भ्रष्टाचार का हमाम 'संपादकीय'
देश के सभी राज्यों में नागरिकता संशोधन अधिनियम को लेकर विरोध, धरना-प्रदर्शन के साथ, खूब हो-हंगामा किया जा रहा है। जबकि यह नागरिकता कानून राष्ट्रीय एकता और अखंडता को संजोए रखने में मील का पत्थर साबित होगा। इस विषय को लेकर होने वाला दंगा-फसाद कोरी राजनीति है। इस राजनीति की आग में घी डालने का काम योजनाबद्ध ढंग से किया जा रहा है। इसके पीछे असली चेहरे को बेनकाब करना देश की भ्रष्ट संस्थाओं के बस की बात नहीं है। यह घटिया राजनीति समुदाय विशेष के हितों के प्रतिकूल है। यह बात समझने की आवश्यकता है कि कानून से कौन प्रभावित हो रहा है? हालांकि यह बहुत अधिक महत्व नहीं रखता है। क्योंकि कानून भारत के नागरिकों के हित में निहित है।
परंतु इस पर देशभर में होने वाले हंगामे के पीछे किसका हाथ है? उन लोगों तक हमारी जांच करने वाली संस्थाएं पहुंच बनाने में विफल साबित हो रही है। हो सकता है कि सत्ता पक्ष का कोई रसूखदार-नामचीन व्यक्ति इस प्रकरण का आधार बना हो। देश में अराजकता फैलाकर कोई विशेष रणनीति बनाई जा रही हो। क्योंकि विपक्ष का कद इतना छोटा हो गया है कि उसकी आवाज चीख-पुकार के बीच कोई भी नहीं सुन पा रहा है। देश की अर्थव्यवस्था रेंग रही है। रोजगार दम तोड़ रहे हैं। आम आदमी के जीवन से जुड़े विषयों से हटकर, असल मुद्दों से अलग राजनीति का क्या औचित्य है? देश में अप्रत्याशित भ्रष्टाचार अपनी जड़े जमा चुका है। भ्रष्टाचार के विरोध को आधार बनाने वाली भाजपा ही भ्रष्टाचार में अव्वल है। आधार-बिंदु से भटकी भाजपा को दिल्ली-विधानसभा चुनाव में मुंह की खानी पड़ेगी। बल्कि कई राष्ट्रीय नेताओं के लिए यह पराजय टीस बनकर रहेगी। कुछ नेता तो इस टीस को साथ लेकर ही जिएंगे। जिन्होंने विचारधारा को प्रवाहित करने का कार्य किया है। वे लोग बुझे मन से साथ है और उनके कदमों की ताल धीमी पड़ गई है। क्योंकि वह सब लोग समझ चुके हैं कि 'भ्रष्टाचार के हमाम में सब नंगे' है।
राधेश्याम 'निर्भय-पुत्र'
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