पतित-पावन 'उपन्यास'
गतांक से...
जया क्रोधित होकर बोली- मेरे माता-पिता हर रोज मुझसे कहते रहे हैं कि कल्पना तुम्हारी सहेली बनने योग्य नहीं है। प्रतिदिन मना करते थे कि उससे मिलना-झुलना तुम्हारा ठीक नहीं है। लेकिन मैंने कभी नहीं मानी कि कल्पना जैसी दिखती है वैसी है। सोचती थी कल्पना महान लड़कियों में से है जो ढूंढने से भी नहीं मिलते। इस सारे गांव में एक भी लड़की से मैंने तुम्हारी तुलना नहीं की। लेकिन अफसोस मेरे माता-पिता के अनुभव ठीक थे। उनकी बात बिल्कुल सही थी। तुम्हें तो अपनी जात दिखानी ही थी। मेरे पिताजी कहा करते थे कि जब भी हमारे यहां कोई कार्यक्रम होता है। तुम कल्पना को बुला लेती हो और तुम्हें उसे मित्र कहते लज्जा भी नहीं आती है। जबकि वह तुम्हारे किसी भी प्रकार से योग्य नहीं है। मैं सुंदर-संसाधनों से युक्त रहती हूं और तुम प्रत्येक प्रकार से अभावग्रस्त जीवन जीती हो। तुम मुझसे दूर रहना चाहती हो, तो फिर मुझे क्यों एतराज होगा? तुम चाहती हो कि हम दोनों अलग रहे। तो ठीक है।
कल्पना ने न लरजती आवाज में कहा- मैं भी यही सोचती थी कम से कम तुमने अपनी परीक्षा तो पास की। तुम्हारा बहुत-बहुत शुक्रिया। तुम्हारे और मेरे विचार कितने मिलते हैं।
( कल्पना कुछ समय तो खेत में काम करती रही परंतु आज उसके कदम डगमगा गए थे वह लड़खड़ाते हुए कदमों से घर आ गई और एक कमरे में चारपाई लेकर लेट गई। पता नहीं क्यों उसकी आत्मीयता उसे टीस कर रही थी। रह-रहकर उसकी आंखों में आंसू आ रहे थे। कल्पना सोच रही थी कि बिल्कुल भी ठीक नहीं हुआ है। लेकिन इसके विपरीत कल्पना यह भी समझ रही थी। जया के वास्तविक स्वरूप में अभिमान पनपने लगा है। जिसके ताप से जया का विवेक स्थिर हो गया था। अकस्मात ही जया को तेज ज्वर हो गया। जया को खेत में ततैंया ने काट लिया था। जिसके विष से उसको बहुत तेज ज्वर हो गया था। रोती-चिल्लाती जया को खेत से लाते-लाते, ज्वार बहुत अधिक तेज हो गया था। कई लोग उसकी आव-भगत में लगे हुए थे। कई वैद उपचार में लगे थे। कई प्रकार की दवाइयां उस पर व्यर्थ साबित हो रही थी। गांव के पुराने वैद्य ने भरकस प्रयास किया। किंतु जया को कोई आराम नहीं हो रहा था। ज्वार का साम्राज्य तो स्थापित था। जया का शरीर किसी अंगार की भांति दहक रहा था। कई मुल्ला-मौलवी भी अपना इलम दिखा चुके थे। किंतु जया पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा था। वह पूरा दिन मूर्छित ही पड़ी रही। 3 दिन हो चले थे किंतु जया की तबीयत में जरा भी सुधार नहीं था।
अपरिचित कल्पना ने अपने घर के आंगन में लगी नीम बेल देखी सोचा शायद किसी ने इसे पानी नहीं दिया। किंतु जब कल्पना ने देखा की बेल जड़ से सूख रही है। तब उसने अपने पिता से कहा जय की तबीयत ठीक है या कुछ गड़बड़ है?
रतिराम ने कहा- ठीक नहीं है कल्पना ने इतना ही सुना वह वापस अपने कक्ष में आकर मुंह ढक कर रोने लगी। अज्ञात दुख से वह पीड़ित थी। अकारण ही मन मस्तिष्क पर इतना बोझ हो गया था। कल्पना कुछ समय के बाद बेसुध हो गई। क्योंकि कल्पना के आत्मसम्मान को अत्यधिक ठेस पहुंचाई थी। परंतु कल्पना में विचित्र व्याधा थी। एक अज्ञात स्नेह और उसी में एक सहानुभूति उमड़ रही थी। वही उपकारी मित्र भी शह कर रह जाए, इस प्रकार का उपकार उसके भीतर उमड़ रहा था। गहरी सोच में डूबी कल्पना चारपाई से उठकर खेत की ओर चल दी।
कल्पना ने पूछा- बापू जया की तबीयत अच्छी नहीं हुई है। क्या हुआ है उसे?
रतिराम ने आश्चर्य से कहा- नहीं अभी नहीं। पर तू यहां क्यों आई है तूने तो यहां ना आने की कसम खाई है और कई दिन से बंद भी कर रखा था। तुझे नसीहत नहीं होना पड़ा अपने प्रण को तोड़कर तू यहां आई। क्या सोचकर आई क्या मतलब है?
कल्पना ने अधीरता से कहा- बापू जया के प्रति प्रणय भाव अभी भी मेरे हृदय में है। हम दोनों एक दूसरे से रुष्ट हो गए हैं तो क्या हुआ, हमारी मित्रता तो हमारे हृदय में व्याप्त है। और स्त्री का ममत्व सदैव उसके साथ रहता है और वह समय-समय पर आकृष्ट भी होता रहता है। मैं भी जानती हूं कि मैं अपने सामर्थ्य के अनुरूप नहीं हूं। मगर मैं अपनी कामना और संवेदना को क्रिया विहीन तो नहीं कर सकती हूं। मैं जानना चाहती हूं जया पर क्या बिपता है, उस पर कैसा प्रकोप है?
रतिराम में भावुकता से कहा- वह बुखार में अंगार होकर तप रही है। उसे होश भी नहीं है ना खाती है ना पीती है। बस बिस्तर पर एक लाश की तरह पड़ी रहती है। अब उसकी संवेदना भी कम हो रही है।अलाप तो मेरे हृदय में भी उमड़ा था लेकिन गरीब और मजदूर होने के कारण मैं उसकी खबर भी नहीं ला सका। रिश्तेदारों का तांता लगा हुआ है। सभी लोग जया का पता लेने आ रहे हैं। मैं भी कठोर नहीं हूं लेकिन विवश तो हूं। बेमेल संबंध ही सही ,उसने हम पर कई एहसान भी किए है। पर हम तो उसे धन्यवाद भी नहीं दे सके। घर जाते समय यह गुड ले जाना भगवान ने चाहा जया को शाम तक जरूर आराम पड़ जाएगा।
कृतः- चंद्रमौलेश्वर शिवांशु 'निर्भयपुत्र'
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
Thank you, for a message universal express.