नई दिल्ली। कोरोनावायरस को लेकर बीते कुछ समय से दावा किया जा रहा था कि कोरोना वायरस हवा में जिंदा नहीं रह सकता, क्योंकि इसके स्पाइक को सतह से चिपकना होता है। अब वुहान की सेंट्रल यूनिवर्सिटी और सिंगापुर यूनिवर्सिटी के शोधों से स्पष्ट है कि कोरोना वायरस हवा में जिंदा रह सकता है। एरोसॉल जैसे हालात बनने पर यह संभव है। यह अपवाद स्थिति है, लेकिन नामुमकिन नहीं है। वुहान सेंट्रल यूनिवर्सिटी के विशेषज्ञों ने पाया कि 1.1 घंटे से लेकर दो घंटे तक कोरोना वायरस आराम से जिंदा रह सकता है। इसने हवा में जिंदा रहने के लिए वही रणनीति अपनाई है, जो इसके ही दूर के रिश्तेदार सार्स के सीओवी वायरस ने अपनाई थी।
आपकी जानकारी के लिए बता दे कि डब्ल्यूएचओ की आपातकालीन सेवाओं और पशुजन्य रोगों के विभाग की प्रमुख डॉ. मारिया वेन केरखोव ने आधिकारिक रूप से चेतावनी दी है कि नोवेल कोरोना वायरस (कोविड-19) एयरबॉर्न (हवा में जिंदा रहना) हो सकता है। डॉ. मारिया ने अपने आधिकारिक बयान में कहा है कि एरोसॉल (हवा और वाष्प का मिश्रण) पैदा करने वाले मेडिकल उपकरण के कारण कोरोना वायरस हवा में जिंदा रह सकता है, दुर्भाग्य से कुछ देर ज्यादा जिंदा। यह अपवाद स्थिति है, लेकिन संभावित स्थिति है। वायरस को लेकर यह जानकारी सामने आने के बाद हमें संक्रमित मरीजों का इलाज कर रहे डॉक्टरों और पैरामेडिकल स्टाफ को बचाव की किट भी एरोसॉल के हालात को देखते हुए देनी होगी और लोगों को ज्यादा से ज्यादा क्वारंटाइन करना होगा। उन्होंने बताया कि कोरोना वायरस हवा में सस्पेंशन की स्थिति में रहता है और मौका पाते ही एक्टिव हो सकता है। डॉ. मारिया ने बताया कि गर्मी और नमी पर बहुत कुछ निर्भर करेगा। अहम है कि डब्ल्यूएचओ समेत कई संगठनों ने चेतावनी दी है कि ज्यादा नमी की स्थिति कोरोना के लिए फायदेमंद है। ज्यादा नमी की स्थिति में वायरस एयरबॉर्न हो सकता है।
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