मधुकर कहिन
व्यापारी और भिखारी !!!
इस देश में जो हाल पिछले कुछ सालों में व्यापारियों का हुआ है वह शायद ही कभी इतिहास में देखने को मिला हो ।
अब देखिए न ! अभी कल ही राज्य सरकार ने जयपुर से भिखारी पकड़ो अभियान शुरू किया है। जिसके तहत सड़क पर भीख मांगने वालों को पकड़ पकड़ कर उनके पुनर्वास की जिम्मेदारी कुछ स्वयंसेवी संस्थाओं को दी गई है । और उम्मीद है कि आगे यही मॉड्यूल पूरे प्रदेश में भी लागू किया जाएगा। एक परेशान व्यापारी मित्र से कल शाम इस बात पर बात हो रही थी ।
वह कुंठित होकर बोला - यार ! अजीब माहौल बना हुआ है इस देश में ? केंद्र सरकार की नीतियां कमाने नहीं देती और राज्य सरकार भीख मांगने पर भी रोक लगा रही है । कोई इंसान कमा नहीं पाए और टैक्स दे देकर सड़क पर आ जाये और भीख मांगना चाहे। तो अब भीख भी नहीं मांग सकता इस देश में। कमबख़्त ! यह सरकारें मिलजुल कर आम लोगों के भले के लिए स्वैछिक आत्महत्या सुविधा योजना क्यूँ नहीं चलती ? जिससे इस सारे जंजाल से परेशान लोग आत्महत्या की अनुमति सरकार से मांगे । जिस पर सरकार उन्हें एक रस्सी और एक लकड़ी का स्टूल मुफ़्त प्रदान करें । आत्महत्या करने वाले व्यापारी के परिजनों को स्वैछिक आत्महत्या बीमा योजना का लाभ भी मिले। क्योंकि अब बस यही एक रास्ता बच गया है आम व्यापारी के लिए इस देश में।
मैंने पीड़िता के कंधे पर हाथ रखकर कहा - भाई ! इतना परेशान होने की जरूरत नहीं है । इतना कठिन समय व्यापारियों ने देखा है, वह कट चुका है बाकी भी कट जाएगा ! ऊपर वाले पर भरोसा रखो ,थोड़ा और धैर्य रखो। क्या पता ? किसी नेता को थोड़ी बहुत अक्ल आ जाए ? वह अपनी स्वार्थ और सत्ता को छोड़कर लोक हित की बात सोचने लगे।
जिस पर मेरा व्यापारी मित्र झुंझला कर बोला - अरे ! भाड़ में जाए ऐसे नेता। यार घर तो हमें ही चलाना पड़ता है। इन लोगों का क्या है ? इनसे बस बातें करवा लो। मरना तो हमें ही है। मेरे व्यापारी मित्र की मनोदशा महसूस कर के दो पंक्तियां याद आती है जो आपसे शेयर कर रहा हूं ।
तुम्हारी शिद्दत ए तुम्हें मुबारक दुनियां।
हमारा क्या है हम तो कमबख़्त मरेंगे तन्हा।
नरेश राघानी
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