तो इसकी उम्मीद नहीं की जा सकती है। क्योंकि सब कुछ खरीदा जाता है बस कीमत वाजिब होनी चाहिए। इसी सिद्धांत पर यह भ्रष्टाचार दिन प दिन अपनी निर्धारित गति से आगे बढ़ रहा है।
 इसके विपरीत मंचो पर चढ़कर फट्टे ढीले करने वाले भाजपा के कई नेता गला फाड़-फाड़ कर जीरो टोलरेंस, जीरो टोलरेंस, भ्रष्टाचार मुक्त शासन चिल्लाते रहते हैं। जबकि संसद की नाक के नीचे दिल्ली की सीमावर्ती नगर पालिका के भ्रष्टाचार का जितना प्रचार-प्रसार हो रहा है। उसके ठीक विपरीत भ्रष्टाचार का ग्राफ उतना ही बढ़ता जा रहा है। कई सामाजिक संगठन और संस्थाएं विभिन्न प्रकार के प्रयास करके थक हार कर इस भ्रष्टाचार के सामने नतमस्तक हो गए हैं। कुछ लोगों ने इसके विरुद्ध कार्रवाई की नीति और दिशा बदल ली है। लेकिन भ्रष्टाचार का घिनौना खेल खुलेआम चल रहा है। नगर पालिका की कार्यप्रणाली एक आदर्श कार्यप्रणाली बन गई है। नालों में कचरा सूख गया है। जगह-जगह कूड़े के ढेर लगे हैं। गलती से कोई नाली साफ की जाती है तो कूड़ा कब उठेगा या नहीं उठेगा। इसका कुछ भी कहा नहीं जा सकता है। यह किसी एक वार्ड की नहीं, बल्कि प्रत्येक वार्ड की कहानी है। ठेकेदारों से कमीशन समय पर मिल रहा है ठेकेदार पूरी तरह खुश। चेयरमैन और अधिशासी अधिकारी की पांचों उंगली तर,सिर कढाई में है।जिला प्रशासन कुंभकरणी नींद मे सो रहा है। जागने का नाम ही नहीं लेता है। जनता को किस हद तक पीड़ा दी जा रही है। इसका आभास प्रत्येक नागरिक को है। लेकिन विवश इस पीड़ा के दंश को झेल ना उनका भाग्य बन गया है। सुविधा, विकास और निर्माण के नाम पर खुला भ्रष्टाचार जारी है। नगर-पालिका के द्वारा सार्वजनिक शौचालय के नाम पर करोड़ों रुपए हड़प कर लिए गए हैं। स्वयं जिला अधिकारी को सार्वजनिक शौचालयों का निरीक्षण करने की जरूरत है। जो भी समझ नहीं सकते हैं, उसे स्वयं देख तो सकते हैं।
 स्थानीय लोगों से जानकारी मिली है कि सार्वजनिक शौचालय की कोई सफाई नहीं होती है। ज्यादातर बनने के बाद से बंद पड़े हैं। कुछेक महीनों में एक-दो दिन खोले जाते हैं। उसके बाद बंद कर दिये जाते हैं। साफ-सफाई के नाम पर दुर्गंध के ढेर बना दिए गए हैं। भ्रष्टाचार की इंतहा हो गई है। सफाई कर्मियों, मशीनों, उपकरणों के साथ-साथ शौचालय से भी पेट नहीं भरा। कोई एक ऐसी सुविधा तो जनता को मिलनी चाहिए थी, जिससे जनता को संतोष मिलता।


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