शनिवार, 15 फ़रवरी 2020

तुफां भी हार जाते हैं, कश्ती जिद पर हो

वरिष्ठ पत्रकार शंकर पांडेय



दिल्ली में विधानसभा चुनाव के परिणाम ‘आप’ और अरविंद केजरीवाल के पक्ष में गये हैं। केजरीवाल उसी दिल्ली में तीसरी बार अपनी सरकार बनाएंगे जहां से नरेन्द्र मोदी बतौर प्रधानमंत्री देश चलाते हैं। बहरहाल दिल्ली विधानसभा चुनाव में भाजपा की बुरी हार फिर चर्चा में है। दिल्ली विधानसभा को चुनाव में तो भाजपा ने चुनाव में किये गये वायदों को दरकिनार करके हिन्दू गौरव जैसे मुद्दों में चुनाव लडऩे में कोई संकोच नहीं किया, गोलीमार देना चाहिये, हिन्दुस्तान-पाकिस्तान का मैच, शाहीनबाग मुद्दों को जमकर उठाया गया, केजरीवाल ने पूरा चुनाव अपने कार्यकाल सहित शिक्षा, स्वास्थ्य, पीने का साफ पानी, प्रदूषण और बिजली के सुधार पर केन्द्रित किया था, एक टीवी कार्यक्रम में एंकर द्वारा हनुमान चालीसा से जुड़ा एक सवाल पूछा और उन्होंने सस्वर हनुमान चालीसा का पाठ कर उन लोगों के सोच पर भी हमला किया जो उन्हें हिन्दु विरोधी ठहरा रहे थे। इधर भाजपा के गली-कूचे के नेताओं सहित कुछ शीर्ष नेताओं ने तो दिल्ली की 70 सीटों वाली विधानसभा चुनाव जीतने हिन्दुस्तान-पाकिस्तान, शाहीनबाग, कश्मीर और राममंदिर के नाम पर फोकस करने की बात करते रहे।



ऐन विधानसभा चुनाव के पहले राममंदिर ट्रस्ट की घोषणा करके भाजपा ने चुनावी विमर्श में एक और महत्वपूर्ण मुद्दा भी जोडऩे का प्रयास किया। अगर इस घोषणा के बाद आम आदमी पार्टी के लोग चुनाव आयोग जाते और आचार संहिता की अनदेखी का मामला उठाते तो उनको राममंदिर विरोधी भी ठहराने में भाजपा पीछे नहीं रहती। बहरहाल केजरीवाल दिल्ली में अपने 5 साल के कार्यकाल में किये गये विकास कार्यों पर ही वोट मांगते रहे। उन्होंने तो यहां तक कहा कि यदि मेरी सरकार ने 5 साल में कार्य नहीं किया है तो मुझे वोट मत देना, इतनी साफगोई से बात करने का किसी मुख्यमंत्री या पार्टी नेता का पहला अवसर था।


बहरहाल दिल्ली में विधानसभा चुनाव भाजपा के लिए प्रतिष्ठा का सवाल बना था। पार्टी का सबसे बड़़ा मुद्दा राममंदिर के निर्माण की घोषणा चुनाव पूर्व करना तथा मंदिर निर्माण ट्रस्ट की घोषणा करना भी था कोई भी राजनीति शास्त्र का विद्यार्थी समझ सकता है कि इसका भी लाभ लेने की रणनीति भाजपा की थी। पुलवामा सहित पाक में घुसकर मारने के नाम पर पिछला लोकसभा चुनाव का परिणाम जरूर भावनात्मक मुद्दे पर भाजपा के पक्ष में गया पर पिछले 2 सालों में 7 राज्यों में भाजपा की असफलता की चर्चा भी रही। छत्तीसगढ़ में 15 सालों की डॉ. रमन सिंह सरकार को 15 सीटों में सिमटा दिया गया, राजस्थान, म.प्र., झारखंड, महाराष्ट्र में गैर भाजपा सरकार बनी, हरियाणा में जोड़-तोड़ कर जरूर भाजपा की फिर सरकार बनी और दिल्ली में तो 70 सीटों में महज 8 सीटों पर ही भाजपा के विधायक जीत सके, 62 सीटों पर जीतकर आप में भाजपा के तमाम भावनात्मक मुद्दों पर पानी फेर दिया दिल्ली के विधानसभा चुनावमें भाजपा सरकार के लगभग सभी मंत्री, 200 के आसपास सांसद, स्वयं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और भाजपा के रणनीतिकार अमित शाह सहित भाजपा के नवनियुक्त अध्यक्ष जे.पी. नड्डा ने भी कमान संभाली पर सरकार बनाने में असफल रहे वहीं कुछ सालों पहले ही राजनीति में जन्मी ‘आप’ पार्टी तीसरी बार सरकार बनाने में सफल रही। जहां तक कांग्रेस की बात है तो उसे इस बार भी एक भी सीट नहीं मिली वैसे यह कहा जा सकता है कि कांग्रेस के बड़े नेताओं ने दिल्ली विधानसभा चुनाव में वह रूचि नहीं ली जिसकी उम्मीद की जा रही थी। राहुल और प्रियंका ने एक-दो स्थानों पर जरूर प्रचार किया।


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