वाशिंगटन। बच्चों के पालन-पोषण तथा खुशहाली से संबंधित सूचकांक (फ्लोरिशिंग इंडेक्स) में भारत काफी पीछे है। 180 देशों में भारत का 131वां स्थान है। संयुक्त राष्ट्र समर्थित एक रिपोर्ट में इसका खुलासा हुआ है। भारत प्रति व्यक्ति कार्बन उत्सर्जन (सस्टेनेबिलिटी इंडेक्स) के मामले में 77वें स्थान पर है। दुनियाभर के 40 से अधिक बाल एवं किशोर स्वास्थ्य विशेषज्ञों के एक आयोग ने बुधवार को रिपोर्ट जारी की। यह शोध डब्ल्यूएचओ, यूनिसेफ तथा द लैंसेट मेडिकल जर्नल के संयुक्त तत्वावधान में हुआ है।
नॉर्वे पहले स्थान पर: उत्तर जीविता, स्वास्थ्य, शिक्षा एवं पोषण के मामले में नॉर्वे पहले स्थान पर है। इसके बाद दक्षिण कोरिया, नीदरलैंड, मध्य अफ्रीकी गणराज्य और चाड हैं। हालांकि, प्रतिव्यक्ति कार्बन उत्सर्जन के मामले में चाड को छोड़कर बाकी के देश बहुत पीछे हैं। अल्बानिया, आर्मेनिया, ग्रेंडा, जॉर्डन, मोलदोवा, श्रीलंका, ट्यूनीशिया, उरुग्वे तथा वियतनाम 2030 के प्रतिव्यक्ति कार्बन उत्सर्जन के लक्ष्य के मुताबिक चल रहे हैं।
180 देशों की क्षमता का आकलन: रिपोर्ट में 180 देशों की क्षमता का आकलन किया गया है। ये देश सुनिश्चित कर पाते हैं या नहीं कि उनके यहां के बच्चे पले-बढ़ें और खुशहाल रहें। खुशहाली सूचकांक का संबंध किसी भी राष्ट्र में मां-बच्चे की उत्तर जीविता, पलने, बढ़ने तथा उसके कल्याण से है।
क्या हैं मानक: खुशहाली सूचकांक में मां एवं पांच साल से कम आयु के बच्चों की उत्तर जीविता, आत्महत्या दर, मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य सुविधा, बुनियादी साफ-सफाई और भीषण गरीबी से मुक्ति तथा बच्चे का फलना-फूलना आदि आता है।
नौनिहालों को टिकाऊ भविष्य देने का प्रयास नहीं
रिपोर्ट में कहा गया कि कोई भी देश अपने नौनिहालों को टिकाऊ भविष्य देने के पर्याप्त प्रयास नहीं कर रहा है। रिपोर्ट के अग्रणी शोधकर्ताओं में से एक यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन में प्रो. एंथनी कोटेलो ने कहा कि दुनिया का कोई भी देश ऐसी परिस्थितियां मुहैया नहीं करवा रहा है, जो हर बच्चे के विकसित होने और स्वस्थ्य भविष्य के लिए आवश्यक है। उन्हें जलवायु परिवर्तन तथा व्यावसायिकता का सीधे-सीधे खतरा है।
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